India News (इंडिया न्यूज),Emergency: आपातकाल का वो दिन आज भी लोगों को भूला नहीं है 25 जून 1975 की रात काफी डरावनी साबित हुई थी। आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। अगली सुबह यानी 26 जून 1975 को भोर से पहले ही विपक्ष के कई बड़े नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। हिरासत में लिए गए नेताओं में कांग्रेस में अलग राग अलापने वाले चंद्रशेखर भी शामिल थे।
रायबरेली में इंदिरा गांधी के चुनाव प्रभारी यशपाल कपूर आईएएस अधिकारी थे। उन्होंने चुनाव की घोषणा के समय ही इस्तीफा दे दिया था, लेकिन चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के कारण उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हो सका। उन्हें या इंदिरा गांधी को शायद तब यह अहसास नहीं रहा होगा कि इसकी कितनी बड़ी कीमत उन्हें चुकानी पड़ सकती है। समाजवादी नेता राज नारायण ने इसी आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्हें भी हाईकोर्ट के इतने सख्त फैसले का अंदाजा नहीं रहा होगा। इस आधार पर उच्च न्यायालय ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। उच्च न्यायालय में अपील के लिए दिए गए समय के दौरान जब इंदिरा सुप्रीम कोर्ट गईं तो उन्हें आंशिक राहत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतिम फैसला आने तक इंदिरा लोकसभा की सदस्य बनी रह सकती हैं। हालांकि, उनके पास वोटिंग का अधिकार नहीं होगा।
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इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल लगाया, चाहे स्वेच्छा से या अपने बेटे के दबाव में। 26 जून की सुबह कैबिनेट से इसकी मंजूरी ली गई। नियमानुसार, पहले कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिलनी चाहिए थी, फिर सरकार अधिसूचना जारी करती। 25 जून 1975 की आधी रात से शुरू हुए आपातकाल की त्रासदी को देश भर के लोगों ने झेला। 21 महीने बाद 23 मार्च 1977 को इससे राहत मिली, जब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी। इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले विपक्षी नेताओं से जेलें भरने लगीं। जयप्रकाश नारायण इंदिरा के खिलाफ आंदोलन के नेता बन चुके थे। पहले दिन गिरफ्तार किए गए नेताओं में वे प्रमुख थे। जयप्रकाश नारायण समेत करीब एक लाख राजनीतिक विरोधियों को देश की विभिन्न जेलों में डाल दिया गया। पत्रकारों को भी जेल जाने से नहीं बख्शा गया। कुलदीप नैयर समेत करीब 250 पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया।
25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण का कार्यक्रम था, जिसमें राई के दाने के लिए भी जगह नहीं बची थी। इंदिरा को कोर्ट के फैसले से ज्यादा जेपी के आंदोलन का डर था। बिहार से शुरू होकर जेपी आंदोलन पूरे देश में फैलने लगा था। इंदिरा को इसी बात का डर था। सबसे पहले उन्होंने बहुमत का अनुचित लाभ उठाते हुए संविधान में संशोधन कर लोकसभा का कार्यकाल एक साल बढ़ा दिया। ऊपर से आपातकाल के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार भी छीन लिए गए। आपातकाल लगाने वाले संविधान संशोधन में जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव का भी प्रावधान था। प्रावधान किया गया कि सरकारी कर्मचारी का इस्तीफा सरकारी गजट में प्रकाशित होने के बाद ही काम होगा। इस्तीफा मंजूर करवाना जरूरी नहीं है। शायद यशपाल कपूर के कारण पैदा हुए हालात से बचने के लिए यह प्रावधान किया गया था।