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महाभारत के वर्णन के लिए क्यों सिर्फ संजय का ही किया गया था चयन, क्या इस दिव्य दृष्टि में छिपा था कोई राज?

PUBLISHED BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : September 2, 2024, 2:34 pm IST
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महाभारत के वर्णन के लिए क्यों सिर्फ संजय का ही किया गया था चयन, क्या इस दिव्य दृष्टि में छिपा था कोई राज?

India News (इंडिया न्यूज़), Sanjay In Mahabharat: महाभारत के युद्ध ने धृतराष्ट्र को एक ऐसी स्थिति में डाल दिया था जहाँ वह खुद के भाग्य का निर्धारण नहीं कर सकते थे। अंधे राजा धृतराष्ट्र, जिनके भीतर युद्ध के राग के प्रति अपार जिज्ञासा और चिंता थी, एक चिरंतन सत्य की खोज में थे। इस समस्या का समाधान एक अद्वितीय व्यक्ति, संजय, के पास था, जो महर्षि वेदव्यास के शिष्य और धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित सदस्य थे।

संजय का जीवन और उनका चरित्र धृतराष्ट्र की राजसभा में उनके एक आदर्श स्थान को प्रमाणित करता है। वे अत्यंत विनम्र, धार्मिक स्वभाव के और सत्य के प्रति गहरे निष्ठावान थे। उनके इन गुणों के कारण वे राजा धृतराष्ट्र के विश्वासपात्र बन गए थे। युद्ध से पहले जब पांडवों और कौरवों के बीच संवाद की आवश्यकता थी, तब संजय को वार्तालाप के लिए भेजा गया। उन्होंने अपनी कड़ी और स्पष्ट वचनबद्धता से यह दर्शाया कि वह अंधकार से बाहर निकलकर सत्य को उजागर करने में विश्वास रखते हैं।

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दिव्य दृष्टि का राज

महर्षि वेदव्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि देने के निर्णय के पीछे उनके इन गुणों को ध्यान में रखा। दिव्य दृष्टि के माध्यम से संजय को न केवल युद्ध के सभी घटनाक्रम को स्पष्ट रूप से देखने की क्षमता प्राप्त हुई, बल्कि उन्होंने धृतराष्ट्र को एक सटीक और निर्विवाद वर्णन प्रदान किया। यह दृष्टि संजय को युद्ध की हर एक गतिविधि, हर एक पल को अपने मन की आंखों से देखने की शक्ति देती थी, जो धृतराष्ट्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी।

संजय की दिव्य दृष्टि ने युद्ध की उस भयानक और चुनौतीपूर्ण रात को धृतराष्ट्र के लिए जीने योग्य बनाया। संजय ने धृतराष्ट्र को युद्ध की गहराई और उसके जटिल पहलुओं से परिचित कराया, जिससे राजा को घटनाओं की सच्चाई और कौरवों की हार की गहनता का आभास हुआ।

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संन्यास लेने का निर्णय

महाभारत के युद्ध के पश्चात, संजय ने सांसारिक जीवन को छोड़कर संन्यास लेने का निर्णय लिया और तपस्या की ओर अग्रसर हुए। उनकी यह यात्रा उस समय की आध्यात्मिक समर्पण की कथा का हिस्सा बन गई, जिसमें उन्होंने अपने जीवन को अधिक गहराई और अर्थ प्रदान किया।

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संजय की कहानी, उनके चरित्र और उनकी दिव्य दृष्टि का उपयोग, हमें यह सिखाता है कि सच्चे सम्मान, निष्ठा और ज्ञान की ताकत केवल एक व्यक्ति को नहीं बल्कि पूरी दुनिया को बदल सकती है। महाभारत के युद्ध में संजय का योगदान केवल एक अद्वितीय दृष्टा का नहीं था, बल्कि उन्होंने युद्ध के यथार्थ को एक अद्वितीय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। उनकी कहानी आज भी प्रेरणा का स्रोत है, और उनके द्वारा प्राप्त दिव्य दृष्टि की शक्ति का महत्व अनंत है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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