Food Adultration
Health: भारत की फूड सप्लाई चेन एक जहरीले संकट का सामना कर रही है, जिसमें मिलावट वाले खाद्य-पदार्थ रोजमर्रा की चीजों को सेहत के लिए खतरनाक बना रहे हैं.
FSSAI के हालिया डेटा से पता चलता है कि टेस्ट किए गए 25-28% खाद्य-पदार्थ जैसे दूध, मसाले आदि सैंपल नियमों के मुताबिक नहीं थे, जिससे कैंसर, अंगों को नुकसान और पाचन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है. डिटर्जेंट मिले दूध से लेकर लेड वाले मसालों तक, लाखों लोग रोजाना अनजाने में जहर खा रहे हैं.
FSSAI के छापों से चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है. जून 2025 में, चंडीगढ़ अधिकारियों ने बापूधाम कॉलोनी से 450 किलो मिलावटी पनीर जब्त किया गया, साथ ही घी और दही के सैंपल लैब टेस्ट के लिए भेजे गए. नोएडा में 2024 में 83% पनीर सैंपल क्वालिटी चेक में फेल हो गए, 40% फॉर्मेलिन जैसे केमिकल के कारण असुरक्षित थे. इसी तरह राजस्थान ने 25% फेलियर रेट के बाद 6.6 लाख किलो मिलावटी खाना नष्ट कर दिया.
दूध, खोया और पनीर सबसे ज़्यादा मिलावट वाली चीजें हैं. FSSAI का 16 दिसंबर, 2025 का देशव्यापी अभियान इन्हीं को टारगेट करता है, जिसमें बिना लाइसेंस वाली यूनिट्स पर ध्यान दिया जा रहा है जो दूध बनाने के लिए यूरिया, स्टार्च, डिटर्जेंट और सिंथेटिक दूध का उपयोग कर रहे हैं. दूध में ये मिलावट “उपभोक्ताओं के लिए गंभीर खतरा” है. इसके पहले मसालों पर अक्टूबर 2025 में कार्रवाई की गई थी, क्योंकि नवंबर 2024-फरवरी 2025 की निगरानी में 13 मसालों में मिलावट, कीटाणु और खराब लेबलिंग पाई गई थी. दूध के अलावा ब्रेड, अंडे और तेल में सिंथेटिक रंग, कीटनाशक और आर्गेमोन छिपा होता है—जो न्यूरोटॉक्सिसिटी और एंडोक्राइन डिसरप्शन से जुड़े हैं.
खाद्य-पदार्थों में मिलावट करने वाली कंपनियां जानलेवा प्रोडक्ट तैयार कर रही हैं. मसालों में सिंथेटिक रंग और भारी धातुएं गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर का कारण बनती हैं; वहीं डेयरी उत्पादों में मिलाया जा रहा फॉर्मेलिन लिवर/किडनी को नुकसान पहुंचाता है. लंबे समय तक ऐसे खाद्य-पदार्थों के इस्तेमाल से एंडोक्राइन डिसरप्शन, जन्मजात विकृतियां और कमजोर इम्यूनिटी की समस्या होती है. इस मिलावट से बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बुज़ुर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं. तेलों में कीटनाशकों और न्यूरोटॉक्सिन से होने वाला न्यूरोलॉजिकल नुकसान इस संकट को और बढ़ा देता है.
FSSAI, 2006 के फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट के तहत, खाद्य-पदार्थों का स्टैंडर्ड तय करता है, लाइसेंसिंग जरूरी करता है, और उल्लंघन पर सजा देता है (जानलेवा मिलावट के लिए उम्रकैद तक). मुख्य नियम एडिटिव्स, दूषित पदार्थों और लेबलिंग को कवर करते हैं, लेकिन इन कानूनों को लागू करने में दिक्कतें आती हैं. क्षेत्रीय असमानताएं, संसाधनों की कमी, और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी कानून लागू करने में बाधा डालती है.
दूध/पनीर जैसे डेयरी उत्पादों के इंस्पेक्शन में गैर-अनुपालन वाले सैंपल के लिए ट्रेसिबिलिटी की मांग की जाती है, लेकिन अधिकांश यूनिट्स की जांच ही नहीं की जाती. अधिकारियों की लापरवाही से ऐसे मिलावटी उत्पाद बनाने वाले बच जाते हैं. मसालों की निगरानी में मेटल, रोगाणुओं और एफ्लाटॉक्सिन के लिए टेस्टिंग जरूरी है, जिसकी रिपोर्ट 20 नवंबर तक देनी थी, फिर भी, 28% ही निगरानी की गयी है. राज्यों की मुख्य जिम्मेदारी फूड सेफ्टी अधिकारियों के जरिए होती है, लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से बिना लाइसेंस वाले ऑपरेटर बच निकलते हैं.
खाद्य-पदार्थों में मिलावट साइलेंट किलर का काम कर रहा है. लोगों को लगता है घर पर बना खाना सेहत के लिए अच्छा है, लेकिन जब दूध, फल, सब्जियों और मसालों में मिलावट होगी या उनके विकास के लिए इंजेक्शन (फल और सब्जी के मामले में) का इस्तेमाल किया जा रहा है, तो यह सेहतमंद कैसे हो सकता है? खाद्य-तेलों में पाम तेल की बढ़ती मिलावट लोगों के लिवर पर दबाव डाल रही है. यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में नॉन-अल्कोहलिक लिवर सिरहोसिस के मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं. मिलावटी खाद्य-पदार्थों के इस्तेमाल से बचने के लिए जरूरी है कि उपभोक्ताओं को FSSAI लाइसेंस वेरिफाइड उत्पादों को ही उपयोग करना चाहिए, लैब-टेस्टेड उत्पादों की मांग करनी चाहिए, और FSSAI ऐप के जरिए मिलावटी खाद्य-पदार्थों या खराब उत्पादों की रिपोर्ट करना चाहिए.
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