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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
फिल्म ‘पृथ्वीराज’ को लेकर जो बवाल हो रहा है, बॉलीवुड की दुनिया में ये कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कई फिल्मों में विवाद हो चुका है, जैसे-फिल्म पद्मावत, उड़ता पंजाब, द कश्मीर फाइल्स आदि। फिलहाल ”पृथ्वीराज” फिल्म को लेकर जो विवाद है, इसमें राजस्थान के गुर्जर और राजपूत दोनों समुदायों का दावा है कि पृथ्वीराज चौहान उनके समुदाय से थे। पृथ्वीराज चौहान कौन थे। पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे या राजपूत। इस बात में कितना सत्य है, आइए जानते हैं-
पृथ्वीराज के बारे में जानकारी केवल कुछ ही समकालीन शिलालेखों में उपलब्ध हैं। पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा के नाम से जाना जाता था। पृथ्वीराज चौहान (चाहमान) वंश के राजा थे। उन्होंने सपदलक्ष क्षेत्र पर शासन किया और उनकी राजधानी अजमेर थी।
1166 में पृथ्वीराज का जन्म हुआ था। 1177 में नाबालिग रहते हुए ही उन्हें राजगद्दी मिल गई थी। पृथ्वीराज को जो राज्य विरासत में मिला, वह उत्तर में थानेसर से दक्षिण में जहाजपुर (मेवाड़) तक फैला था। इसके चलते ही उन्होंने विस्तारवादी नीति अपनाई। साथ ही पड़ोसी राज्यों के खिलाफ सैन्य कार्रवाईयों विशेष रूप से चंदेलों को हराकर अपने राज्य का विस्तार किया।
पृथ्वीराज ने आसपास के राजपूत वंश के राजाओं को एकजुट किया और 1191 ईस्वी में तराइन के पहले युद्ध में मोहम्मद गोरी को हराया था। युद्ध में बुरी तरह घायल होने के बाद मोहम्मद गौरी भाग गया था। वहीं कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, पृथ्वीराज ने युद्ध जीतने के बावजूद गौरी को जिंदा छोड़ दिया था। हालांकि 1192 ईस्वी में गोरी तुर्की घुड़सवार तीरंदाज सेना के साथ लौटा और तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया। इसके बाद गोरी ने सिरसा में पृथ्वीराज को पकड़ लिया और उनकी हत्या कर दी।
अक्षय कुमार के लीड रोल वाली फिल्म ”पृथ्वीराज” 3 जून 2022 को रिलीज हो रही है। फिल्म में अक्षय कुमार के अलावा संजय दत्त, सोनू सूद, आशुतोष राणा और मानव विज मुख्य भूमिकाओं में नजर आने वाले हैं। वहीं जब से फिल्म के पोस्टर और ट्रेलर रिलीज हुए हैं, तब से फैंस उनकी इस फिल्म के रिलीज होने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अपने रिलीज से पहले खिलाड़ी अक्षय कुमार की ये फिल्म विवादों में फंसती नजर आ रही है।
गुर्जर समुदाय का दावा है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे न कि राजपूत। गुर्जर नेता हिम्मत सिंह ने कहा कि पृथ्वीराज फिल्म चंदबरदाई की आरे से लिखी गई ‘पृथ्वीराज रासो’ पर आधारित है और ऐसा ही पृथ्वीराज फिल्म के टीजर में देखने को मिल रहा है।
बता दें कि पृथ्वीराज रासो पिंगल भाषा में लिखी गई है, जोकि ब्रज और राजस्थानी भाषा का मिश्रण है। हिम्मत सिंह का कहना है कि गुर्जर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासन के दौरान संस्कृत भाषा का इस्तेमाल होता था, पृथ्वीराज रासो में प्रयोग की गई पिंगल भाषा का नहीं।
इतिहास में उपलब्ध अभिलेखों के अध्ययन के आधार पर रिसर्चर्स का मानना है कि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान के शासन के करीब 400 साल बाद 16वीं सदी में पृथ्वीराज रासो लिखी थी, जो कि काल्पनिक है। चंदबरदाई को ब्रज भाषा का पहला कवि माना जाता है, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के जीवन का वर्णन करने वाला महाकाव्य पृथ्वीराज रासो लिखा था।
अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा के संरक्षक आचार्य वीरेंद्र विक्रम का दावा है कि कदवाहा और राजोर के शिलालेखों में, तिलक मंजरी, सरस्वती कंठाभरण, पृथ्वीराज विजय के शिलालेखों में पृथ्वीराज के गुर्जर होने के प्रमाण मिले हैं।
उनका कहना है कि पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के सर्ग 10 के श्लोक नंबर 50 में पृथ्वीराज के किले को गुर्जर दुर्ग लिखा है। जबकि सर्ग 11 के श्लोक नंबर 7 और 9 में गुर्जरों द्वारा गोरी को पराजित करने का जिक्र है। इससे यह साबित होता है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर समुदाय से थे। वहीं वीरेंद्र विक्रम का दावा है कि पृथ्वीराज रासो के आदि पर्व के पार्ट 1 के 613वें छंद में पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर को गुर्जर के रूप में वर्णित किया गया है।
राजपूत समुदाय ने पृथ्वीराज चौहान को लेकर किए गए गुर्जरों के दावों पर आपत्ति जताते हुए राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता वीरेंद्र सिंह कल्याणवत का कहना है कि गुर्जर शुरूआत में ‘गउचर’ थे, जो इसके बाद गुज्जर और फिर गुर्जर में परिवर्तित हुए। वे मुख्यत: गुजरात से आते है और इसीलिए उन्हें ये नाम मिला। गुज्जर शब्द गउचर शब्द से आया और ये लोग सिंधु घाटी में रहते थे। इसी तरह राजपूत शब्द राजपूताना से आया, जाति के आधार पर हम क्षत्रिय हैं।
कल्याणवत का कहना है कि पृथ्वीराज के वंशज अजमेर में रह रहे हैं। उनके पास अपने वंश का पूरा प्रमाण है। भारत में वंशावली का पता लगाना कठिन नहीं है। क्योंकि गया, हरिद्वार और पुष्कर में पीढ़ियों के पुराने रिकॉर्ड संरक्षित हैं। यहां तक कि सरकारें भी उन्हें वैध रिकॉर्ड के रूप में स्वीकार करती हैं।
मोहम्मद गौरी इसके बाद चौहान को अपनी बाण चलाने की प्रतिभा दिखाने की चुनौती देता है। इस दौरान मोहम्मद गौरी एक बहुत ऊंचे स्थान पर बैठा था। चौहान और उनके राजकवि चंदबरदाई उनके साथ ही नीचे जमीन पर बैठे हुए थे। 25 गज की ऊंचाई पर घंटा टंगा हुआ था। चौहान को घंटे की आवाज पर ही निशान लगाना था। बाएं-दाएं का हिसाब लगाकर कवि ने अपने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को अपनी कविता ”चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुलतान है मत चूको चौहान”के जरिए ये जानकारी दी कि मोहम्मद गौरी कहां और कितना ऊपर बैठा है।
इसके बाद चौहान ने अपनी अंगुलियों से गणना की और जब घंटा बजा, तब चौहान ने सीधे मोहम्मद गौरी को ही निशाना बना दिया। बाण लगते ही गौरी अपने तख्त से लुढ़ककर सीधे नीचे आ गया और उसकी मौत हो गई। गौरी की सेना पृथ्वीराज और चंदबरदाई को मारती इसके पहले ही वे दोनों एक-दूसरे के सीने में चाकू मारकर वीरगति को प्राप्त हो गए। माना जाता है कि चंदबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे।
पृथ्वीराज चौहान को अंतिम हिंदू सम्राट माना जाता है। चंदबरदाई की ब्रजभाषा में लिखी कविता पृथ्वीराज रासो में 12वीं शताब्दी के राजा पृथ्वीराज चौहान को एक निडर और कुशल योद्धा बताया गया है। चंदबरदाई ने अपने कविता के अंत में लिखा है कि 1192 ईस्वी में तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गोरी से हार के बाद पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया जाता है। चौहान को गजनी ले जाया गया, जो आज का अफगानिस्तान है। यहां पर पृथ्वीराज चौहान को अंधा कर कैद कर दिया जाता है। कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान को शब्दभेदी बाण चलाना आता था।
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