India News (इंडिया न्यूज), Dismissed from Job: शादी के आधार पर एक नर्स को नौकरी से बर्खास्त करने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला सामने आया है। जहां कोर्ट ने कहा है कि शादी के आधार पर किसी महिला की नौकरी खत्म करना लैंगिक भेदभाव का एक बड़ा मामला है और लैंगिक पूर्वाग्रह पर आधारित कोई भी कानून संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है। जिसके बाद कोर्ट ने महिला को बकाया रकम के तौर पर 60 लाख रुपये देने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने सेलिना जॉन के अनुरोध पर आदेश पारित किया, जिन्हें 1988 में उनकी शादी के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उस समय वह लेफ्टिनेंट के पद पर थीं। उन्होंने 2012 में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण से संपर्क किया था, जिसने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और आदेश दिया कि उन्हें बहाल किया जाए। हालांकि 2019 में केंद्र ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
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मिली जानकारी के मुताबिक, 14 फरवरी के आदेश में बेंच ने कहा कि ट्रिब्यूनल के फैसले में किसी भी तरह के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। अदालत ने कहा कि साल 1977 में पेश किया गया एक नियम जो शादी के आधार पर सैन्य नर्सिंग सेवा से बर्खास्तगी की अनुमति देता था, फिर 1995 में वापस ले लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि ऐसा नियम स्पष्ट रूप से मनमाना है, क्योंकि किसी महिला की शादी के कारण उसका रोजगार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का गंभीर मामला है। ऐसे पितृसत्तात्मक मानदंडों को स्वीकार करना मानवीय गरिमा, गैर-भेदभाव और निष्पक्ष व्यवहार के अधिकार को कमजोर करता है। कानूनों और विनियमों पर आधारित लिंग पूर्वाग्रह संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है। महिला कर्मचारियों की शादी और घरेलू साझेदारी को पात्रता से वंचित करने का आधार बनाने वाले नियम असंवैधानिक होंगे।
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