India News (इंडिया न्यूज),Hindu Muslim Unity: केरल के कोझिकोड में हर साल रमज़ान के 22वें दिन मुस्लिम समुदाय एक ऐतिहासिक परंपरा को निभाते हुए ज़मोरिन वंशजों से मिलकर आभार प्रकट करता है। यह परंपरा 1510 में मालाबार के हिंदू शासक ज़मोरिन द्वारा मिश्कल मस्जिद को पुर्तगालियों से बचाने और 1571 में उसके पुनर्निर्माण के आभार स्वरूप चली आ रही है। इस साल भी रविवार को यह परंपरा निभाई जाएगी, जब कोझिकोड के कार्यवाहक काज़ी और मिश्कल मस्जिद के काज़ी सफीर साकफी के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय का एक प्रतिनिधिमंडल ज़मोरिन के वर्तमान वंशज के.सी. उन्नी अनुजन राजा से मिलेगा और उन्हें एक स्मृति चिन्ह भेंट करेगा।
1510 में पुर्तगाली सेना के कमांडर अफोंसो डी अल्बुकर्क ने मिश्कल मस्जिद पर हमला कर उसे जलाने का प्रयास किया था। इस हमले को रोकने के लिए ज़मोरिन ने 500 सैनिकों की सेना भेजी, जिसमें अधिकतर नायर योद्धा थे। इन योद्धाओं ने स्थानीय मुस्लिमों के साथ मिलकर मस्जिद की रक्षा के लिए संघर्ष किया और कई सैनिकों ने अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए। हालांकि, मस्जिद का एक हिस्सा जल गया था और उसका मिहराब नष्ट हो गया था, लेकिन यह संघर्ष हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गया।
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इतिहासकारों के अनुसार, पुर्तगालियों ने मिश्कल मस्जिद को इसलिए निशाना बनाया था ताकि ज़मोरिन और अरब व्यापारियों के बीच मजबूत रिश्तों को तोड़ा जा सके। उस समय, अरब व्यापारी कोझिकोड में व्यापार के लिए आते थे और ज़मोरिन से उनके गहरे संबंध थे। इस साजिश के बावजूद ज़मोरिन ने 1571 में पुर्तगालियों को हराकर उनके चेलियम किले पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने किले को नष्ट कर दिया और उसकी बची हुई लकड़ियों का इस्तेमाल मिश्कल मस्जिद की मरम्मत के लिए किया। इतिहासकार पी. शिवदासन के अनुसार, यह भारत में यूरोपीय सेना की पहली हार थी, जिसने भारतीयों के प्रतिरोध की शक्ति को दर्शाया।
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कोझिकोड का कुट्टीचिरा इलाका मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, लेकिन यहां अन्य धर्मों के भी कई प्रमुख पूजा स्थल मौजूद हैं, जैसे श्री भगवान कालिकुंड पार्श्वनाथ जैन मंदिर और गुजराती मंदिर। यहां हिंदू, मुस्लिम और जैन समुदाय शांति और भाईचारे के साथ रहते हैं। काज़ी परिवार के वंशज और काज़ी फाउंडेशन के महासचिव एम.वी. रामसी इस्माइल का कहना है कि यह परंपरा हमारी एकता और सौहार्द को दर्शाती है। उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक से इसे और अधिक औपचारिक रूप दिया गया है ताकि यह ऐतिहासिक परंपरा आगे भी जारी रहे और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया जा सके।
देशभर में धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ते विवादों के बीच कोझिकोड की यह परंपरा सांस्कृतिक एकता का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती है। इतिहासकारों के अनुसार, ज़मोरिन और मिश्कल मस्जिद के बीच का यह ऐतिहासिक रिश्ता इस बात की याद दिलाता है कि भारत में धर्म से परे जाकर सांप्रदायिक सद्भाव की मिसालें कायम की गई हैं। आज जब ऐतिहासिक स्थलों और धार्मिक पहचान को लेकर बहसें तेज़ हो रही हैं, तब यह परंपरा एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि इतिहास में धर्म की दीवारों से ऊपर उठकर भी सहयोग और सह-अस्तित्व संभव था और आज भी है। कोझिकोड के मुस्लिम समुदाय का यह वार्षिक मिलन न केवल इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत और भाईचारा सबसे महत्वपूर्ण है।
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