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Soya milk: बच्चों को सोया वाला फॉर्मूला मिल्क पिलाना सही या गलत, जानें

Divyanshi Singh • LAST UPDATED : April 3, 2024, 8:23 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Soya milk: कुछ बच्चे मां का दूध नहीं पीते हैं दरअसल कुछ शिशुओं को दूध से एलर्जी होती है ऐसे में डॉक्टर शिशु की जरुरत को फॉर्मूला मिल्क से पूरा करने की सलाह देते हैं। वहीं जिन महिलाओं को डिलीवरी के बाद दूध बनने में समस्या होती है वो भी बच्चे को फॉर्मूला मिल्क पिलाते हैं। सोयाबीन से तैयार फॉर्मूला मिल्क में कई पोषक तत्व होते हैं। बच्चों को एलर्जी होने पर माता-पिता को चितां होती है। लेकिन बच्चों को सोया फॉर्मूला मिल्क देना सही है या फिर गलत ये बहुत ही कम लोग जानते हैं।

सोया मिल्क देना चाहिए या नहीं

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के मुताबिक सोया आधारित फॉर्मूला मिल्क शिशुओं के लिए पूरी तरह से सेफ होता है। ये गाय के दूध की तरह ही पोषण देता है।  हालांकि, शिशुओं के लिए तैयार सोया मिल्क फॉर्मूला व्यस्कों के सोया मिल्क से अलग होता है। सोया दूध पिसे हुए सोयाबीन के पेस्ट से बनाया जाता है। ये सोयाबिन पेस्ट, पानी और वनस्पति तेल के इमल्शन से तैयार किया जाता है। वस्यकों के लिए तैयार मिल्क बच्चों को पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकता है, ऐसे में उन्हें व्यस्कों के लिए तैयार सोया मिल्क नहीं दिया जाना चाहिए।

किन बच्चों को ना दें सोया मिल्क

बच्चों के लिए तैयार सोया मिल्क फार्मूला सोयाबीन से सोया प्रोटीन और दूसरे जरूरी पोषक तत्व निकाले जाते हैं, जो बच्चे के लिए जरूरी हैं। दो साल से छोटे बच्चे को रोजाना सोया मिल्क ना दें।  सोया शिशु फार्मूला मिल्क दो साल से छोटे बच्चे को दिया जा सकता है। समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों को सोया शिशु फॉर्मूला नहीं देना चाहिए, क्योंकि उनके शरीर में सोयाबीन के कुछ कंपाउंड्स को पचाने में जैव रसायनिक प्रक्रिया नहीं होती है। इसके अलावा, समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों को सोया फॉर्मूला मिल्क देने से ऑस्टियोपेनिया होने का खतरा हो सकता है और ये एक ऐसी स्थिति है जिसमें नई हड्डियां कोशिकाएं के अपर्याप्त बनने की वजह से टूट जाती हैं।

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कब दें सोया मिल्क

बच्चो को सोया फॉर्मूला मिल्क कब दिया जाना चाहिए। साथियों जिन बच्चों को गैलेक्टोसिमिया होता है, उनको फॉर्मूला मिल्क दिया जा सकता है। ये एक दुर्लभ अनुवांशिक विकार है, इस स्थिति में बच्चे के शरीर में गैलेक्टोज यानि कि दूध में मौजूद शुगर को ग्लूकोज में बदलने की क्षमता नहीं होती। मां से मिलने वाले दूध और दूसरे सभी प्रकार के दूध में गैलेक्टोज पाया जाता है, इससे पीड़ित बच्चे को स्तनपान कराना असंभव हो जाता है।  कुछ बच्चों में लैक्टोज इंटोलरेंस होता है। इस स्थिति को लैक्टोज एलर्जी कहा जाता है। जिन बच्चों को लैक्टोज से एलर्जी होती है, उन्हें सोया बेस्ड फॉर्मूला दिया जा सकता है। जो स्वाभाविक रूप से लैक्टोज शुगर से मुक्त होते हैं।

नन्हें बच्चे का बहुत ही ज्यादा ख्याल रखा जाता है। ऐसे में छोटी सी भी गलती की वजह से भारी नुकसान हो सकता है। क्योंकि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। जाहिर है कि अगर बच्चे या फिर बच्चे की मां को किसी तरह की कोई समस्या ना हो तो स्तनपान ही कराएं।

Written by Prashant Pratap Singh

 

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