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India News (इंडिया न्यूज), अजय त्रिवेदी, लखनऊ: अपने आखिरी पड़ाव पर आ पहुंचे लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सातें चरण में भारतीय जनता पार्टी के सामने जातियों की जटिल व्यूहरचना से निपटना हमेशा से मुश्किल रहा है। चाहे वो 2019 का लोकसभा चुनाव रहा हो या 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव, बीजेपी के सामने सबसे ज्यादा दिक्कत सातवें चरण की सीटों ने ही पेश की थी। इस बार भी हालात उससे उलट नहीं हैं बल्कि विपक्षी इंडिया गठबंधन ने बीजेपी के लिए राह आसान करती रहीं पिछड़ी जातियों में जबरदस्त सेंधमारी करते हुए मुश्किल हालात पैदा कर दिए हैं। सातवें चरण में उत्तर प्रदेश की जिन 13 सीटों पर मतदान होना है उनमें वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, बलिया, गाजीपुर, घोसी, राबर्ट्सगंज, सलेमपुर, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज और बांसगांव शामिल हैं। इनमें से वाराणसी से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं।
सातवें चरण में लगभग सभी सीटों पर पिछड़ों और दलितों के मत निर्णायक हैं। इनमें राबर्ट्सगंज की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है तो बांसगांव अनुसूचित जाति के लिए। चंदौली, बलिया, गाजीपुर और देवरिया सीटों पर पिछड़ों में यादव मतदाता सर्वाधिक हैं तो सलेमपुर व कुशीनगर में कोइरी बिरादरी के खासे वोट हैं जबकि मिर्जापुर व महराजगंज में कुर्मी व निषाद मतदाताओं की अच्छी संख्या है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली पिछड़ी जाति सैंथवार की भी अच्छी खासी संख्या कुशीनगर, देवरिया और सलेमपुर के साथ ही बांसगांव में है। इस चरण में पांच सीटें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले के आसापास की हैं तो चार सीटें पीएम मोदी के चुनाव क्षेत्र के सटी हुयी हैं।
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बीजेपी का मानना है कि इन दोनों शीर्ष नेताओं के भरोसे पार्टी इस चरण में कम से कम पहले जैसा या उससे भी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। गोरखपुर, बांसगांव, महराजगंज, कुशीनगर और देवरिया योगी के प्रभाव क्षेत्र की सीटें हैं तो वाराणसी के साथ चंदौली, मिर्जापुर और बलिया सीटें मोदी के आभामंडल वाली हैं। हालांकि 2019 में इसी चरण में दो सीटें चंदौली और बलिया में बीजेपी बहुत कम मतों से जीत सकी थी जबकि गाजीपुर और घोसी गंवा दी थी। इस बार घोसी में एनडीए के घटक दल सुहेलदेव राजभर भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर ओमप्रकाश राजभर के बेटे मैदान में है तो मिर्जापुर से अपना दल की अनुप्रिया पटेल और राबर्ट्सगंज से इसी पार्टी की रिंकी कोल लड़ रही हैं।
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सातवें चरण गाजीपुर, बलिया और घोसी सीटें अंसारी परिवार के प्रभाव क्षेत्र वाली कही जाती हैं। इनमें से गाजीपुर से खुद अफजाल अंसारी सांसद हैं और दोबारा सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। घोसी लोकसभा की एक सीट से अंसारी परिवार का एक बेटा तो दूसरा बलिया सीट की एक विधानसभा सीट से विधायक है। खुद मुख्तार घोसी विधानसभा सीट से पांच बार विधायक रह चुका था और अब उसका बेटा उमर वहां से विधायक है।
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जेल में सजा काटने के दौरान हुयी माफिया डान मुख्तार अंसारी की मौत के बाद इस पूरे इलाके में न केवल अल्पसंख्यकों बल्कि अन्य पिछडी जातियों में भी इस परिवार के प्रति सहानुभूति देखी गयी है। खुद अंसारी परिवार का गांव मोहम्मदाबाद बलिया लोकसभा सीट के तहत आता है। मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट के अंसारी परिवार के बड़े भाई सिगबतुल्लाह के बेटे विधायक हैं। इस बार इंडिया गठबंधन से गाजीपुर से खुद अफजाल अंसारी, घोसी से राजीव राय तो बलिया से पिछला चुनाव कुछ हजार से हारे सनातन पांडे मैदान में हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में इस चरण में दो सीटें घोसी व गाजीपुर मे जीत हासिल करने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार वोटकटवा की भूमिका में नजर आ रही है। कई सीटों पर बसपा मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में है वहीं एक कुशीनगर सीट पर राष्ट्रीय शोषित समाज दल के प्रत्याशी स्वामी प्रसाद मौर्य लड़ाई में आने के प्रयासरत हैं। इंडिया गठबंधन ने इस चरण में तीन सीटों बांसगांव, देवरिया व महराजगंज कांग्रेस को दी हैं जहां उसके प्रत्याशी मजबूती से लड़ रहे हैं।
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बलिया में इस बार बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काट कर राज्यसभा सदस्य व चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को प्रत्याशी बनाया है। इस लोकसभा सीट पर सपा ने पिछला चुनाव बहुत कम वोटों से हारे सनातन पांडे को फिर से खड़ा किया है। बलिया सीट पर तीन लाख ब्राह्म्ण तो ढाई लाख यादव मतदाता हैं जबकि मुस्लिम एक लाख के करीब हैं। इन सबकी गोलबंदी सपा प्रत्याशी के पक्ष में दिख रही है। वहीं ढाई लाख के करीब राजपूत मतदाता बीजेपी के नीरज शेखर के पीछे मजबूती से खड़े हैं। माना जा रहा है बलिया सीट पर दो लाख से ज्यादा दलित मतों की भूमिका निर्णायक होगी। यहां बसपा ने लल्लन सिंह यादव को टिकट दिया है।
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