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Sedition law: देशद्रोह का कानून खत्म होगा या नहीं? विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया, कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए

Roshan Kumar • LAST UPDATED : June 2, 2023, 11:28 am IST
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Sedition law: देशद्रोह का कानून खत्म होगा या नहीं? विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया, कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए

Sedition law

India News (इंडिया न्यूज़), Sedition law, दिल्ली: देश के सबसे चर्चित कानूनों में एक, राजद्रोह का कानून जिसे आमतौर पर देशद्रोह भी कहा जाता है उसपर भारत के विधि आयोग ने समीक्षा की। सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के बाद आयोग को समीक्षा का काम सौंपा गया था।

सिस्टम में देशद्रोह कानून की निरंतरता का समर्थन करते हुए भारत के विधि आयोग ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को बनाए रखने की आवश्यकता है। आयोग ने कहा कि आंतरिक सुरक्षा खतरों और राज्य के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए इस कानून की जरुरत है। आयोग के अनुसार कानून में कुछ संशोधन पेश किए जा सकते है।

कई खतरे मौजूद

आयोग ने कानून मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे मौजूद हैं और नागरिकों की स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। इसने आगे कहा कि सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ कट्टरता का प्रचार करने और सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने में विदेशी शक्तियों की अहम भूमिका है इसलिए जरुरी है की इस कानून का बनाए रखा जाए।

उचित प्रतिबंध जरुरी

अनुच्छेद 19 (2) के तहत देशद्रोह को “उचित प्रतिबंध” कहते हुए, विधि आयोग ने कहा कि धारा 124ए की संवैधानिकता से निपटने के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कानून ‘संवैधानिक’ था क्योंकि जिस प्रतिबंध को लागू करने की मांग की गई थी वह एक उचित प्रतिबंध था।

अन्य कानून और भी कड़े

रिपोर्ट में कहा गया “यूएपीए और एनएसए जैसे कानून विशेष कानून हैं जो राज्य के प्रति लक्षित अपराधों को रोकने की कोशिश करते हैं। यह कानून द्वारा स्थापित लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को हिंसक, अवैध और असंवैधानिक रुप से उखाड़ फेंकने की कोशिश को रोकता है। अन्य कानूनों में राजद्रोह से अधिक कड़े प्रावधान शामिल है।”

पूरा ढांचा औपनिवेशिक

आयोग ने यह भी कहा कि यदि राजद्रोह को एक औपनिवेशिक युग का कानून माना जाता है, तो उस गुण के आधार पर, भारतीय कानूनी प्रणाली का पूरा ढांचा एक औपनिवेशिक विरासत है। मात्र तथ्य यह है कि एक कानूनी प्रावधान अपने मूल में औपनिवेशिक है, इसे रद्द करने का आधार नहीं बनाता। प्रत्येक देश को अपनी वास्तविकताओं से जूझना पड़ता है और राजद्रोह कानून को सिर्फ इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि अन्य देशो ने भी ऐसा किया है। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अनिवार्य प्रारंभिक जांच, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और सजा में संशोधन सहित प्रावधान में संशोधन के संबंध में कुछ सिफारिशें भी की हैं।

रिफरिशों इस प्रकार है-

  • देशद्रोह कानून की व्याख्या, समझ और उपयोग में अधिक स्पष्टता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के केदारनाथ फैसले को लागू करना चाहिए।
  • राजद्रोह और अन्य प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के लिए प्राथमिकी दर्ज करने से पहले एक पुलिस अधिकारी द्वारा साक्ष्य का पता लगाने के लिए एक अनिवार्य प्रारंभिक जांच का आदेश दिया जाना चाहिए।
  • केंद्र सरकार की तरफ से मॉडल दिशानिर्देश जारी करके भी ऐसा किया जा सकता है।
  • अधिनियम के पैमाने और गंभीरता के अनुसार राजद्रोह के लिए सजा के प्रावधान को संशोधित किया जाना चाहिए।
  • कानून में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था को उकसाने की प्रवृत्ति को इसमें शामिल किया जा सके।

कोर्ट ने दिया यह आदेश

आपको बता दे कि IPC की धारा 124A की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को आश्वासन दिया कि वह धारा 124ए की फिर से जांच कर रहा है और अदालत ऐसा करने में अपना बहुमूल्य समय निवेश नहीं कर सकती है।

उसी के अनुसार और 11 मई, 2022 को पारित आदेश के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को धारा 124ए के संबंध में जारी सभी जांचों को निलंबित करते हुए कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने या कोई भी कठोर कदम उठाने से परहेज करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, यह भी निर्देश दिया कि सभी लंबित मामलों, अपीलों और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए।

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