India News (इंडिया न्यूज़), Governors Power, दिल्ली: तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन रवि ने बीते दिनों राज्य सरकार में मंत्री सेंथिल बालाजी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने का आदेश जारी किया। गुरुवार रात तक इस फैसले पर रोक लगा दी गई और कहा की राज्यपाल इस मामले में देश के अटॉर्नी जनरल से सलाह के बाद फैसला लेंगे। एक बार फिर देश में राज्यपालों की शक्ति पर बहस शुरु हो गई। क्या राज्यपाल के पास यह अधिकार है की वह किसी मंत्री को हटा सकते है? कानून इस मामले में क्या कहता है? आइए इसे जानते है।
भारतीय संविधान का भाग 6 देश के संघीय ढांचे के महत्त्वपूर्ण हिस्से यानी राज्यों से संबंधित है। संविधान में अनुच्छेद 152 से 237 तक राज्यों से संबंधित विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। राज्य की शासन पद्धति भी संसदीय है। संविधान के अनुच्छेद 153 अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। अनुच्छेद 155 के तहत राष्ट्रपति राज्यपाल को नियु्क्त करते है। जिस प्रकार केंद्र में शासन प्रमुख रूप में राष्ट्रपति होता है, उसी प्रकार राज्यों में एक संवैधानिक प्रमुख की व्यवस्था की गयी है।
राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख होता है। राज्यपाल राज्य में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है इसके साथ ही राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख की भूमिका भी निभाता है। राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति भी होते हैं। संविधान के 7 वें संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यों के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 164(1) के तहत प्रावधान है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्तियां मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा की जाएगी। राज्यपाल के पास ना तो किसी मंत्री को नियुक्त करने और ना ही किसी को मंत्रिमंडल से हटाने की शक्ति है। राज्यपाल सिर्फ मुख्यमंत्री की सलाह पर ही कैबिनेट में मंत्री को नियुक्त कर सकता है।
शमशेर सिंह बनाम पंजाब सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच के फैसले में साफ कहा गया था कि राज्यपाल के मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ जाने देने से राज्य के भीतर ही एक अलग समानांतर सरकार की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसी तरह संजीवी नायडू बनाम मद्रास सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख है और सरकार का संचालन मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है।
नबम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल सिर्फ मंत्रिपरिषद की सलाह पर फैसले ले सकते हैं। संविधान सभा में भी इस मामले को लेकर डॉ. बीआर आंबेडकर ने कहा था कि राज्यपाल संविधान के तहत राज्यपाल खुद से कोई फैसले नहीं ले सकता। उनके कुछ कर्तव्य हैं।
तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार में ऊर्जा मंत्री सेंथिल बालाजी का जन्म 21 अक्टूबर, 1975 में करूर जिले में हुआ था। उन्होंने 1997 में राजनीति में एंट्री की और फिर पहली बार निकाय चुनाव लड़ा। साल 2000 में सेंथिल बालाजी को पहली बार करूर क्षेत्र से विधानसभा जाने का मौका मिला और अगले चुनाव भी जीत दर्ज की। हालांकि, 2016 में सेंथिल बालाजी ने अरवाकुरिची निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, लेकिन 2021 में उन्होंने वापस करूर सीट से अपनी किस्मत आजमाई, जहां पर उन्हें सफलता मिली।
अन्नाद्रमुक (AIADMK) सरकार में शामिल रहे सेंथिल बालाजी पर पैसे की एवज में नौकरी देने का आरोप है। दरअसल, साल 2011 से 2015 के बीच में हुए एक नौकरी घोटाले में सेंथिल बालाजी आरोपी हैं। उस समय वह तत्कालीन अन्नाद्रमुक सरकार में परिवहन मंत्री थे। हालांकि, जे जयललिता के निधन के बाद उन्होंने अन्नाद्रमुक को अलविदा कहा और साल 2018 में द्रमुक का दामन थाम लिया था।
मेट्रो ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (MTC) में एक तकनीकी कर्मचारी द्वारा साल 2018 में शिकायत दर्ज कराई गई थी। जिसके बाद मद्रास हाई कोर्ट में यह मामला उठा था। कहा तो यहां तक जाता है कि पैसे लेने के बावजूद उम्मीदवारों को नौकरी नहीं दी गई थी।
तमिलनाडु के बिजली और आबकारी मंत्री वी सेंथिल बालाजी के ठिकानों पर 24 घंटे छापेमारी के बाद ईडी ने उन्हें 14 जून को गिरफ्तार कर लिया था। इस दौरान मंत्री की तबीयत बिगड़ गई थी और वो पुलिस हिरासत में अस्पताल ले जाए जाने तक रोते दिखाई दिए थे। मंत्री से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत नौकरी घोटाले को लेकर पूछताछ की गई। इस पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया।
यह छापेमारी करीब 24 घंटे तक चली और उनसे पूछताछ भी की गई। इसके बाद उन्हें बताया गया कि उन्हें जांच एजेंसी ने गिरफ्तार कर लिया है। अपनी गिरफ्तारी की खबर सुनने के बाद उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की और उन्हें चेन्नई के सरकारी अस्पताल भेज दिया गया।
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