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Jallianwala Bagh Massacre: आज के ही दिन गई थी जलियांवाला बाग में सैकड़ों लोगों की जान, जानिए इतिहास

Shalu Mishra • LAST UPDATED : April 13, 2024, 9:58 am IST

India News (इंडिया न्यूज़), Jallianwala Bagh Massacre: हर साल जब भी 13 अप्रैल की तारीख आती है, अंग्रेजों की निर्दयता की कहानी फिर से ताजा हो उठती है। उस घटना को आज 105 साल बीत चुके हैं लेकिन वो दुर्घटना आज भी लोगों को दुख देती है। ये कहानी है Jallianwala Bagh हत्याकांड की। भारत की आजादी की लड़ाई की सबसे दुखद और क्रूर घटनाओं में से एक है यो घटना। उस नरसंहार का दृश्य कैसा रहा होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आइए आपको इस खबर में बताते हैं कि आखिर क्यों हुआ था ये, कैसे हुआ था और इसमें कितने निर्दोषियों की जान गई थी।

क्यों हुई थी ये घटना

– इस घटना का कारण रोलेट एक्ट को बताया जाता है। भारतीयों के खिलाफ ये अंग्रेजों का ‘काला कानून’ था। इस कानून से लोगों की नाराजगी थी, भारतीय इसे स्वीकार नहीं करना चाह रहे थे।
-महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल, 1919 से एक अहिंसक ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ शुरू किया, ताकि हमारी एकता से अंग्रेजों की हुकुमत न चल सके।-लेकिन 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो प्रमुख नेताओं, सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे पूरे इलाके में काफी अशांति फैल गई। पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

-कानून के खिलाफ इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने के लिए अंग्रेजों ने मार्शल लॉ लागू किया। ब्रिगेडियर जेनरल डायर को पंजाब में कानून व्यवस्था संभालने का आदेश दिया गया। उसे जालंधर से अमृतसर बुलाया गया।

रोलेट एक्ट 

पहले वर्ल्ड वॉर (1914-18) के दौरान सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर रोलेट एक्ट पारित किया गया था। इस अधिनियम के अनुसार भारत में ब्रिटिश सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये विशेष अधिकार दिए गए थे। जिसके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता था। केवल शक के आधार पर उसे जेल में डाला जा सकता था जिसका भारतवसियों ने काफी विरोध किया था। 

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जलियावाला बाग हत्याकंड

13 अप्रैल बैसाखी का दिन होता है। उस साल भी हजारों लोग त्योहार की खुशियां मनाने अमृतसर पहुंचे हुए थे। बड़ी संख्या में लोग जलियावाला बाग घूमने भी पहुंचे थे। इस दिन यहां एक राजनीकित कार्यक्रम भी होना था और एक मेला लगा था, सैकड़ों में भीड़ उमड़ी थी। तब भी बिना किसी चेतावनी के ब्रिगेडियर जनरल डायर के नेतृत्व में 90 ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी वहां पहुंच गई। उस इलाके से बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए थे।

भारतीयों के साथ क्रूरता 

डायर ने अपने सैनिकों को भीड़ पर अंधाधुन गोलियां चलाने का आदेश दिया। डायर ने कहा- जहां ज्यादा लोग दिखें वहां गोलियां चलाते रहो। करीब 10 मिनट तक गोलियां चलती रहीं। कई लोगों ने भागने की कोशिश की। कई लोग गोलियों से बचने के लिए पास के कुएं में कूद गए। तब भी जान नहीं बच सकी। निर्दोषों की लाशें ऐसी बिखरी जिसका प्रकोप आज भी देखने को मिलता है।

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आज भी मिलते हैं साक्ष

माना जाता है कि उस दिन 1000 से ज्यादा भारतीयों को गोलियों से भून दिया गया था। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने सिर्फ 379 का ही आंकड़ा दिया। आज भी जलियांवाला बाग की दीवारों पर उन गोलियों के निशान मौजूद हैं, जहां उन अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ क्रूरता की थी।

क्या मिला परिणाम

-इस हत्याकांड की भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में निंदा की गई। यह देश के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। पूरे भारत में व्यापक आक्रोश फैल गया। बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। ब्रिटिश शासन को खत्म करने का आह्वान किया गया।
-इस घटना की जांच हंटर कमीशन द्वारा की गई, जिसने डायर के कार्यों की आलोचना की। लेकिन उसे सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया। डायर को सजा सिर्फ इतनी मिली कि उसे पद से हटा दिया गया और रिटायर होने के लिए कहा गया।

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