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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली।
Kgf Chapter 2 History Of Kolar Gold Fields : Kgf Chapter 2 के ट्रेलर के बाद से फैंस बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं। दर्शकों को सदियों पुरानी सोने की खदान के बारे में जानन की काफी उत्सुकता बन गई है। वे जानना चाहते हैं कि खदान का असली मालिक आखिर कौन बनेगा। यदि आपका मानना है कि यह फिल्म और सोने की खदान काल्पनिक है, तो आप गलत सोच रहें हैं। यहां आपको बता दें कि ये खदान असली है। यही नहीं 121 सालों तक यहां से सोना निकाला गया है।
केजीएफ यानि कोलार गोल्ड फील्ड्स ङॠऋ कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में है और बैंगलोर-चेन्नई एक्सप्रेसवे पर 100 किलोमीटर दूर केजीएफ टाउनशिप है. यह जगह कई मायनों में खास है। 1871 में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था तब ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने बेंगलुरू में अपना घर बनाया।
वे अधिकांश समय किताबों और आर्टिकल के बीच गुजारते थे। उन्हें भारत के इतिहास में भी काफी रूचि थी। ऐसे ही एक दिन 1804 में छपे एशियाटिक जर्नल का एक लेख देखा। लेख में कहा गया था कि कोलार में इतना सोना है कि लोग हाथ से जमीन खोदकर ही उसे निकाल लेते हैं।
1799 की श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को मारने के बाद कोलार और आस-पास के इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया था। बाद में यह जमीन मैसूर राज्य को दे दी गई पर कोलार को शासकों ने अपने हिस्से में रखा। वो जानते थे कि यहां सोना है। अलस में चोल साम्राज्य में लोग जमीन को हाथ से खोदकर ही सोना निकालते थे।
ब्रिटिश सरकार के लेफिटनेंट जान वारेन ने वहां सोने का पता देने वालों को ईनाम देने तक की घोषणा कर रखी थी। जिसके बाद कोलार गांव से बैलगाड़ी में सवार होकर कुछ ग्रामीन वारेन के पास पहुंचे। जब उन्होंने वारेन के सामने अपनी बैलगाड़ी के पहिए साफ किए तो उसकी मिट्टी में से सोने के अंश निकले।
लंबी पड़ताल के बाद समझ आया कि कोलार के लोग जिस तरीके से हाथ से खोदकर सोना निकालते हैं, उससे 56 किलो मिट्टी से गुंजभर सोना निकाला जा सकता था। इसके बाद 1804 से 1860 के बीच अंग्रेजों ने काफी कोशिश की कि जमीन से सोना निकाला जा सके। इस काम में ग्रामीणों को लगाया गया, कईयों की जान तक चली गई पर कुछ खास हासिल नहीं हुआ।
1873 में लेवेली ने मैसूर के महाराज से कोलार में खुदाई की अनुमति ले ली और काम शुरू हुआ। लेवेली को 20 साल तक खुदाई की अनुमति मिली, जिसमें से शुरू के दो साल तो उसे केवल मजदूर जमा करने में लग गए। 1875 में साइट पर काम शुरू हुआ और सोने की खेप निकली। सोना निकालने वाले मजदूर भी हैरान थे कि वो इतने सालों तक सोने के भंडार पर जी रहे थे और उन्हें खबर नहीं हुई।
केजीएफ की खदानों में 24 घंटे काम चलता था। औरतें, आदमी, बच्चे सभी खदानों में काम करते। वहीं रहते, वहीं सोते और खुदाई कर के बस सोना निकलाते. खदानों में अंधेरा दूर करने के लिए चिमनी का उपयोग होता था लेकिन अंग्रेजों ने यहां से सोना निकालने के चक्कर में बिजली तक पहुंचा दी। केजीएफ भारत का पहला क्षेत्र है जहां बिजली आई थी। भोलेभाले ग्रामीण बिजली का बल्व देखकर सोच रहे थे कि सोने ने उनकी किस्मत चमका दी पर इससे केवल अंग्रेजों की जेब भरती रही।
कोलार गोल्ड फील्ड की बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए वहां से 130 किलोमीटर दूर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया। जापान के बाद यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट है। जो आज भी कर्नाटक के मांड्या जिÞले के शिवनसमुद्र में है। बिजली पहुंचने के बाद बहुत सारा काम मशीनों के जरिए शुरू हो गया। जिससे खदान के काम में तेजी आई। 1902 आते-आते केजीएफ भारत का 95 प्रतिशत सोना निकालने लगा। और 1905 आते तक सोने की खुदाई के मामले में भारत दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गया।
केजीएफ सोने की खान तो था ही, यह अंग्रेजों के लिए पर्यटन क्षेत्र भी बन गया। यहां का मौसम ठंडा था इसलिए केजीएफ को भारत का इंग्लैंड कहकर पेश किया गया और कई अंग्रेज परिवार समेत यहां आकर बस गए. एक समय में खदान में 30 हजार मजदूर काम करते थे पर धीरे—धीरे आसपास के राज्यों से भी मजदूर आए और उनकी संख्या लाखों में हो गई.
मजदूरों के परिवार खदान के आसपास ही घर बनाकर रहने लगे और कोलार लोगों से भर गया। 1947 में भारत आजाद हो गया। अंग्रेज देश से चले गए। वो अपने साथ जितना सोना ले जा सकते थे ले गए। इसके बाद केजीएफ के राष्ट्रीयकरण की बात उठी। सरकार का गठन हुआ और 1956 में इस खान का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
1970 में भारत सरकार की भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी के नाम से खदान को फिर चालू करवा दिया। हालांकि मजदूरों के लिए कुछ नहीं बदला. वो पहले अंग्रेजों के लिए काम कर रहे थे फिर भारत सरकार के लिए करने लगे। हालांकि भारत सरकार भी खदान में कुछ खास नहीं रह पाई। अंग्रेज अपने साथ पहले ही अधिकांश सोना ले जा चुके थे।
1979 तक तो ये स्थिति आ गई कि कंपनी मजदूरों को वेतन तक नहीं दे पा रही थी। मजदूरों और कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। कंपनी इतनी घाटे में चली गई कि वो अपने बिजली के बिल तक नहीं भर पाई। जिसके चलते खदान में काम बंद हो गया। कुछ साल यूं ही गुजरे और 2001 में भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने खुदाई बंद कर दी।
अब यहां बस खंडहर बचे हैं। केजीएफ में 121 सालों तक सोने की खुदाई हुई और सरकारी हिसाब बताता है कि यहां से करीब 900 टन सोना निकला। हो सकता है कि ये हमारी सोच से और भी ज्यादा हो! बहरहाल 2016 में एक बार फिर केजीएफ को जिंदा करने के लिए नीलामी की प्रक्रिया पर बात हुई पर अभी बस बात ही हुई है। सरकार का मानना है कि यहां और भी सोना हो सकता है।
केजीएफ की कहानी में मजदूरों वाला फैक्टर बिल्कुल सटीक है। वो अंग्रेजों के गुलाम रहे और फिर आजाद भारत में बने खदान के ठेकेदारों के! वो सोना खोदते थे पर उनका जीवन अंधेरों में ही गुजारा। कोलार की खंडहर होती खदानों में बहुत से मजदूरों की लाशें दफन हैं, जो सोने की तलाश में गए और फिर कभी लौट न सके। Kgf Chapter 2 History Of Kolar Gold Fields
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