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इंडिया न्यूज:
आज कल कई महिलाएं अपने बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग यानी मां के दूध की बजाय ज्यादातर फॉर्मूला मिल्क बच्चे को पिला रही हैं। फॉर्मूला मिल्क कंपनियां इतनी चालाकी से अपने प्रोडक्ट का प्रमोशन करती हैं, जिससे उनके प्रमोशन को एडवर्टाइजमेंट का नाम भी नहीं दिया जा सकता। यह बिजनेस देश-दुनिया में बड़े पैमाने पर चल रहा है। यही कारण है भारत में फॉर्मूला मिल्क का बिजनेस 4.2 लाख करोड़ सालाना तक पहुंच गया है। अब सवाल ये उठता है कि फॉर्मूला मिल्क क्या छोटे बच्चों के लिए फायदेमंद है। अगर नहीं, तो इसके नुकसान क्या हैं।
फॉर्मूला मिल्क एक तरह का आर्टिफिशियल मिल्क पाउडर होता है। इसे आप पाउडर बेस्ड मिल्क भी कह सकते हैं। यह शुगर, फैट, विटामिन और प्रोटीन को मिलाकर बनता है।
मां के दूध में ग्लिसरॉल मोनोलॉरेट (जीएमएल) नामक एक ऐसा कंपोनेंट पाया जाता है, जो हानिकारक बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकता है। ये हेल्दी बैक्टीरिया को ग्रो करने में मदद करता है। मां के दूध में जीएमएल गायों के दूध की तुलना में करीब 200 गुना अधिक होता है, जबकि फॉर्मूला मिल्क में इसकी मात्रा न के बराबर होती है। इसमें मां के दूध जैसी कोई भी खासियत नहीं होती है।
जो बच्चे मां का दूध पीते हैं, उनकी तुलना में फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चे फिजिकल, मेंटल और इमोशनल तौर पर कमजोर होते हैं। बच्चे इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण बार-बार बीमार होते हैं। इंफेक्शन के कारण डायरिया और निमोनिया का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हो सकते हैं। बड़े होने पर मोटापे का खतरा ज्यादा होता है। बच्चे के दांत सही तरह से नहीं आते हैं। मां और बच्चे के बीच इमोशनल अटैचमेंट कम होता है। इसमें कोलेस्ट्रॉल ज्यादा होने से बच्चे का कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है।
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