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Opinion: अपनी खोई अस्तित्व की खोज में कांग्रेस-Indianews

Vijayant Shankar • LAST UPDATED : April 26, 2024, 10:46 am IST

India News (इंडिया न्यूज़), Lok Sabha Election 2024: भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिसने स्वतंत्र भारत की राजनीति पर दशकों तक अपना वर्चस्व बनाए रखा था। आज एक डूबते जहाज की तरह प्रतीत होती है। पिछले कुछ समय से कांग्रेस पार्टी की स्थिति चिंताजनक हो गई है। उसकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट देखी जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप उसे  भारतीय राजनीति में अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय दलों पर निर्भर होना पड़ रहा है।

कांग्रेस की जीत 

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने  एक एतिहासिक जीत दर्ज की थी। भाजपा के मुकाबले कांग्रेस सिर्फ 44 सीटों पर ही सिमट गई थी। जबकि उसने 464 सीटों पर चुनाव लड़ा था। एक दशक पहले, 2004 के चुनावों में, 417 सीटों में से 145 पर जीत हासिल करने में कामयाब रही और 2009 के चुनाव में, उसने 440 सीटों में से 206 सीटें जीतकर केंद्र की कुर्सी पर कब्ज़ा किया था। वहीं 2019 में भी कॉंग्रेस कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही।422 सीटों में मात्र 52 सीटें ही काँग्रेस हासिल कर सकी।

अब आप कह सकते हैं जीत-हार राजनीति का स्वाभाविक हिस्सा है, यह सच है। लेकिन जब हम अतीत की ओर देखते हैं, तो जिज्ञासा और भी बढ़ जाती है। 1984 में, कांग्रेस को देशभर से एक अभूतपूर्व जनादेश मिला था, इन चुनावों में, 517 सीटों में से 415 सीटें जीतकर उन्होंने एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया था। आज के आधुनिक  राजनीतिक माहौल में कुछ ऐसी भारी जीत की कल्पना करना थोड़ा मुश्किल है।

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अपने पैरों पर खड़े रहने में नाकाम

आज़ादी के कुछ वर्षों बाद भी भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी का प्रभावशाली दबदबा बना रहा। 1971 और 1980 के लोकसभा चुनावों में, पार्टी ने 350 से अधिक सीटें जीतकर अपनी मजबूत स्थिति को पुनः स्थापित किया। यह विजय कांग्रेस की लोकप्रियता और देश में इसकी गहरी जड़ों का प्रमाण थी। देश के शुरुआती चुनावों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा। 1962, 1957 और 1951 के लोकसभा चुनावों में, पार्टी ने लगभग 470 सीटों पर चुनाव लड़ा और क्रमशः 361, 371 और 364 सीटें जीतीं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि आज़ादी के शुरुआती दशकों में कांग्रेस पार्टी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख शक्ति थी। लेकिन धीरे-धीरे, यह विशाल पार्टी अपने पैरों पर खड़े रहने तक में नाकाम होने लगी।

परिवारवाद के चलते खोई लोकप्रियता

कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पार्टी परिवारवाद के चलते अपनी लोकप्रियता खो रही है। नए चेहरों और विचारों को आगे लाने के बजाय, वंशवाद पर अधिक ध्यान दिया गया। इस वजह से, जिसके चलते कई प्रतिभाशाली नेता पार्टी छोड़कर भी चले गए है। यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस ने आम जनता से जुड़ाव खो दिया है । पार्टी के नेता आम लोगों की समस्याओं को समझने में नाकाम रहे और उनसे जुड़ी नीतियां बनाने

में भी चूके। इसके अलावा, कांग्रेस को भ्रष्टाचार के आरोपों से भी जूझना पड़ा। पार्टी के कुछ नेताओं पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों ने आम जनता के बीच पार्टी की छवि खराब कर दी। इन सभी कारणों से कांग्रेस पार्टी का प्रभाव कम हुआ है। यदि कांग्रेस इन कमियों को दूर नहीं कर पाई तो इनका भविष्य अनिश्चित हो सकता है।

जनता की बदलती आकांक्षा

बाकी कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी विभिन्न समुदायों और जनता की बदलती आकांक्षाओं से कटती चली गई। पार्टी ने आम जनता के साथ अपना संबंध खो दिया, जिसके परिणामस्वरूप विश्वास का संकट पैदा हुआ। पारंपरिक समर्थक भी कांग्रेस से दूर होने लगे, जिससे पार्टी का जनाधार भी  कमजोर हुआ है ।

इसके साथ ही, क्षेत्रीय दलों ने अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों का उभरना। इन दलों को लगा कि वे जनता की भावनाओं और मुद्दों को बेहतर समझते हैं।

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पार्टी के पास एजेंडा नहीं

वहीं, कांग्रेस, जो कभी आज़ादी की लड़ाई का प्रतीक थी, जिसमें युवा बढ़ छड़कर हिस्सा लिया करते थे वर्तमान में युवा पीढ़ी को लुभाने में बुरी तरह से विफल साबित हो रही है । पार्टी के पास कोई स्पष्ट एजेंडा नहीं है  जो युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा कर सके। परिणामस्वरूप, कांग्रेस पार्टी का प्रभाव कम होता गया और यह अपनी शानदार विरासत को धीरे-धीरे खोने लगी।

आज की राजनीतिक परिदृश्य में, कांग्रेस पार्टी को अस्तित्व में बने रहने के लिए खुद को नए सिरे से ढालना होगा। अपने गौरवशाली अतीत पर भरोसा करना अब पर्याप्त नहीं है। बदलती राजनीतिक हवाओं के अनुरूप पार्टी को अपने विचारों और रणनीतियों को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है। युवाओं को आकर्षित करने और उनकी आकांक्षाओं को समझने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे।

यदि कांग्रेस पार्टी इन चुनौतियों का सामना करने में विफल रहती है, तो यह धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो सकती है और इतिहास के पन्नों में खो सकती है। अब यह तो भविष्य बता सकता है  कि क्या कांग्रेस पार्टी अपनी खोई हुई जमीन फिर से वापस पा सकेगी या यह एक भूली हुई कहानी जैसी बनकर रह जाएगी।

 

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