By: Rana Yashwant
• UPDATED :India News (इंडिया न्यूज),Manmohan Singh: बात जून 1991 की है। मनमोहन सिंह, जो उस समय यूजीसी के अध्यक्ष थे, नीदरलैंड से एक सम्मेलन में भाग लेकर दिल्ली लौटे थे। उस रात, जब वे गहरी नींद में थे, तो उनके दामाद विजय तन्खा को पीसी अलेक्जेंडर का फोन आया। अलेक्जेंडर ने सिंह को तत्काल जगाने को कहा। यह फोन कॉल स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक बदलाव और बेहतरी का एक बड़ा टर्निंग प्वायंट साबित हुआ.
रअसाल 1991 में नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री बने तो कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा उनने मिलने आए और 8 पेज का टॉप सीक्रेट नोट दिया. इस नोट में लिखा था कि प्रधानमंत्री को कौन से काम पहले करने चाहिए. जब नरसिंह राव ने उस नोट को पढ़ा तो वे हैरान रह गए. भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार 89 करोड़ डॉलर ही बचा था जिससे आयात का केवल दो हफ्ते का खर्च ही उठाया जा सकता था. महंगाई भी लगभग 16.7 फ़ीसदी महंगाई दर थी.
Manmohan Singh
ऐसी विकट स्थिति में नरसिम्हा राव एक ऐसा वित्त मंत्री चाहते थे जो देश को उस संकट से निकाल सके. जिसकी दुनिया में साख भी अच्छी हो. नरसिम्हा राव ने इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे और खुद राव के करीबी आईएएस ऑफिसर पीसी अलेक्जेडर से इस बारे में सलाह-मशविरा किया. एलेक्जेंडर ने उन्हें रिजर्व बैंक के गवर्नर और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के डायरेक्टर रहे आईजी पटेल का नाम सुझाया. आईजी पटेल दिल्ली नहीं आना चाहते थे, क्योंकि उनकी मां बीमार थीं और वे वडोदरा में थे. इसके बाद पीसी अलेक्जेंडर ने मनमोहन सिंह का नाम रखा. राव ने मनमोहन सिंह से बात करने की जिम्मेदारी अलेक्जेंडर को ही दे दी. उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले मनमोहन सिंह को फोन किया औऱ पता चला कि वे बाहर से आए हैं औऱ सो रहे हैं. अलेक्जेंडर ने ना सिर्फ मनमोहन सिंह को जगाने को कहा बल्कि उनके पास मिलने गए औऱ बताया कि प्रधानमंत्री आपको वित्त मंत्री बनाना चाहते हैं.
मनमोहन सिंह को शायद पीसी एलेक्जेंडर की बात पर भरोसा नहीं हुआ. वे अगले दिन यूजीसी यानी दफ्तर चले गए. उसी रोज नरसिंहराव सरकार का शपथग्रहण था. खुद नरसिंहराव ने मनमोहन सिंह को फोन किया औऱ कहा कि आपको वित्त मंत्री बनाया जाना है. शपथग्रहण से पहले घर जाकर तैयार होकर आप आ जाइए. इस तरह से देश को 1991 में एक वित्त मंत्री मिला. नरसिंहराव ने मनमोहन सिंह से कहा अगर हम सफल होते हैं तो हम दोनों को इसका श्रेय मिलेगा लेकिन अगर हमारे हाथ असफलता लगती है तो आपको जाना पड़ेगा
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अपने पहले बजट भाषण में मनमोहन सिंह ने विक्टर ह्यूगो की उस मशहूर लाइन का ज़िक्र किया था कि “दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ पहुंचा है. 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने बजट में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से जुड़ी अहम घोषणाएं की, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार मिली. इसके चलते देश में व्यापार नीति, औद्योगिक लाइसेंसिंग, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति से जुड़े नियम-कायदों में बदलाव किए गए.
मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री का पद भी एक संयोग के तहत ही मिला. दस साल का वह काल कई घोटालों औऱ विवादों से भरा तो जरुर रहा लेकिन न्यूक्लियर डील और मंदी से बाहर भारत को निकालने में भूमिका, उनकी योग्यता, देश के प्रति निष्ठा और साहसिक फैसले लेने की क्षमता का प्रमाण रहेगी.
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