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Why are you ashamed of talking about periods पीरियड्स बोलने पर शर्म कैसी?

Why are you ashamed of talking about periods
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली

अब भी कई जगहों पर महिलाओं को माहवारी आने के दौरान अपवित्र माना जाता है। इसीलिए घर की रसोई और मंदिरों में भी उन्हें नहीं जाने दिया जाता। साथ ही महिलाओं में इतनी झिझक होती है कि वो किसी को खुलकर यह भी नहीं बता पाती है कि उनको पीरियड्स (माहवारी) आएं हैं। हर महिला माहवारी आने के दौरान एक कोड वर्ड रखती है जैसे कि थोड़ी सी डाउन चल रही हूं, आंटी आ गई, हैप्पी बर्थडे, …ये कोई कोड वर्ड नहीं हैं, बल्कि महिलाओं की पीरियड्स डिक्शनरी है। कहने को तो हमारा समाज आज के समय में बहुत आगे बढ़ गया है लेकिन सिफ कागजों पर प्रगतिशील हो रहा है, लेकिन दिमागी तौर पर आज भी कुंठाओं और झिझक से भरा है। सिंपल सा शब्द पीरियड्स इतना कठिन बना दिया है कि लोग सिर्फ ये शब्द बोलने की जगह बाकी सारे शब्द बोलते हैं और इशारों में बात करते हैं।

आज भी ग्रामीण महिलाएं ही पीरियड्स या माहवारी बोलने में नहीं कतराती हैं, बल्कि शहर के पढ़े-लिखे लोग भी इस शब्द को बोलने में शर्म महसूस करते हैं। पीरियड्स शुरू होते ही लड़कियों को समझाया जाता है कि अब लड़कों से बात मत करना, तुम सयानी हो गई हो… इन शब्दों से कुल मिलाकर परिवार यह समझाना चाहता है कि अब लड़की शादी के लायक हो गई है, जबकि माहवारी के दिनों में लड़कियों को जिस तरह की डाइट की जरूरत होती है वो उन्हें नहीं मिलती। इसके बदले में मिलती हैं हिदायतें।

विज्ञापन देखकर जरूर महिलाओं में इतनी समझ आ गई है कि पीरियड्स होने पर पैड लेना है, लेकिन इसके हाइजीन और हेल्थ के पहलू पर चुप्पी है। पहले उन्हें परिवार यह नहीं समझाता कि पीरियड्स आने की वजह क्या है, जब ये आते हैं तब हाइजीन के हिसाब से किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यहां तक कि स्कूलों में भी टैक्स्ट बुक्स में किशोरावस्था शब्द इस्तेमाल किया जाता है। यही डर और शर्म आगे जाकर इंफेक्शन, ब्लीडिंग और जान तक का खतरा बढ़ा देता है। जहां-जहां शिक्षा कम है वहां पीरियड्स से जुड़े मिथक ज्यादा हैं। बच्चियों के पास जब पीरियड्स से जुड़ी सही जानकारी नहीं होती तो वे इसके चक्र को भी नहीं समझ पातीं।

कई बच्चियों जिनको पहली बार पीरियड्स आते हैं तो चौंक जाती हैं। उन्हें नहीं मालूम होता कि नॉर्मल पीरियड्स की टाइमिंग 3 से 4 दिन है, अगर किसी को 15 दिन तक ब्लीडिंग हो रही है तो वह दिक्कत है। ऐसे में नॉर्मल पीरियड्स तक की जानकारी उनके पास नहीं होती और ज्यादा ब्लीडिंग होने से शरीर में दूसरी बीमारियां पनपने लगती हैं। पीरियड्स के बारे में जानकारी न होने पर अनसेफ सेक्स और अबॉर्शन तक नौबत आ जाती है। कम उम्र में ही बच्चियों को बुरे खामियाजे भुगतने पड़ते हैं। जिस कम्युनिटी में पीरियड पर बात नहीं होती वहां बच्चियां शारीरिक खतरों के साथ-साथ मानसिक परेशानियां भी भुगतती हैं।

आपको बता दें कि महिलाओं से पीरियड पर बात करके और स्कूली स्तर पर बच्चों को समझाकर ही लोगों को जागरुक किया जा सकता है। दूसरा, परिवारों में जब खुलापन होगा तो बेटियां खुलकर अपनी बात रख पाएंगी। पीरियड्स की महत्ता को जब परिवार समझेंगे तो इस स्टिगमा से बाहर निकलने में देर नहीं लगेगी।

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