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नई दिल्ली।
भले ही किसान आंदोलन (Farmers Protest) समाप्त हो चुका है। किसान वापस अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही किसान आंदोलन को लेकर अनेक सवाल हैं जो लोग जानना चाहते हैं। इस बारे में आज समाज और इंडिया न्यूज के संपादकीय निदेशक आलोक मेहता ने किसान आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहे एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
सवाल : चौधरी चरण सिंह ने किसान आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी। उस वक्त के किसान आंदोलन और आज के किसान आंदोलन में क्या अंतर है? वहीं मांगें हैं या कुछ अलग हैं?
जवाब : हर 10-20 साल बाद आंदोलनों (Farm Bills) का स्वरूप बदलता रहता है। चौधरी चरण सिंह चाहते थे कि भारत के विकास में खेती और किसान केंद्र में रहे। सरकारों का ध्यान बिजनेस, उद्योग, कारोबार पर केंद्रीत है। सामाजिक भेदभाव हो रहा है। इस आंदोलन में किसानों की ताकत ने इसे राजनीति के एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया। इससे किसान जागरूक हुआ और उसे अपनी ताकत का अहसास हुआ। इस आंदोलन के मेरे हिसाब से तीन फायदे हुए। पहला कि किसानों में आत्मसम्मान की भावना आई। दूसरा उन्हें अपनी एकता का अहसास हुआ और तीसरा और सबसे अहम कि किसानों ने अपनी राजनैतिक ताकत को बढ़ाया।
सवाल : क्या कम्युनिस्ट पार्टी को जीवित करने के लिए किसान मोर्चे का सहारा लिया? क्या भारत में भी माओवादी क्रांति की तरह से किसानों के बल पर एक पूरी क्रांति ही करने की तैयारी की जा रही है या की गई है?
जवाब : भारत में बड़े किसान संगठन की शुरूआत 1936 में हुई। अखिल भारतीय किसान सभा जो उस जमाने में सोशलिस्ट होती थी। बाद में कहने को तो इस देश के किसान आंदोलन में कम्युनिस्टों का भी योगदान है उसको नकारना इस देश के इतिहास को नकारना अब एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस आंदोलन की खूबसूरती ये है कि बहुत समय बाद हरा और लाल और पीला तीनों एक मंच में आए। Delhi Chalo March
ये पहला राष्ट्रव्यापी आंदोलन था जिसमें किसान यानि कि एक समर्थ किसान जमींदार दूसरी तरफ लाल झंडे हरे झंडे वाले थे। दूसरी तरफ लाल झंडे वाले जो खेतिहर मजदूर है छोटा किसान है उसके प्रतिनिधि और पीला मैंने वैसे ही इस्तेमाल कर दिया लेकिन पर्यावरण की सोच रखने वाले दूसरी सोच सब लोग इसमें आकर मिले। (new farm bill)
अब खोजने वाले जरूर इसमें कुछ कमियां खोजेंगे इसमें कुछ गलत सोचेंगे इसमें कुछ खालिस्तानी बोलेंगे इसमें कुछ ये विचार आएंगे सब कुछ ढूंढ़ा जाएगा और जब भी कोई बड़ा आंदोलन होता है उसका सब लोग फायदा उठाते हैं। लेकिन ये आंदोलन किसी एक विचारधारा का नहीं था और यही इसकी सफलता का राज। (agri bills)
सवाल : मंडियों में जो दलाल हैं इससे मुक्ति मिलने का क्या उपाय है। आपकी सेंट्रल कमेटी इस बारे में क्या सोच रही है?
जवाब : अच्छी बात ही ये है चूंकि इसमें कुछ लेफ्ट विचारधारा के लोग भी आए तो इसीलिए छोटे किसान की बात खेतिहर मजदूर की बात इस आंदोलन से गायब नहीं हो सकती। मुझे तो लगा कि इस चीज का स्वागत करेगी चूंकि आप छोटे किसानों के बारे में चिंता है और जो आपने खूब सवाल उठाया क्या इस आंदोलन के बाद किसान का शोषण खत्म हो गया। क्या इस आंदोलन से किसानों की मूल समस्याएं समाप्त हो गई। समस्याएं खत्म नहीं हुई हैं। (farmers protest)
अगर कोई कहे कि इस आंदोलन (kisan andolan) से इस देश के किसानों की 70-75 साल की जो समस्याएं चल रही थीं वो समस्याएं बड़े स्तर पर निदान गई। बिल्कुल नहीं। आंदोलन भी दिखा कि क्या हमने क्या हासिल किया? हमने हासिल किया है कि इस देश के किसान पर जो एक नई मुसीबत लादने की कोशिश की जा रही थी उसको किसान ने खड़े होकर पलटा दिया है।
इस देश में खेती किसान का नया निजाम लाने की तो कोशिश की जा रही है। मामला सिर्फ तीन लोगों का नहीं क्योंकि तीन कानून एक इशारा था अगले 20-30 साल में खेती किसानी में जो होने जा रहा था उसका मूल भाषा में कहूं तो इस देश की खेती किसानी को किसान के हाथ से छीनकर कंपनियों के हाथ में देने की शुरूआत हुई। ये बिल्कुल शुरूआती पहला कदम था और इस देश के किसानों ने पहले कदम उठा के काट दिया है यह हुआ है बस।
क्या इससे खेती किसानी की जो समस्याएं चली आ रही थीं वो समाप्त होंगी। बिल्कुल नहीं हुई। मैं तो बिल्कुल स्पष्ट कहता हूं नहीं हुई इसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा। क्या इसके लिए सुधार चाहिए। बहुत सुधार। लेकिन इस आंदोलन में किसान ने दो तीन चीज हासिल की है।
एक तो सबसे बड़ी बात जो मैंने शुरू में कहा कि साल में अपना आत्म सम्मान हासिल किया है क्योंकि जिस समाज का अपना आत्म सम्मान खो जाता है वो फिर कोई लड़ाई नहीं लड़ सकता आगे से पहले लोग शादी करने को क्या पता कि पहले क्या अभी तक शादी करने आए थे। डर के मारे कहते नहीं थे कि लड़की का बाप किसान ही उसका चाचा पुलिस में कॉन्स्टेबल लगा हुआ आत्म सम्मान इस बार अन्नदाता अपने आपको कहना सीखा है।
दूसरी उपलब्धि कि किसान के पास कोई राजनीतिक औजार नहीं कई कथाओं की अपनी बात करने का अखिल ये जो अखिल भारतीय स्तर पर संयुक्त किसान मोर्चा का स्थापित होना इतनी बड़ी।
सवाल : एमएसपी का क्या होगा? किसानों को कैसे लाभ मिले, इसे कैसे देखते हैं?
जवाब : एमएसपी (msp) से कुछ ज्यादा हासिल नहीं हुआ। आज हमें एक पांव रखने की जगह मिली। इससे संघर्ष शुरू होगा। रिफॉर्म की शुरूआत होगी। देश में मंडियों (mandi) की आवश्यकता है। देश को 42 हजार मंडियां चाहिए और सिर्फ 10 हजार ही हैं। फसल खराबे का बीमा होना चाहिए। किसानों के लिए लाभकारी स्कीम लाई चाहिए ताकि छोटे किसानों तक को फायदा हो।
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