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Lok Sabha Election 2024: यूपी में बदला प्रचार का तरीका, प्रिंटिंग प्रेसों का धंधा घटा, प्रत्याशी ले रहे सोशल मीडिया का सहारा

BY: Shanu kumari • LAST UPDATED : April 3, 2024, 4:25 pm IST
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Lok Sabha Election 2024: यूपी में बदला प्रचार का तरीका, प्रिंटिंग प्रेसों का धंधा घटा, प्रत्याशी ले रहे सोशल मीडिया का सहारा

Lok Sabha Election 2024 p.c-social media

India News (इंडिया न्यूज़), अजय त्रिवेदी | Lok Sabha Election 2024: सूचना तकनीकी के प्रसार और सोशल मीडिया के दौर में चुनाव प्रचार सामग्री के पारंपरिक कारोबार पर खासा असर हुआ है। इस बार के लोकसभा चुनावों में ऑनलाइन कंटेंट, रील, छोटे वीडियो और वॉट्सअप मैसेज तैयार करने वालों की चांदी हो गयी है तो प्रिंटिंग प्रेस वालों के पास मामूली काम आ रहा है।

दफ्तरों के बाहर दुकान सजाए

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कार्यालय के बाहर दशकों से प्रचार सामाग्री झंडे, बिल्ले, टोपी, बैनर, गमछे बेंच रहे दिनेश प्रजापति का कहना है कि लोकसभा चुनाव सर पर आ चुका है पर खरीदारों की भीड़ न के बराबर है। कुछ यही हाल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के दफ्तरों के बाहर दुकान सजाए बैठे कारोबारियों का भी है।

उनका कहना है कि आजकल लोगों को ऑनलाइन प्रचार ज्यादा भा रहा है और पारंपरिक तरीकों से प्रचार कम हो रहा है। कांग्रेस के लिए प्रचार सामग्री बेचने वाले आचार्य त्रिवेदी दुकान में पड़े गट्ठरों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में इस उम्मीद के साथ दिल्ली से माल मंगाया था कि बिक्री होगी पर माल बिका ही नही। कहते हैं कि लोकसभा चुनावों की आहट के साथ बिक्री पहले के मुकाबले बढ़ी जरुर है पर बीते कुछ चुनावों की तुलना में यह एक चौथाई भी नहीं है।

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नयी तरह के समानों का आर्डर

बीते चार दशकों से प्रचार सामग्री का धंधा कर रहे है राजा तिवारी बताते हैं कि दिल्ली से इस बार नयी तरह के स्टीकरों, गमछों और हेड बैंड का आर्डर दिया है। पुरानी तरह के झंडे, बिल्ले और टोपी तो चलन से बाहर हो रही है और पुराना माल ही बिकने की नौबत नहीं है। उनका कहना है कि उम्मीदवार भी नयी प्रचार सामग्री की मांग कर रहे हैं जो युवाओं और महिलाओं को आकर्षित कर सके। तिवारी कहते हैं कि कार स्टीकर, छोटे झंडे और हेड बैंड वगैरा तो बिक रहे हैं पर बिल्लों की मांग खत्म हो गयी है।

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काम बस 20 फीसदी ही रह गया

वहीं बीते कई चुनावों से अच्छा कारोबार कर रहे आलोक प्रिंटर्स के आलोक सक्सेना बताते हैं कि अब पोस्टर, हैंडबिल या कार्ड की छपाई का काम बहुत कम मिल रहा है। उम्मीदवार अपना बायोडाटा छपवा रहे हैं या कुछ फ्लेक्स और शुभकामना कार्ड। आयोग की सख्ती के चलते पहले भी काम घटा था पर इस कदर धंधे पर मार नहीं पड़ी थी। आलोक के मुताबिक बीते लोकसभा चुनावों की तुलना में काम बस 20 फीसदी ही रह गया है। उनका कहना है कि पहले चुनावों में रात दिन की शिफ्ट में काम होता था और बाहर के कारीगर बुलाने पड़ते थे पर इस बार इसकी कोई जरूरत नहीं दिख रही है।

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सोशल मीडिया की डिमांड

वहीं सोशल मीडिया पर कंटेंट बनाने वालों, उम्मीदवारों के लिए फेसबुक, ट्विटर हैंडल का काम देखने वालों और रील बनाने वालों का धंधा तेजी से चमका है। सोशल मीडिया एजेंसी चलाने वाले मनीष सिंह का कहना है कि उम्मीदवार सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और रील बनाने वालों की तलाश कर रहे हैं और अच्छा पैसा देने को तैयार है। सिंह का कहना है कि ज्यादातर उम्मीदवार सोशल मीडिया के लिए एक आदमी पूरे चुनाव भर के लिए मांग रहे हैं जबकि कुछ लोग अपने ट्विटर व फेसबुक और वाट्सअप चलाने का काम दे रहे हैं।

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