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अपनी बहन को दिए इस वरदान के आगे खुद भी हार जाते हैं यमराज…क्यों मौत आने के बाद भी ऐसे व्यक्तियों को नहीं ले जा पाते यमलोक?

Prachi Jain • LAST UPDATED : October 9, 2024, 1:30 pm IST
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अपनी बहन को दिए इस वरदान के आगे खुद भी हार जाते हैं यमराज…क्यों मौत आने के बाद भी ऐसे व्यक्तियों को नहीं ले जा पाते यमलोक?

Connection Between Yamraj & Bhaidooj: यमराज ने यमुना की यह इच्छा स्वीकार की और वचन दिया कि इस दिन जो भी बहन अपने भाई को प्रेमपूर्वक तिलक करेगी और भाई अपनी बहन से स्नेह रखेगा, उसे यमराज का आशीर्वाद मिलेगा। इसी प्रसंग के आधार पर भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा आरंभ हुई, और तब से यह त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है।

India News (इंडिया न्यूज), Connection Between Yamraj & Bhaidooj: भाई दूज का पर्व दीवाली के दो दिन बाद, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई और बहन के बीच के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है, जिसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना करते हुए तिलक करती हैं और मिठाई खिलाती हैं। भाई दूज के अवसर पर यमराज और यमुना के पौराणिक प्रसंग का उल्लेख विशेष रूप से किया जाता है, जो इस पर्व की गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है।

पौराणिक कथा और मान्यता

पंडित रमाशंकर जी के अनुसार, इस त्योहार की पौराणिक कथा सूर्यदेव की पत्नी छाया, उनके पुत्र यमराज और पुत्री यमुना से जुड़ी हुई है। यमुना, यमराज से बहुत स्नेह करती थीं और उन्हें बार-बार अपने घर आने का निमंत्रण देती थीं। लेकिन यमराज अपने कर्तव्यों के कारण हमेशा टालते रहते थे। अंततः कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना के घर आने का वचन दिया। यमराज का मानना था कि वह मृत्यु के देवता हैं और उनके आने से अशुभ हो सकता है, लेकिन वचन देने के कारण वे यमुना के घर पहुंचे।

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यमुना ने अपने भाई का स्वागत बड़े प्रेम से किया, उन्हें स्नान कराया और अपने हाथों से भोजन परोसा। बहन के आतिथ्य और स्नेह से यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। यमुना ने उनसे यह वरदान मांगा कि वे हर साल इस दिन उनके घर आएं और जो भाई-बहन इस दिन यमुनाजी में स्नान करें और इस परंपरा का पालन करें, उन्हें यमराज का आशीर्वाद प्राप्त हो और अकाल मृत्यु का भय न हो।

यमराज ने यमुना की यह इच्छा स्वीकार की और वचन दिया कि इस दिन जो भी बहन अपने भाई को प्रेमपूर्वक तिलक करेगी और भाई अपनी बहन से स्नेह रखेगा, उसे यमराज का आशीर्वाद मिलेगा। इसी प्रसंग के आधार पर भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा आरंभ हुई, और तब से यह त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है।

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भाई दूज के रिवाज और परंपराएं

  1. तिलक और आशीर्वाद: इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं, और इस आदान-प्रदान से आपसी स्नेह और बढ़ता है।
  2. बेरी पूजन: कुछ स्थानों पर भाई दूज के अवसर पर बहनें बेरी के वृक्ष का पूजन भी करती हैं, जो समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
  3. यम पूजा: भाई दूज के दिन यमराज की पूजा भी की जाती है, ताकि घर-परिवार के सभी सदस्यों को स्वास्थ्य और लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

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त्योहार का महत्व

भाई दूज न केवल भाई-बहन के स्नेह और प्रेम को प्रगाढ़ करने वाला त्योहार है, बल्कि यह यमराज के आशीर्वाद से जुड़े धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को भी दर्शाता है। पंडित रमाशंकर जी के अनुसार, जो भी बहन-भाई इस दिन इस पर्व को विधिपूर्वक और प्रेमपूर्वक मनाते हैं, उन्हें यमराज का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह त्योहार केवल भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती को ही नहीं दर्शाता, बल्कि यमराज के आशीर्वाद से व्यक्ति को रोग, बाधाओं और अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्ति मिलती है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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