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India News (इंडिया न्यूज़), Emergency, नई दिल्ली: देश में लगे ‘आपातकाल’ को आज 48 साल पूरे हो चुके हैं। भारत के इतिहास का एक ऐसा काला दिन जो लोग 5 दशक में नहीं भूले, न कभी भलेंगे। साल 1975 में जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के एक फैसले से भारत थम गया था। 18 महीनों से ज्यादा वक्त तक देश में इमरजेंसी लागू रहा।राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी के फैसले के बाद 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लागू करने के फैसले पर साइन किए थे।
देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के इस फैसले के बाद देश की मीडिया और सार्वजनिक रूप से सरकार की आलोचना जैसी चीजों पर नकेल कस दी गई। इमरजेंसी के कठिन दौर से गुजरा देश 4-5 दशकों में कई मौसम देख चुका है। पिछले 5 दशक में देश में कई दलों की सरकार आईं। मगर इंदिरा गांधी के इस फैसले की वजह से आज भी कांग्रेस पार्टी कठघरे में रहती है। ‘आपातकाल’ की 48वीं बरसी के मौके पर इस फैसले से जुड़े कुछ प्रमुख किरदार और खास बातें जानते हैं। जिनके बारे में बेहद ही कम लोग जानते हैं। तत्कालीन पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब में इमरजेंसी की दिलचस्प बातों का जिक्र किया गया है।
25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी के इस फैसले के बाद राष्ट्रपति की ओर से संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी। राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के रहते हुए इमरजेंसी की घोषणा के बाद इंदिरा गांधी का बयान काफी चर्चा में रहता है। उस वक्त के अखबारों और मी़डिया रिपोर्टस में इस बात का जिक्र है कि इमरजेंसी लगाने के बाद इंदिरा ने कहा कि एक कुत्ता तक नहीं भौंका। रातोंरात देश के तमाम छोटे-बड़े नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हुई।
आपातकाल के दौरान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPIM) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जैसे दो दर्जन से ज्यादा संगठनों को देशविरोधी बताते हुए बैन कर दिया गया था। 23 जनवरी 1977 तक यानी कि 18 महीने और 28 दिनों तक इमरजेंसी प्रभावी रहा। 40 साल बाद भी आपातकाल क्यों प्रासंगिक है? तो इसका जवाब बेलगाम करप्शन है। दरअसल, इंदिरा गांधी के दौर में जय प्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। जिस पर कोई अपेक्षित कार्रवाई नहीं हुई। जिसके बाद से ही जनता और सरकार का टकराव शुरू हुआ।
इमरजेंसी के करीब 3 साल पहले साल 1972 में तत्कालीन उड़ीसा में हुए उपचुनाव में नंदिनी निर्वाचित हुईं। जिसमें लाखों रुपये खर्च हुए। इंदिरा के सामने गांधीवादी जेपी ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। इंदिरा गांधी ने टालमटोल करते हुए जवाब दिया कि कांग्रेस के पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि ठीक से पार्टी का दफ्तर भी चलाया जा सके। जिसके बाद जयप्रकाश नारायण ने कहा, “जनता जवाबदेही चाहती है। मगर सरकार की नीयत बेदाग साबित होने की नहीं।”
बता दें कि साल 1972 की घटना के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि इमरजेंसी की दूसरी बुनियाद 12 जून, 1975 को रखी गई थी। 55 साल के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी को अपने फैसले से बेदख़ल करने का फरमान सुनाया। जिसके बाद 6 साल के लिए इंदिरा को किसी भी निर्वाचित पद से वंचित कर दिया गया था। आपातकाल से पहले हाईकोर्ट के इस फैसले को 2 भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया। जिसमें पहला दोष पीएम कार्यालय में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी यशपाल कपूक का चुनावी फायदे के लिए उपयोग करना। किसी भी सरकारी साधन का उपयोग नियमों के अंतर्गत चुनाव में निजी लाभ के लिए नहीं किया जा सकता है।
वहीं इंदिरा का दूसरा दोष उत्तर प्रदेश में चुनावी रैलियों का संबोधन है। जिसमें उत्तर प्रदेश अधिकारियों ने डिजाइन किया गया। इन लोगों ने बिजली और लाउडस्पीकर का बंदोबस्त किया। राजनारायण तत्कालीन इलाहाबाद में एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनाव हार गए। मगर जब उन्होंने कानून का सहारा लिया तो इंदिरा गांधी को अपदस्थ (बेदख़ल) करा कर ही दम लिया।
आपातकाल के फैसले का ऐलान 25 जून, 1983 को हुआ। तत्कालीन पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने बताया कि मीडिया सेंशरशिप के लिए जो दिशा-निर्देश जारी हुए थे, उनमें यह स्पष्ट था कि सरकार के खिलाफ कोई भी लेख नहीं प्रकाशित किया जाएगा। यहां तक की विरोध कर रहे राजनेताओं की गिरफ्तारी के बारे में भी छापने पर सख्ती थी। इसके साथ ही इन राजनेताओं के नाम व उनकी लोकेशन भी नहीं बताने का फरमान जारी हुआ था।
जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक फिर जनवरी 1980 से अक्टूबर 1984 तक इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद संभाला। साल 1984 में प्रधानमंत्री रहते हुए उनकी हत्या कर दी गई थी। बता दें कि आजाद भारत के 76 साल के इतिहास में इंदिरा गांधी भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री हैं।
दिल्ली में अकबर रोड स्थित इंदिरा गांधी के आधिकारिक आवास पर 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही दो बॉडीगार्ड्स ने उन्हें गोलियों से भून दिया था। जिसके चलते देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे।
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