संबंधित खबरें
Rinku Singh से कितनी गरीब हैं सपा सांसद प्रिया सरोज? सगाई रूमर्स के बीच सामने आई नेटवर्थ, फटी रह जाएंगी आखें
लालू के सामने ही दो फाड़ होगा राजद! पावर को लेकर तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच देखने को मिला सिर फुटव्वल
RG Kar Medical College Case : आरजी कर मेडिकल कॉलेज केस में आज आएगा फैसला, जानिए अबतक कितने लोगों को CBI कर चुकी है गिरफ्तार
Petrol-Diesel Prices Today: पेट्रोल-डीजल भराने वाले लोगों को आज भी नहीं मिली कोई राहत, लगातार कीमत बनी हुई है स्थिर
शीतलहर से कांप रहा देश, नहीं खत्म हो रहा कोहरे का घमासान, बारिश के दिख रहे हैं आसार, जानें वेदर अपडेट
यूं हि नहीं दे दिया जाता है किसी को भी निमंत्रण…गणतंत्र दिवस पर चीफ गेस्ट चुनने के लिए 6 महिने तक होता है ये काम, दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश के राष्ट्रपति होंगे मुख्य अतिथि
India News (इंडिया न्यूज), Khinwsar Vidhansabha Seat : राजस्थान विधानसभा चुनाव में महज कुछ दिनों का समय बचा है। इससे पहले हम आपको राजस्थान की सारी प्रमुख सीटों की जानकारी लगातार दे रहे हैं। इसी क्रम में आज हम नागौर की खींवसर विधानसभा सीट के बारे में बात करेंगे। Khinwsar Vidhansabha Seat राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिहाजे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
बता दें कि यह सीट 2008 से पहले मुंडवा निर्वाचन क्षेत्र के नाम से जानी जाती थी। 2008 में यह सीट अस्तित्व में आई है। इस सीट पर बेनीवाल परिवार की पकड़ है। यहां से दो बार हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव जीत हासिल की थी। जिसके बाद हनुमान बेनीवाल और फिर उनके भाई नारायण बेनीवाल ने चुनाव जीता। पिछले 40 सालों से इस सीट पर बेनीवाल वर्सेस मिर्धा की सियासी अदावत जारी है।
विधानसभा चुनाव 2008 में यह सीट मुंडवा विधानसभा सीट के नाम से जानी जाती थी। इस सीट से रामदेव के अलावा एक बार हरेंद्र मृदा तीन बार हबीब बुक रहमान और एक बार उषा पूनिया ने जीत हासिल की है। रामदेव ने 1977 में कांग्रेस की ओर चुनाव लड़ा था। जिसके बाद उन्होंने 1985 में लोक दल की ओर से चुनाव लड़ा। जिसके बाद 2008 में हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी, 2013 में निर्दलीय और 2018 में अपनी पार्टी आरएलपी से चुनावी मैदान में उतरे और जीत भी हासिल किया। वहीं 2019 के उपचुनाव में बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल ने भी जीत हासिल की। बता दें कि यह सीट बेनीवाल की पारंपरिक सीट कही जाती है।
अगर सीट पर जातिय समीकरण की बात करें तो यहां शुरु से जाट समाज का दबदबा रहा है। इसके अलावा बड़ी संख्या में दलित मतदाता भी रहते हैं। बता दें कि यहां बेनीवाल और मिर्धा की लड़ाई 40 साल से चली आ रही है। साल 1980 में हरेंद्र मिर्धा ने हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव को हराया था। जिसके अगले चुनाव 1985 में रामदेव ने मिर्धा को शिकस्त दी थी।
• 1977- राम देव (कांग्रेस जनरल)
• 1980- हरेन्द्र मिर्धा (कांग्रेस जनरल)
• 1985- राम देव (एलकेडी-जनरल)
• 1990- हबीबुर रहमान (कांग्रेस जनरल)
• 1995 – हबीबुरेहमान (कांग्रेस जनरल)
• 1998 – हबीबुरेहमान (कांग्रेस जनरल)
• 2003 उषा पुनिया (भाजपा-जनरल)
Also Read:-
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.