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एक फिल्म का इतना जबरदस्त क्रेज, जूते-चप्पल उतारकर हॉल में घुसते थे दर्शक; राष्ट्रपति भी गए थे देखने

Ganga Maiya Tohe Piyari Chadhaibo: भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का फलक धीरे-धीरे बड़ा होता जा रहा है. एक दौर में भोजपुरी सिनेमा सिर्फ बिहार, यूपी और झारखंड तक ही सीमित था, लेकिन अब इसका दायरा बढ़कर कई देशों में पहुंच गया है. रवि किशन, आम्रपाली दुबे, खेसारी लाल यादव, मनोज तिवारी और दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी लोकप्रिय हैं. भोजपुरी फिल्में विदेश में भी देखी जाती हैं और गाने तो विदेशी डिस्को पब में भी जोरो शोरों से बजाए जाते हैं. वहीं, एक दौर वह भी था जब भोजपुरी सिनेमा शून्य था. करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने भोजपुरी में फिल्म तो छोड़िये गाने तक नहीं बनते थे. अब समय बदला है और भोजपुरी का जलवा कायम हो चुका है. आज हम इस स्टोरी में बात करेंगे भोजपुरी की पहली फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ (Ganga Maiyya Tohe Piyari Chadhaibo) की.

एक मुलाकात और बन गई भोजपुरी फिल्म

देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सीवान (बिहार) के रहने वाले थे. यही पर उनका जन्म हुआ. प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा भी हुई. यहां या कहें पूरे जिले में बेहद मीठी जुबान वाली भोजपुरी बोली जाती है. वह अपनी बोली से बहुत प्यार करते थे. देश का पहला राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने अपनी जुबान से लगाव रखा. जब भी कोई गांव या बिहार से दिल्ली में मिलने आता तो वह सहज भाव से उससे भोजपुरी बोली में बातचीत करते थे. एक दिन उन्हें ख्याल आया कि हिंदी और अन्य भाषाओं की तरह भोजपुरी में भी फिल्में बननी चाहिए. उस समय भोजपुरी को लेकर विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी (B.P. Shahabadi) सक्रिय थे. उन्होंने बुलावा भेजा तो मिलने आ गए. यहीं से भोजपुरी इंडस्ट्री की पहली फिल्म की नींव पड़ गई. दरअसल, विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी से मुलाकात के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भोजपुरी फिल्म बनाने के लिए कहा. इस पर विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी ने तुरंत हामी भर दी. इसके बाद वर्ष 1963 में पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ का निर्माण किया गया, जिससे भोजपुरी सिनेमा की नींव पड़ी. फिल्म के निर्माण में विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी के अलावा कई किरदार थे, जिन्होंने पर्दे के पीछे भी अपनी भूमिका निभाई.

नजीर हुसैन ने बनाई थी पहली फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’

भोजपुरी इंडस्ट्री को बनाने और पहली फिल्म के निर्माण में सिर्फ विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी (B.P. Shahabadi) का ही योगदान नहीं बल्कि इसमें और लोग भी शामिल थे. इनमें एक बड़ा नाम था नजीर हुसैन का. बिहार के रहने वाले और हिंदी फिल्मों में स्थापित हो चुके भोजपुरी में फिल्म बनाने का आग्रह किया. वह मान भी गए. नजीर हुसैन ने 1963 में ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ फिल्म का निर्माण किया. यह भोजपुरी सिनेमा के इतिहास की पहली फिल्म बनी. इस फिल्म के निर्माण में नजीर हुसैन ने अपना सबकुछ झोंक दिया. ना केवल उन्होंने इस फिल्म में अभिनय किया बल्कि उन्होंने पटकथा लिखी बल्कि निर्देशन भी किया. बावजूद इसके विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी (B.P. Shahabadi) भोजपुरी सिनेमा का जनक (पितामह) माना जाता है.

दर्शकों ने जमकर लुटाया भोजपुरी सिनेमा पर प्यार

फिल्म निर्माण में काफी समय लगा, लेकिन यह बहुत अच्छी बनी. हिंदी फिल्मों की तरह इसमें भी कई ट्विस्ट और टर्न थे. 22 फरवरी. 1963 को ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ फिल्म ने बिहार की राजधानी पटना के सिनेमाघर में दस्तक दी. शुरुआत ठीकठाक रही, लेकिन धीरे-धीरे इस फिल्म को देखने के लिए लोगों में क्रेज बढ़ा. रिलीज होने के चंद दिनों बाद ही इस फिल्म को देखने वालों की संख्या बढ़ने लगी. दर्शक इस कदर आने लगे कि थिएटर के बाहर भीड़ लगाकर खड़ा होना पड़ता था. लोग आते तो सुबह थे, लेकिन उन्हें टिकट मिलती थी शाम या रात के शो की. ग्रामीण इलाकों से लोग बैलगाड़ियों में भरकर सिनेमा हाल तक पहुंचते थे.

सिनेमा हॉल के बाहर उतारते थे चप्पल-जूते

गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ फिल्म का नाम ही धार्मिक था. गंगा वैसे भी हिंदुओं की मान्यता और आस्था से जुड़ी हुई है. ऐसे में दर्शक चप्पल उतारकर थिएटर के अंदर जाते थे. जो दर्शक दूर-दराज से आते थे वह फिल्म देखे बिना नहीं जाते थे. टिकट नहीं मिलने पर सिनेमा हाल के बाहर ही रात बिताते थे. फिर अगले दिन फिल्म देखकर ही बैलगाड़ी से वापस जाते थे. इसके बाद गांवों में दर्शक इस फिल्म की कहानी और सीन दूसरों को सुनाया करते थे. उस दौर में अखबार का चलन कम था. फिल्म का प्रमोशन नहीं किया जाता था. ठेले पर या रिक्शा पर ही फिल्मों का प्रमोशन किया जाता था. एक शख्स रिक्शे पर बैठकर माइक के जरिये शहरों की गलियों और गांवों में बताता था कि फिल्म कहां लगी है और कैसे देखें. 

मोहम्मद रफी और लता ने भी गाए थे गाने

भोजपुरी फिल्म उद्योग की शुरुआत का श्रेय दिग्गज अभिनेता नजीर हुसैन को जाता है. वह खुद बिहार के रहने वाले थे. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कहने पर 1963 में उन्होंने ही पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ का निर्माण किया. बताया जाता है कि फिल्म की कहानी लेखक आचार्य शिवपूजन सहाय की शॉर्ट स्टोरी ‘कहानी का प्लॉट’ से ली गई थी. फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ को काफी पसंद किया था. इस फिल्म में गाने लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने गाए थे. फिल्म सुपर-डुपर हिट रही. इसका क्रेज सालों तक बना रहा. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता (तब कलकत्ता) में इस फिल्म की सिल्वर जुबली मनाई गई थी. ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ को बेस्ट फिल्म, बेस्ट एक्ट्रेस, बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर, बेस्ट लिरिक्स, बेस्ट स्टोरी और बेस्ट प्लेबैक सिंगर समेत कई अवॉर्ड्स से मिले थे. 

नजीर हुसैन की कहानी पसंद आई थी राष्ट्रपति को

उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा से सटे गाजीपुर के रहने वाले नजीर हुसैन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थी. वह ना केवल अच्छे अभिनेता थे बल्कि लेखन में भी वह बहुत अच्छे थे. बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि नजीर हुसैन ने ही बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ लिखी थी. इस दौरान उन्होंने बिमल रॉय से काफी कुछ सीखा भी. जब मौका मिला तो नजीर हुसैन ने ही भोजपुरी इतिहास की पहली फिल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो’ लिख डाली. इस फिल्म की कहानी जब नाजिर हुसैन ने राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सुनाई, तो उन्होंने इसे सराहा और भोजपुरी में फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया. फिल्म की कहानी एक विधवा के दोबारा विवाह पर आधारित थी. बताया जाता है कि इस फिल्म को भोजपुरी में लिखने के बाद वह बिमल रॉय से मिले थे. यह भी दावा किया जाता है कि बिमल रॉय इस फिल्म को हिंदी में बनाना चाहते थे, लेकिन नजीर हुसैन ने कहा कि वह भोजपुरी में ही बनाना चाहते हैं. बिमल दा ने नजीर हुसैन की गुजारिश मान ली. इसके बाद भोजपुरी सिनेमा का पहला अध्याय शुरू हुआ और ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो’ बनी. 

शुरुआती दौर में नहीं मिला कोई प्रॉड्यूसर

बिमल दा ने इस फिल्म को भोजपुरी में बनाने से इन्कार कर दिया. विमल रॉय मना करने के बाद नजीर हुसैन लंबे समय तक प्रॉड्यूसर तलाशने रहे. कोई भी निर्माता भोजपुरी की इस फिल्म में पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं था. हिंदी के प्रॉड्यूसर पीछे हट चुके थे. इस बीच अचानक अंधेरे में लौ दिखी. कोयला व्यासायी और सिनेमा हॉल मालिक विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी को कहानी पंसद आई. वह भी राजेंद्र प्रसाद से मिल चुके थे. इसके बाद वह इस फिल्म में पैसे लगाने को तैयार हो गए.

सिर्फ 5 लाख में बनी थी फिल्म

बताया जाता है कि 1975 में रिलीज हुई कल्ट फिल्म ‘शोले’ 3 करोड़ रुपये में बनी थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये फिल्म 3 करोड़ के बजट में बनकर तैयार हुई थी.धर्मेंद्र फिल्म के सबसे महंगे एक्टर थे. उन्होंने अपने रोल के लिए 1.5 लाख रुपये लिए थे. इसके ठीक 12 साल पहले बनी फिल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो’ का बजट सिर्फ 1.50 लाख रुपये था जो बढ़कर करीब 5 लाख हो गया. यह रकम भी आज के करोड़ों रुपयों के बराबर है. दरअसल, शुरुआती दौर में इस फिल्म की कमान बनारस के कुंदन शाह को सौंपी गई थी. फिल्म के लिए 1. 50 लाख रुपये का बजट तय किया गया था. फिल्म पूरी होते-होते यह 5 लाख हो गया. वर्ष 1963 में भोजपुरी की पहली फिल्म रिलीज हुई थी. फिल्म निर्माण से 15 गुना से अधिक की कमाई की थी. उस दौर में फिल्म ने 80 लाख रुपये का कारोबार किया था. 80 लाख रुपये का आज के दौर में मतलब कई सौ करोड़ रुपये होता है. 

स्पेशल स्क्रीनिंग में शामिल हुए थे राष्ट्रपति

फिल्म बनने के बाद टीम के सभी साथी उत्साहित थे. देश के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इस बारे में जानकारी दी गई तो वह खुश हुए. इसके बाद न्योता मिलने पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पटना के सदाकत आश्रम में फिल्म की विशेष स्क्रीनिंग में भाग लिया. उन्होंने फिल्म देखी और उसकी सराहना भी की. उन्होंने समर्थन दिया. उनके इस समर्थन ने फिल्म के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि इससे टीम का उत्साह भी बढ़ा. 

संगीत का भी अहम योगदान

फिल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो’ का संगीत चित्रगुप्त ने तैयार किया था. गीत शैलेंद्र ने लिखे थे, जो राजकपूर के खास हुआ करते थे. लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जैसे महान गायकों ने शैलेंद्र के लिखे गीतों को अपनी आवाज दी. फिल्म का टाइटल सॉन्ग ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’, बहुत लोकप्रिय हुआ और यह आज भी सुना और देखा जाता है. मोहम्मद रफी की आवाज में ‘सोनवां के पिंजरा में’ क्या खूब बना. इसके अलावा ‘मोरे करेजवा में पीर’ जैसे गीत आज भी सुने और सराहे जाते हैं.

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