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India News(इंडिया न्यूज),Lok Sabha Election 2024: 2024 का साल चुनावी है, अंदाज़ चुनावी, आग़ाज़ चुनावी, चकल्लस चुनावी, मौसम भी चुनावी। चुनावी मौसम में कहीं संयोजक चुने जाने की कसमसाहट है तो कहीं प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी। लोकसभा चुनाव का काउंटडाउन तेज़ है, क्षत्रप गढ़ में हुंकार भर रहे हैं। मेरा मानना है कि ये साल चुनावी चेहरों की क़िस्मत का फ़ैसला करेगा। लड़ाई ‘नरेंद्र मोदी Vs ऑल’ की है।
10 साल में भारतीय जनता पार्टी की चुनावी लकीर बहुत बड़ी हो चुकी है, दूसरी तरफ़ I.N.D.I.A. वाले लकीर के फ़कीर हैं। लकीर के फ़कीर का मतलब वही संयोजक पद की लड़ाई, वही प्रधानमंत्री पद के चेहरे पर रस्साक़शी, वही सीट शेयरिंग पर सिरफुटौव्वल, वही कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर सब कुछ ‘निल बटा सन्नाटा’। नरेंद्र मोदी मज़बूत ही नहीं भारतवर्ष का विश्वसनीय चेहरा हैं।
विश्वसनीय चेहरे से मुक़ाबला करने के लिए आपको विश्वास भरना ज़रूरी है। विश्वास ख़ुद में, विश्वास गठबंधन में। अब देखिए न, अखिलेश को मायावती पर विश्वास नहीं, ममता को लेफ़्ट पर विश्वास नहीं, सपा को कांग्रेस पर विश्वास नहीं, नीतीश को लालू पर विश्वास नहीं। अविश्वास बढ़ता है तो खाई गहरी होती है, गहरी खाई जल्दी पाटी नहीं जाती।
अब बात शुद्ध चुनावी राजनीति की। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, असम और गोवा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। महाराष्ट्र, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय और पुडुचेरी में बीजेपी सरकार में सहयोगी है। मतलब साफ़ है कि इस वक़्त देश के 17 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।
कांग्रेस सिर्फ़ तीन राज्यों कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना में सिमट कर रह गई है। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है तो बिहार में नीतीश और लालू की पार्टी सत्ता में है। वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार चला रही हैं। मज़े की बात ये कि अखिलेश, शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, उद्धव ठाकरे जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप किंग तो दूर कहीं किंगमेकर भी नहीं हैं।
मुक़ाबला मोदी से है, I.N.D.I.A. वालों ने जाति जनगणना की लकीर खींची है। मेरा मानना है कि जाति की राजनीति करके आप लकीर के फ़कीर बने रहते हैं। एक तरफ़ भारत को यादव, दलित, कोइरी, कुर्मी, ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत वोटबैंक के चश्मे से देखने की कोशिश है, दूसरी तरफ़ मोदी का सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास है।
PM किसान सम्मान योजना, प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना, PM उज्जवला योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, जनधन योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना मोदी सरकार की फ्लैगशिप स्कीम है। ये योजनाएं सिर्फ़ काग़ज़ों तक सिमटी नहीं हैं, ज़मीन पर परिवर्तन की इबारत लिख रही हैं। मेरा मानना है कि चुनावी मुक़ाबला वहां होता है, जहां पिछली सरकार की नाकामियों या भ्रष्टाचार को उजागर किया जाए।
पर 10 साल की मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई दाग़ नहीं है। सरकारी स्कीम का फ़ायदा सीधे लोगों तक पहुंच रहा है। सवाल बड़ा है कि I.N.D.I.A. वाले फिर मुक़ाबला किस आधार पर करेंगे। बीजेपी को सांप्रदायिक और ख़ुद को धर्म निरपेक्ष बता कर आप चुनाव नहीं जीत सकते। 80 और 90 का दशक पीछे छूट गया है, अब आपको हिसाब देना होता है। जनता जागरुक है, आप वोट मांगने जाएंगे तो जनता सवाल करेगी।
अब चेहरों की बात, क्योंकि चुनाव चेहरों पर लड़े जाते हैं। भारतीय जनता पार्टी के पास प्रधानमंत्री मोदी का विश्वसनीय और मज़बूत ‘चेहरा’ है, I.N.D.I.A. वालों के पास ‘चेहरे’ हैं, जितने चेहरे उतनी महत्वाकांक्षाएं। सुधी पाठकों से मेरा सवाल है क्या राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे का सियासी चेहरा मोदी को मुक़ाबला दे सकता है, जवाब है नहीं।
क्या नीतीश, लालू, अखिलेश, ममता, शरद, उद्धव में मोदी का सियासी सामना करने की ताक़त है, जवाब है नहीं। सत्ता का पत्ता कभी सीधे हाथ से नहीं फेंटा जाता। सियासत में अस्तित्व बनाए और बचाए रखने के लिए ‘आउट ऑफ़ द बॉक्स’ जाना पड़ता है। ‘आउट ऑफ़ द बॉक्स’ वाले बड़े और कड़े फ़ैसले वैसे होते हैं जैसे 10 साल में मोदी सरकार ने किए- जम्मू कश्मीर को 370 से मुक्त किया।
तीन तलाक जैसे देश से मुस्लिम महिलाओं को निकाला, नोटबंदी के ज़रिए भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसा, अंग्रेज़ों के ज़माने के क़ानून का अंत किया, GST लाकर देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा, सर्जिकल स्ट्राइक करके ये बताया कि भारत अखंड है। ‘आउट ऑफ़ द बॉक्स’ फ़ैसलों के लिए ईमानदारी और दृढ़ इच्छाशक्ति की ज़रूरत होती है, उम्मीद है ‘I.N.D.I.A.’ वाले ‘INDIA’ वालों की ज़रूरत को समझेंगे।
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