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India News (इंडिया न्यूज), Kahani Padam Puran Ki: भगवान शिव को सृष्टि का संहारकर्ता कहा जाता है। वे त्रिमूर्ति में से एक हैं, जिनका कार्य सृष्टि का संहार करना है, जबकि भगवान विष्णु पालनहार और ब्रह्मा जी सृष्टि के रचनाकार माने जाते हैं। शिव जी के बारे में यह धारणा है कि वे ध्यानमग्न रहते हैं और संसार से अलग, अपने ध्यान में लीन रहते हैं। किंतु एक सवाल अक्सर उठता है कि महादेव जब ध्यान में होते हैं, तो वे किसका ध्यान करते हैं? इस प्रश्न का उत्तर हमें पद्मपुराण की एक कथा में मिलता है, जो भगवान शिव के अनन्य भक्ति भाव को दर्शाती है।
पद्मपुराण के उत्तरखंड में वर्णित कथा के अनुसार, एक दिन माता पार्वती ने महादेव से पूछा, “स्वामी! जब आप ध्यान में लीन होते हैं, तो आप किसका ध्यान करते हैं?” महादेव ने इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए थोड़ा समय लिया और कुछ दिन बाद इसका खुलासा किया।
महादेव ने ऋषि बुध कौशिक को सपने में दर्शन दिए और उनसे राम रक्षा स्तोत्र लिखने को कहा। बुध कौशिक ने विनम्रता से कहा कि वे इस स्तोत्र को लिखने में सक्षम नहीं हैं। तब भगवान शिव ने स्वयं सपने में उन्हें सम्पूर्ण राम रक्षा स्तोत्र सुनाया, जिसे अगले दिन ऋषि ने लिपिबद्ध कर दिया।
इसके कुछ दिन बाद, महादेव ने माता पार्वती से कहा, “प्रिय, मैं जब ध्यान में होता हूं, तब मैं राम नाम का जप करता हूं।”
माता पार्वती ने शिव जी से कहा, “स्वामी! राम जी तो विष्णु जी के अवतार हैं, फिर आप विष्णु जी का स्मरण न करके उनके अवतार राम का जप क्यों करते हैं?” इस पर भगवान शिव ने उत्तर दिया, “जैसे एक प्यासा मनुष्य जल के लिए व्याकुल होता है, वैसे ही मैं राम नाम के लिए व्याकुल रहता हूं। राम नाम सहस्त्र नामों के बराबर है, और यह मेरे लिए सबसे पवित्र और शक्तिशाली है। श्री राम के नाम के जप से सारे पापों का नाश होता है, इसलिए मैं सदैव राम नाम का जप करता हूं।”
यह उत्तर माता पार्वती के लिए भी उतना ही चौंकाने वाला था जितना कि हमारे लिए, क्योंकि भगवान शिव सृष्टि के संहारकर्ता हैं, और उनके आराध्य स्वयं विष्णु जी के अवतार श्री राम हैं।
पुराणों में भगवान शिव और श्री राम के बीच एक गहरा संबंध दर्शाया गया है। रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले रामेश्वरम में शिव जी के लिंग स्वरूप की पूजा की थी, तब उन्होंने भगवान शिव का आशीर्वाद लिया। यह पूजा आज रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है। इस प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि भगवान राम भी शिव जी के अनन्य भक्त थे।
कहते हैं कि शिव और राम एक-दूसरे के पूरक हैं। जो भी भक्त भगवान शिव का नाम लेता है, वह भगवान राम का भी भक्त होता है, और जो राम नाम का जप करता है, वह भगवान शिव का भी पूजक होता है।
भगवान शिव और राम के बीच का यह अनूठा संबंध हमें यह सिखाता है कि दोनों देवताओं का पूजन एक ही मार्ग पर ले जाता है। शिव जी द्वारा राम नाम का जप यह संदेश देता है कि ईश्वर के विभिन्न रूप, चाहे वह सृष्टि का पालन, निर्माण या संहार से संबंधित हों, अंततः एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। राम नाम का जप करना न केवल भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों के बराबर है, बल्कि यह भगवान शिव की परम भक्ति को भी प्रकट करता है।
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