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इंडिया न्यूज। Healing Himalayas: जिंदगी को कामयाब बनाने के लिए जुनून जरूरी होता है। कुछ ऐसा ही जुनून लेकर चल रहे हैं हरियाणा के चरखी दादरी के प्रदीप सांगवान (Pradeep Sangwan)। वे पिछले 9 वर्षों से हिमालय के संरक्षण में जुटे हैं। प्रदीप हीलिंग हिमालय (healinghimalayas.org) के संस्थापक हैं जो हिमालय की तलहटी से लेकर आसपास के क्षेत्र को साफ सुथरा बनाए रखने में जुटे हैं।
वे हिमालय पर्वत श्रृंखला में आने वाले पर्यटकों और ट्रैकिंग करने वालों के बीच काफी फेमस हैं। वे 9 वर्षों में हिमालय पर्वत श्रृंखला से करीब 8 लाख टन से अधिक बॉयो डिग्रेबल वेस्ट को हटा कर पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
मिलिट्री स्कूल अजमेर से शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब वे बाहर की दुनिया से मुखातिब हुए तो उन्हें लगा उन्हें समाज और पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहिए। चूंकि मिलिट्री स्कूल ने उन्हें अनुशासन को पाठ पढ़ाया था, तो जब वे हिमाचल घूमने गए तो वहां पर्यटकों द्वारा फैलाई गई गंदगी को देखकर उन्हें कोफ़्त हुई। बार बार यही सोचते रहे कि आखिर पर्यटकों को कैसे समझाया जाए कि पहाड़ों को भी साफ रखना जरूरी है नहीं तो पर्यावरण पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा।
हिमाचल के लोगों से कनेक्ट बनाने के लिए वे शुरुआती दिनों में हिमाचल के कई हिस्सों में रहे और वहां का कल्चर सीखा। इस बीच आजीविका चलाने के लिए उन्होंने कैफे भी चलाया, लेकिन जल्द ही उन्हें आभास हुआ कि वे कैफे चलाने नहीं हिमालय के संरक्षण के लिए आगे आए हैं। जहां एक ओर यूथ अपने करियर पर फोक्स करता है ताकि वह शानदार जिंदगी जी सके, उसके विपरीत प्रदीप ने पर्यावरण संरक्षण को चुना।
प्रदीप आर्मी अफसर बने सकते थे, आईएएस या आईपीएस भी क्लीयर करके शानदार जिंदगी जी सकते थे फिर उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को क्यों चुना ? इस पर वे कहते हैं कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि वे जिंदगी में क्या करेंगे। आईएएस और आईपीएस तो कोई भी बन सकता है, लेकिन पर्यावरण की ओर कौन देखेगा? क्या पर्यावरण की संभाल के लिए कोई आगे नहीं आना चाहेगा?
वे कहते हैं कि जब वे हिमालय में ट्रैकिंग के लिए गए तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। यहां ट्रैकिंग करने वाले सज्जन लोगों ने इतना प्लास्टिक का कचरा फैला दिया था कि उसे संभालना मुश्किल हो रहा था। इससे स्थानीय ग्रामीण भी परेशान थे। वे इसके खिलाफ नहीं बोल सकते थे। इसी दर्द को महसूस करते हुए उन्होंने स्वयंसेवकों के साथ टीम तैयार की और इस युद्ध में कूद पड़े।
प्रदीप बताते हैं कि जिस मिशन पर वे निकले हैं वह इतना आसान नहीं था। शुरुआती दौर में आर्थिक परेशानी और वॉलंटियर्स की कमी के कारण उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई बार दोस्तों और सहयोगियों ने भी सलाह दी कि कोई और काम करो। लेकिन वे डगमगाए नहीं। हार भी नहीं मानी और धीरे धीरे प्रयास करते हुए टीम तैयार की जो आज गर्व सेे हिमालय की सेवा में जुटी है।
ग्रामीणों के साथ कैसा तालमेल रहा ? इस पर प्रदीप सांगवान कहते हैं कि हिमाचल के लोग बहुत ही सरल, मेहनती और सहयोग करने वाले होते हैं। शुरुआती दिनों में ग्रामीणों ने उन्हें काफी सहयोग किया और टीम बनी। आज भी ग्रामीणों की मदद मिलती है और हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं। सबसे खास बात है कि स्थानीय लोग पर्यावरण संभाल के प्रति सचेत हैं। ऐसे कई समुदाय हैं जो 6 महीने हिमालय के तलहटी में भेड़ बकरियां चराते हैं। वे खुद स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, जबकि पर्यटक और ट्रैकिंग करने वाले यहां टनों के हिसाब से प्लास्टिक का कचरा फैला जाते हैं जो दिनों दिन समस्या बनती जा रही है।
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