India News (इंडिया न्यूज), Karnataka High Court: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मस्जिद के अंदर ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए दो लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि, इससे किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंची है। दरअसल, यह आदेश पिछले महीने पारित किया गया था और मंगलवार (15 अक्टूबर) को अदालत की साइट पर अपलोड किया गया। शिकायत के मुताबिक, दक्षिण कन्नड़ जिले के दो लोग पिछले साल सितंबर में एक रात मस्जिद में घुसे और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए। इसके बाद, स्थानीय पुलिस ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। जिसमें धारा 295 ए (धार्मिक विश्वासों को ठेस पहुंचाना), 447 (आपराधिक अतिक्रमण) और 506 (आपराधिक धमकी) शामिल हैं।
बता दें कि, आरोपियों ने अपने खिलाफ आरोपों को खारिज करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके वकील ने तर्क दिया कि मस्जिद एक सार्वजनिक स्थान है और इसलिए आपराधिक अतिक्रमण का कोई मामला नहीं बनता है। साथ ही वकील ने यह भी तर्क दिया कि ‘जय श्री राम’ का नारा लगाना आईपीसी की धारा 295 ए के तहत परिभाषित अपराध की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है। बार एंड बेंच ने अदालत के हवाले से कहा कि धारा 295ए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से की गई कार्रवाई से संबंधित है। यह समझ में आता है कि अगर कोई ‘जय श्री राम’ का नारा लगाता है, तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी।
Karnataka High Court: मस्जिद के अंदर लगेंगे ‘जय श्री राम’ के नारे?
अदालत ने कहा कि, जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू और मुसलमान सौहार्द के साथ रह रहे हैं, तो इस घटना की किसी भी तरह से व्याख्या नहीं की जा सकती। खैर, इस दौरान अदालत ने माना कि उक्त अपराध का सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि आईपीसी की धारा 295ए के तहत कोई भी कृत्य अपराध नहीं माना जाएगा। ऐसी कार्रवाई जिसका शांति स्थापित करने या सार्वजनिक व्यवस्था को नष्ट करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उसे आईपीसी की धारा 295ए के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। किसी भी कथित अपराध के किसी भी तत्व के अभाव में, इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और इसके परिणामस्वरूप न्याय की विफलता होगी।