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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (China’s One China Policy) : चीन के वन चाइना नीति के कूटनीतिक चाल में भारत नहीं फंसा और इसके साथ ही ताइवान पर अपनी सधी प्रतिक्रिया देकर अपने कूटनीतिक जवाब भी दे दिया है।
भारत-चीन के बीच सीमा पर जारी गतिरोध के बाद चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की बात कही है। उन्होंने यह बात उस समय कही जब अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने ताइवान यात्रा की। चीन इस मामले में भारत का खुलकर समर्थन चाहता है। इस दिशा में चीन कूटनीतिक प्रयास भी कर रहा है।
हाल में चीन के दूतावास ने अपना बयान जारी कर बताया कि वन चाइना नीति को लेकर भारत सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच सामान्य सहमति है। उन्होंने आगे कहा कि यह किसी भी देश के साथ संबंधों को विकसित करने के लिए चीन की राजनीतिक बुनियाद है। सबसे खास बात यह है कि चीनी दूतावास का यह बयान नैंसी के दौरे के बाद जारी किया गया था।
जिसमें यह कहा गया कि भारत वन चाइना पॉलिसी को मान्यता देने वाले पहले देशों में रहा है। प्रो पंत ने बताया कि चीन की यह एक बड़ी कूटनीति चाल थी। जिस पर भारत ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। चीन के इस बयान पर भारत की मौन के जहां बड़े मायने हैं। वहीं भारत वर्ष 2014 की अपने नीति पर कायम है।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत ने बताया कि भारत चीन के मामले में बहुत संभल-संभल कर चल रहा है। उधर, भारत के पड़ोसी मुल्कों ने पाकिस्तान और श्रीलंका ने चीन के स्टैंड का समर्थन किया है। जबकि भारत ने इस मामले में बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया दी है।
हाल में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिका में उनके समकक्ष एंटनी ब्लिंकन की मुलाकात भी हुई, लेकिन इस मामले में कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया गया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि चीन के इस स्टैंड पर भारत की क्या नीति है। भारत ने पूरे मामले में चुप्पी क्यों साध रखी है। भारत अपने चुप्पी से चीन को क्या संदेश देना चाहता है।
2- प्रो हर्ष वी पंत ने आगे कहा कि भारत ने अपने स्टैंड को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सीमा पर तनाव और बेहतर संबंध दोनों एक साथ नहीं चल सकता है। इस बाबत भारत में चीनी विदेश मंत्री के समकक्ष एस जयशंकर का कहना है कि दोनों देशों के बीच के संबंधों को तब तक सामान्य नहीं किया जा सकता है, जब तक की सीमा को शांत नहीं कर लिया जाता। उधर, चीन सीमा तनाव के जरिए भारत पर दबाव बनाने में जुटा हुआ है।
3- प्रो पंत ने बताया कि अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैंसी की ताइवान यात्रा को लेकर भारत के कदम कूटनीतिक और रणनीतिक रहे है। भारत-चीन सीमा विवाद और तनावपूर्ण संबंधों के बाद देश ने वन चाइना का जिक्र छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि भारत ने यह निर्णय तब लिया जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताने वाले बयान दिए थे।
चीन ने अरुणाचल के दो शहरों को मंदारिन भाषा में नाम दिए और जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल में रहने वाले वाले भारतीय नागरिकों के लिए स्टेपल वीजा जारी किया था। इसके बाद से भारत के वन चाइना के दृष्टिकोण में बदलाव आ गया।
4- उधर, चीनी राजदूत सन वेइदांग ने भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाते हुए कहा है कि चीन को उम्मीद है कि मामलों को सही रास्ते पर वापस लाने के लिए उनके देश द्वारा किए जा रहे प्रयासों को भारत का समर्थन मिलेगा। उन्होंने कहा कि हम चीन-भारत संबंधों को महत्व देंगे और इसे सही रास्ते पर लाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। हमें उम्मीद है कि इस तरह के प्रयास में हमें दूसरी ओर (भारत) से भी समर्थन मिलेगा। हम मानते हैं कि हम इस तरह के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। यह निश्चित रूप से न केवल हम दोनों देशों को बल्कि इस पूरे क्षेत्र और दुनिया को भी लाभान्वित करेगा।
हाल में ताइवानी राजदूत ने कहा कि ताइवान और भारत दोनों चीनी आक्रामकता और विस्तारवाद का सामना कर रहे हैं। उन्होंने गलवान घाटी में भारत और चीनी संघर्ष का भी जिक्र किया था। ताइवानी राजदूत ने कहा था कि चीनी आक्रामकता को देखते हुए एक विचारधारा और लोकतांत्रिक देशों को उसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है।
ताकि अपना अस्तित्व बचाया जा सकें। उन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं है कि चीन इस समय ताइवान और दक्षिण चीन सागर में व्यस्त है, इससे ड्रैगन का ध्यान हिंद महासागर व भारत से कम हो जाएगा। उन्होंने कहा कि चीन के खिलाफ लोकतांत्रिक मूल्यों वाले राष्ट्रों को एकजुट होना चाहिए ताकि एकजुटता से चीन का सामना किया जा सकें।
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