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International Womens Day 2024: मेरा नाम, मेरा विकल्प

Vijayant Shankar • LAST UPDATED : March 8, 2024, 11:46 am IST
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International Womens Day 2024: मेरा नाम, मेरा विकल्प

International Womens Day 2024

India News (इंडिया न्यूज़), International Womens Day 2024, Vijayant Shankar: महिला दिवस, जो हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है, यह एक वैश्विक उत्सव है, महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने और लिंग समानता के लिए आवाज उठाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन का महत्व प्रारंभिक 20वीं सदी के श्रमिक आंदोलनों से होती है जहां महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ी थी, जिससे समानता की इस लम्बी यात्रा की शुरुआत हुई।

हर साल इस दिन महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाया जाता है, हालांकि, यह जश्न अधूरा है क्योंकि लिंग समानता की लड़ाई अभी भी जारी है। श्रीमती दिव्या मोदी टोंग्या का मामला इस लंबे संघर्ष का एक ताजा उदाहरण है। तलाक के बाद अपना पितृवार नाम वापस लेने के लिए श्रीमती टोंग्या ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उन्होंने उस सरकारी आदेश को चुनौती दी थी जिसमें ऐसा करने के लिए पति की अनापत्ति या तलाक पत्र की आवश्यकता होती है। यह मामला दर्शाता है कि समाज के मानदंडों और नियमों में आज 21वीं सदी में भी नारीविरोध मौजूद है।

जो महिलाएं अपने पितृवार नाम रखने का चयन करती हैं उनसे कई बार अनावश्यक सवाल पूछे जाते हैं और कई दस्तावेज मांगे जाते हैं, चाहे वो संयुक्त बैंक खाता खोलना हो, बच्चों को स्कूल में दाखिला लेना हो या पासपोर्ट के लिए आवेदन करना हो। यह पूर्वाग्रह सिर्फ उपनाम तक ही सीमित नहीं है, महिलाओं को कार्यबल से दूर रखा जाता है और निस्वार्थ ही घरेलू कामों का दबाव सहती हैं।

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हालांकि वैश्विक स्तर पर महिलाओं ने काफी प्रगति की है। मैरी क्यूरी एक भौतिक विज्ञानी और रसायनविद् थीं और नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला थीं। न्यूज़ीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न का कोविड-19 महामारी के दौरान प्रभावी नेतृत्व उल्लेखनीय है। महिलाएं उन क्षेत्रों में भी उभरी हैं जिनपर पुरुषों का वर्चस्व रहा है। कल्पना चावला, एक अंतरिक्ष यात्री, इंद्रा नूयी, एक कॉरपोरेट लीडर और बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार-शॉ ने बायोटेक्नोलॉजी उद्योग में अपनी छाप छोड़ी है। ऐसे कई उदाहरण है जहां विश्व भर में महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में भी उत्कृष्टता प्राप्त कर चुकी हैं, जहां उन्होंने पुरुष प्रधान समाज में अनसोची उपलब्धियां हासिल की हैं।

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भले ही हम कितना भी नाकार लें, लेकिन लिंग असमानता आज भी मौजूद है। समाज में अभी भी ये मानदंड मौजूद हैं कि एक महिला क्या कर सकती है और क्या नहीं। सिर्फ यह कहना कि महिलाएं समान हैं काफी नहीं है। हमें वास्तविक कानूनों और समाज से समर्थन की जरूरत है ताकि महिलाओं के साथ बराबरी का व्यवहार सुनिश्चित हो सके। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो असल में कोई बदलाव नहीं होगा।

जब हम आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हैं तो यह महत्वपूर्ण है कि हम महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को भी स्वीकार करें और उनका समाधान करने की कोशिश करें। लिंग पूर्वाग्रह और भेदभाव से मुक्त समाज की आज आवश्यकता है। “नाम या उपनाम में क्या रखा है?” यह सिर्फ एक सवाल ही नहीं है, बल्कि एक महिला की पहचान, उसके विकल्प और समानता के संघर्ष को दर्शाता है। हम ऐसी दुनिया के लिए प्रयास करना चाहिए जहां हर महिला आत्मविश्वास से कह सके, ‘मेरा नाम, मेरा विकल्प।’

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