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Modi Government On Gay Marriage: समलैंगिक विवाह को केंद्र सरकार ने कानूनी मान्यता देने की मांग का विरोध जताया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि ये भारत की पारिवारिक व्यवस्था और सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ होगा। साथ ही इसमें कई तरह की कानूनी अड़चनें भी आएंगी। कोर्ट ने इस साल 6 जनवरी को समलैंगिक शादी के मसले पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। इसके साथ ही देश की अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को भी अपने पास ट्रांसफर करा लिया था।
सोमवार, 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने सभी 15 याचिकाओं पर जवाब दाखिल किया है। केंद्रीय कानून मंत्रालय ने इसे लेकर कहा कि भारत में परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और उनके बच्चे हैं। ऐसे में समलैंगिक विवाह इस सामाजिक धारणा के खिलाफ है। संसद से पारित विवाह कानून तथा अलग-अलग धर्मों की परंपराएं इस तरह के विवाह को स्वीकार नहीं करती हैं।
केंद्र सरकार ने कहा, “ऐसी शादी को मान्यता मिलने से दहेज, घरेलू हिंसा कानून, तलाक, गुजारा भत्ता, दहेज हत्या जैसे तमाम कानूनी प्रावधानों को अमल में ला पाना कठिन हो जाएगा। यह सभी कानून एक पुरुष को पति और महिला को पत्नी मान कर ही बनाए गए हैं।” SC में दाखिल कुछ याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को भी विशेष मैरिज एक्ट के अंतर्गत लाकर उनका रजिस्ट्रेशन किए जाने की मांग की गई है।
वहीं याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने साल 2018 में समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक भाग को रद्द कर दिया था। जिसके चलते अब दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं माना जाता। ऐसे में साथ रहने की इच्छा रखने वाले समलैंगिक जोड़ों को कानूनन शादी की भी अनुमति भी मिल जानी चाहिए।
केंद्र सरकार ने इसका जवाब देते हुए कहा है कि “समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंध को अपराध नहीं मानना और उनके विवाह को कानूनी दर्जा मिलना, ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। इस तरह की शादी को याचिकाकर्ता अपना मौलिक अधिकार बता रहे हैं, यह गलत है।” उनकी याचिकाओं सोमवार, 13 मार्च को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारडीवाला और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच को सुनेगी।
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