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हीलिंग हिमालय के जरिए जानिए प्रदीप सांगवान ने कैसे बदली पहाड़ों की सूरत

PUBLISHED BY: India News Desk • LAST UPDATED : May 20, 2022, 5:11 pm IST
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हीलिंग हिमालय के जरिए जानिए प्रदीप सांगवान ने कैसे बदली पहाड़ों की सूरत

इंडिया न्‍यूज। Healing Himalayas: जिंदगी को कामयाब बनाने के लिए जुनून जरूरी होता है। कुछ ऐसा ही जुनून लेकर चल रहे हैं हरियाणा के चरखी दादरी के प्रदीप सांगवान (Pradeep Sangwan)। वे पिछले 9 वर्षों से हिमालय के संरक्षण में जुटे हैं। प्रदीप हीलिंग हिमालय (healinghimalayas.org) के संस्‍थापक हैं जो हिमालय की तलहटी से लेकर आसपास के क्षेत्र को साफ सुथरा बनाए रखने में जुटे हैं।

वे हिमालय पर्वत श्रृंखला में आने वाले पर्यटकों और ट्रैकिंग करने वालों के बीच काफी फेमस हैं। वे 9 वर्षों में हिमालय पर्वत श्रृंखला से करीब 8 लाख टन से अधिक बॉयो डिग्रेबल वेस्‍ट को हटा कर पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं।

हीलिंग हिमालय का सफर ऐसे शुरू हुआ

Healing Himalayas Pradeep Sangwan mission for saving environment

मिलिट्री स्कूल अजमेर से शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब वे बाहर की दुनिया से मुखातिब हुए तो उन्‍हें लगा उन्‍हें समाज और पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहिए। चूंकि मिलिट्री स्कूल ने उन्‍हें अनुशासन को पाठ पढ़ाया था, तो जब वे हिमाचल घूमने गए तो वहां पर्यटकों द्वारा फैलाई गई गंदगी को देखकर उन्‍हें कोफ़्त हुई। बार बार यही सोचते रहे कि आखिर पर्यटकों को कैसे समझाया जाए कि पहाड़ों को भी साफ रखना जरूरी है नहीं तो पर्यावरण पर इसका दुष्‍प्रभाव पड़ेगा।

पहले कल्‍चर सीखा फि‍र काम पर फोक्‍स किया

हिमाचल के लोगों से कनेक्‍ट बनाने के लिए वे शुरुआती दिनों में हिमाचल के कई हिस्‍सों में रहे और वहां का कल्‍चर सीखा। इस बीच आजीविका चलाने के लिए उन्‍होंने कैफे भी चलाया, लेकिन जल्‍द ही उन्‍हें आभास हुआ कि वे कैफे चलाने नहीं हिमालय के संरक्षण के लिए आगे आए हैं। जहां एक ओर यूथ अपने करियर पर फोक्‍स करता है ताकि वह शानदार जिंदगी जी सके, उसके विपरीत प्रदीप ने पर्यावरण संरक्षण को चुना।

पर्यावरण सरंक्षण को क्‍यों चुना

Healing Himalayas Pradeep Sangwan mission for saving environment

प्रदीप आर्मी अफसर बने सकते थे, आईएएस या आईपीएस भी क्‍लीयर करके शानदार जिंदगी जी सकते थे फि‍र उन्‍होंने पर्यावरण संरक्षण को क्‍यों चुना ? इस पर वे कहते हैं कि उन्‍होंने कभी सोचा नहीं था कि वे जिंदगी में क्‍या करेंगे। आईएएस और आईपीएस तो कोई भी बन सकता है, लेकिन पर्यावरण की ओर कौन देखेगा? क्‍या पर्यावरण की संभाल के लिए कोई आगे नहीं आना चाहेगा?

वे कहते हैं कि जब वे हिमालय में ट्रैकिंग के लिए गए तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। यहां ट्रैकिंग करने वाले सज्‍जन लोगों ने इतना प्‍लास्टिक का कचरा फैला दिया था कि उसे संभालना मुश्किल हो रहा था। इससे स्‍थानीय ग्रामीण भी परेशान थे। वे इसके खिलाफ नहीं बोल सकते थे। इसी दर्द को महसूस करते हुए उन्‍होंने स्‍वयंसेवकों के साथ टीम तैयार की और इस युद्ध में कूद पड़े।

डगमगाए नहीं और आगे बढ़ते रहे प्रदीप

प्रदीप बताते हैं कि जिस मिशन पर वे निकले हैं वह इतना आसान नहीं था। शुरुआती दौर में आर्थि‍क परेशानी और वॉलंटियर्स की कमी के कारण उन्‍हें दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा। कई बार दोस्‍तों और सहयोगियों ने भी सलाह दी कि कोई और काम करो। लेकिन वे डगमगाए नहीं। हार भी नहीं मानी और धीरे धीरे प्रयास करते हुए टीम तैयार की जो आज गर्व सेे हिमालय की सेवा में जुटी है।

ग्रामीणों से जाना कैसे पर्यावरण को बचाएं

ग्रामीणों के साथ कैसा तालमेल रहा ? इस पर प्रदीप सांगवान कहते हैं कि हिमाचल के लोग बहुत ही सरल, मेहनती और सहयोग करने वाले होते हैं। शुरुआती दिनों में ग्रामीणों ने उन्‍हें काफी सहयोग किया और टीम बनी। आज भी ग्रामीणों की मदद मिलती है और हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं। सबसे खास बात है कि स्‍थानीय लोग पर्यावरण संभाल के प्रति सचेत हैं। ऐसे कई समुदाय हैं जो 6 महीने हिमालय के तलहटी में भेड़ बकरियां चराते हैं। वे खुद स्‍वच्‍छता का ध्‍यान रखते हैं, जबकि पर्यटक और ट्रैकिंग करने वाले यहां टनों के हिसाब से प्‍लास्टिक का कचरा फैला जाते हैं जो दिनों दिन समस्‍या बनती जा रही है।

पर्यटकों को कैसे समझाया

पर्यटकों को उन्‍होंने कैसे गाइड किया और कैसे प्‍लास्टिक काेे नियंत्रित किया गया। इस पर प्रदीप का कहना है कि हमने फुटफॉल वाले एरिया पर नजर रखी जहां पर्यटक अधिक आते हैं। ऐसे में पहले वहां हमने स्‍वच्‍छता की मुहिम शुरू की और पर्यटकों को समझाया कि आप शहरों से जो भी सामान लेकर आ रहे हैं उसके रैपर या खाली बोतल को अपने साथ ले जाएं ताकि पहाड़ों को साफ रखा जा सके। हमारे समझाने पर अनेक पर्यटक हमारे वॉलंटियर बन गए जिनकी संख्‍या अब हजारों में है। अब वे दूसरों को गाइड करते हैं।

रिसाइकिल पर दे रहे जोर

हिमालय से कचरा हटाना कितना मुश्किल था। इस पर प्रदीप बताते हैं कि पहले कचरा को छोटे छोटे हिस्‍सों में जमा किया जाता था और बाद में उसे दूसरे स्‍थान पर रिसाइक्लिंग के लिए भेजा जाता था। लेकिन यह काफी महंगा सौदा था। ऐसे में अब काफी मात्रा में कचरा एक जगह जमा किया जा रहा है ताकि उसका उपयोग सड़क बनाने में किया जा सके। इसके लिए हिमाचल सरकार को सूचना दी गई है। पीडब्‍ल्‍यूडी से भी हमारी टीम संपर्क में है ताकि इसे रिसाइकि‍ल करके दोबारा उपयोग में लाया जा सके। इसके लिए हमने मटीरियल रिकवरी फैसिलिटी शुरू की है। साथ ही कचरा जमा करने के लिए कल्‍स्‍टर बनाए जा रहे हैं ताकि रिसाइकिल प्रोसेस को तेज किया जा सके।

पीएम मोदी भी कर चुके प्रदीप की प्रशंसा

मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदीप सांगवान के काम की तारीफ करते हुए बताया था कि कैसे एक साधारण व्‍यक्ति‍ अगर निष्‍ठा से कोई संकल्‍प ले तो उसे पूरा करने में समय नहीं लगता है। इस पर प्रदीप का कहना है कि हमेशा आपको दुनिया की परवाह किए बिना सिर्फ और सिर्फ अपने दिल की ही सुननी चाहिए। इससे दो फायदे होते हैं एक तो अगर आप कहीं फेल भी होते हैं तो आप किसी को दोष नहीं दे सकते। दोबारा अपने मिशन पर जुट सकते हैं ताकि उसे कामयाब बना सकें। दूसरा आप दोबारा से खड़ा होने की हिम्‍मत करें। उतार चढ़ाव जिंदगी का हिस्‍सा हैं।

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