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अजीत मैंदोला, इंडिया न्यूज, Rajasthan News: बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिये कांग्रेस ने उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर में कई संकल्प लिये, लेकिन देश मे बनाये जा रहे धुर्वीकरण के माहौल से निपटने का रास्ता नेताओं को नही सूझ रहा है। इस बीच यह भी निर्णय हुआ है की राहुल गांधी निर्विरोध पार्टी के अध्यक्ष चुने जाएंगे।यूपी चुनाव के बाद देश के अलग अलग हिस्सों में बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा जिसमें एक राज्य खुद राजस्थान भी है। हनुमानचालीसा के पाठ, बुल्डोजर,कुतुबमीनार,ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण से देश का माहौल बदला है।कांग्रेस इन मुद्दों पर खुलकर बोल भी नही पा रही है।
भीषण गर्मी से जूझ रही झीलों की नगरी के एक पांच सितारा होटल में तीन दिन चलने वाले सम्मेलन में दो दिन तक अलग अलग विषयों के लिये बनाये समूहों के नेताओं ने बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा, मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ ,कृषि,किसान,महंगाई पर तो गहन मंथन किया साथ ही पार्टी को सबसे बुरे दौर से कैसे बाहर निकाला जाए पर कई प्रस्तावों पर विचार किया गया।कोई खबर बाहर न जाये नेताओं के मोबाइल पहले ही बाहर रखवा दिये गये।मुख्य केंद्र बने राहुल गांधी हर समूह की बैठकों में अलग अलग समय पर जा कर बैठते। उनकी चर्चा सुनते। समूह की बैठकों में उनसे फिर से कमान संभालने का आग्रह किया गया।प्रियंका गांधी भी सक्रिय बनी रही।सोनिया गांधी अपने कमरे में नेताओं से चर्चा करती।
समारोह के आयोजक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी टीम की यही कोशिश रहती कोई कमी न रह जाये। सम्मेलन में शामिल युवा प्रतिनिधियों ने अपने नेताओं के साथ फोटो खिंचवाने का मौका नही छोड़ा।राहुल,प्रियंका,गहलोत ने भी फोटो के लिये किसी को निराश नही किया।शिविर में पुराने प्रमुख नेताओं की उपस्थिति और सक्रियता ने पार्टी की एक जुटता का सन्देश जरूर दे दिया।अंसन्तुष्ठ समझे जाने वाले अधिकांश नेता शिविर में शामिल हुये।लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि शिविर में जो बड़ी बड़ी बातें की गई और प्रस्ताव संगठन के लिये लाये गये क्या वह लागू हो पाएंगे।क्योकि इससे पूर्व भी पार्टी ने कई बार फैसले तो किये ,लेकिन लागू करने की हिम्मत नही जुटा पाई।झीलों की नगरी में लिये जाने वाले संकल्प लागू करना बहुत आसान नही है।
सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस ने इस बार चिंतन शब्द को हटा नव संकल्प शिविर कर सन्देश देने की कि नेता यहां से नया संकल्प ले कर जाएंगे। अब देखना होगा संकल्प कितने कारगर होते हैं। क्योंकि पार्टी ने यदि ईमानदारी से अपने नए संकल्पों पर अमल किया तो सबसे पहले एआईसीसी में ही बड़ा बदलाव करना पड़ेगा।यह फैसला बहुत आसान नही होगा।क्योकि कई प्रमुख नेताओं को हटाना पड़ेगा।जो मौजूदा हालात में संभव नही लगता।युवाओं को 50 प्रतिशत जगह देने की बात कई गई।पार्टी इससे पहले भी महिलाओं ,युवाओं और पिछड़ों को सन्गठन में जगह देने के फैसले कई बार कर चुकी है,लेकिन उन्हें अमल में नही लाया गया।
महिलाओं को सन्गठन में 33 प्रतिशत बहुत दूर की बात रही 20 प्रतिशत आरक्षण भी नही दिया गया ।प्रियंका गांधी ने तो यूपी चुनाव में 40 प्रतिशत महिलाओं ओर युवाओं को टिकट दे कर नया प्रयोग किया था,लेकिन पार्टी को कोई फायदा नही हुआ। उल्टा करारी हार का सामना करना पड़ा। वैसे भी युवाओं की राजनीति कांग्रेस राहुल गांधी के 2004 से सक्रिय राजनीति में आने के बाद से लगातार कर रही है।इस राजनीति के चलते ही पार्टी में युवा बनाम बुजुर्गों का संघर्ष शुरू हुआ था।अब रहा सवाल पांच साल बाद पद छोड़ने का उसमे भी कई पेंच। अगर पांच साल वाला फामूर्ला लागू होता है तो सबसे पहले राहुल गांधी के करीबी संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और सबसे लंबे समय से महासचिव पद पर बने रहने का रिकार्ड बनाने वाले मुकल वासनिक को पद छोड़ना पड़ेगा। इनके साथ कई और पदाधिकारियों का नंबर भी आ सकता है।नेता इस प्रस्ताव को मानेंगे इस को लेकर भी संदेह है ।
इसके साथ एक परिवार से एक व्यक्ति को टिकट देने का फैसला केवल सन्देश भर देने का फैसला लगता है। क्योंकि अधिकांश नेताओँ के परिवार के सदस्य पहले ही पार्टी की सदस्य्ता ले सक्रिय राजनीति में बने रहते हैं।जिसके चलते वह कभी भी पद पा सकते हैं।हालांकि संकल्प शिविर में नेताओं ने सन्गठन को मजबूत करने के कई सुझाव दिए।बूथ स्तर से लेकर टॉप स्तर तक बदलाव की बातें की गई।युवा, महिलाओं के साथ अल्पसंख्यकों,पिछड़ों के लिये भी सन्गठन में आरक्षण देने की बात हुई है।जितनी बातें की गई हैं वह ऊपरी तौर पर बहुत अच्छी लग रही है।अब इसी बात पर नजर रहने वाली है कि कार्यसमिति इनमें से कितने सुझावों पर रविवार को मोहर लगाती हैं।इस शिविर की सबसे खास बात यह रही है आरंभ होने से पहले ही पार्टी इन सब मुद्दों को सार्वजिनक कर दिया।दूसरा कृषि, किसान,महंगाई,बेरोजगारी, सरकार की आर्थिक नीति,विदेश नीति पर खूब चर्चा हुई।लेकिन आने वाले चुनाव कैसे जीते जाए उसके लिये कोई रोड मैप पार्टी तय नही कर पाई।
संकल्प शिविर के आयोजन को सफल बनाने में राजस्थान के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत और प्रदेश अध्य्क्ष गोविंद सिंह डोटासरा ,आरटीडीसी के चेयरमेन धर्मेंद्र राठौर तथा पुखराज पराशर आदि नेताओ ने कोई कोर कसर नही छोड़ी। पूरा उदयपुर सोनिया,राहुल और प्रियंका गांधी के पोस्टर,हॉर्डिंग और वेनर से पटा था। राहुल गांधी शिविर में भाग लेने के लिये खुद ट्रेन से पहुंचे।एक तरह से राहुल ही मुख्य केंद्र बिंदु थे। अधिकांश नेताओं ने उनसे अध्य्क्ष पद फिर से सँभालने का आग्रह किया। ऐसे संकेत हैं राहुल सितंबर में होने वाले संगठन चुनाव अध्य्क्ष पद की जिम्मेदारी संभाल लेंगे।उसके बाद उनकी पद यात्रा निकालने की भी योजना है।
राहुल सभी कमेटियों में शामिल हुए।सोनिया गांधी शिविर में भाग लेने के लिये विमान से पहुंची थी। शिविर की शुरूआत में सोनिया गांधी ने अपने भाषण से केंद्र की मोदी सरकार को तो निशाने पर लिया ही लेकिन साथ ही नेताओ को बहुत कुछ हिदायत दी।मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने बीजेपी और संघ पर साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने का आरोप फिर दोहराया।कांग्रेस के सामने असल चुनोती ही आज का माहौल बना हुआ।बढ़ती बेरोजगारी,महंगाई और किसानों की समस्याओं को लेकर तमाम बातें हुईं।लेकिन धुर्वीकरण की राजनीति का तोड़ कांग्रेस की समझ में नही आ रहा है।इस मुद्दे पर कांग्रेस की क्या रणनीति रहती है यही देखना होगा।क्योंकि कांग्रेस के लिये आगामी राज्यों के चुनावों में धुर्वीकरण बड़ी चुनोती होगी।
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