India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: कांग्रेस 99 सीट जीत कर बहुत खुश है, लेकिन आंकलन करें तो परिणाम खुश होने वाले नहीं है। हिंदी भाषी राज्यों की 216 सीट में से कांग्रेस केवल25 सीट ही जीत पाई है। इनमें गुजरात की 26 सीटें मिला दें तो 242 में से केवल 26। ….सीधी फाइट में गिनती की केवल 9 सीट ही जीत पाई है। इनमें राजस्थान की 8 और छत्तीसगढ़ की एक मात्र सीट। जबकि राजस्थान में दो क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया था। हरियाणा में कांग्रेस ने पांच सीट जीती तो आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन किया हुआ था। बाकी हिंदी भाषी वाले प्रदेशों में कांग्रेस जीरो पर रही। इनमें मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश की 38 सीटों पर सूपड़ा साफ था। हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस इसे बड़ी जीत के रूप में पेश कर रही है।
उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार की 136 सीटों में से कांग्रेस गठबंधन के सहारे 11 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस के लिए सीधी लड़ाई हो या गठबंधन का सहारा जीतना मुश्किल होता जा रहा है। इस हिसाब से हिंदी बेल्ट में स्थिति चिंता जनक ही है। लगातार यह तीसरा लोकसभा का चुनाव है जिसमें कांग्रेस 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई। इन चुनाव से एक बात तो साफ हो गई कि कांग्रेस के लिए सीधा मुकाबला अब आसान नहीं रहा है। यही नहीं दक्षिण के राज्यों में भी अब मुश्किलें बढ़ने लगी है। भाजपा सीधे चुनौती दे रही है। कर्नाटक और तेलंगाना में भाजपा सत्ता से बाहर होने के बाद भी कमजोर नहीं हुई है। बल्कि लोकसभा चुनावों ने उसने ज्यादा सीटें जीत कर कांग्रेस के लिए टेंशन खड़ी कर दी है।
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केरल में भाजपा ने त्रिशूर सीट जीत बड़ी दस्तक दे दी है। तिरुवंतपुरम में शशि थरूर को भाजपा से कड़ी चुनौती मिली। केरल ऐसा राज्य है जहां पर अभी तक कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट के बीच सीधे मुकाबला होता था। अब भाजपा की एंट्री ने बड़े खतरे की घंटी बजा दी है। कांग्रेस अभी इंडी गठबंधन के भरोसे खुश तो हो रही है लेकिन केरल की राजनीति के चलते लेफ्ट के साथ संबंधों में कड़वाहट आनी तय है। सबसे अहम राहुल गांधी वायनाड सीट से जैसे ही इस्तीफा देंगे कांग्रेस का संकट और बढ़ेगा। क्योंकि राहुल के वहां से जाते ही कांग्रेस की स्थिति बिगड़ेगी। कांग्रेस के पास कोई मजबूत चेहरा वहां पर अब नहीं है।
ओमान चांडिक का निधन हो चुका है। ए के एंटनी बुजुर्ग हो गए है। रमेश चेनिथला पुराने नेता हैं, लेकिन संगठन विशेष पकड़ नहीं रही। जो संकेत हैं राहुल अपने सबसे भरोसे मंद संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल को केरल भेज सकते हैं, लेकिन वो जायेंगे यह देखना होगा। केरल में कांग्रेस दस साल से सत्ता से बाहर है। डेढ़ साल बाद चुनाव होने है। भाजपा इस बार पूरी ताकत से विधानसभा का चुनाव भी लड़ेगी। इस बार लोकसभा में कांग्रेस ने केरल से सबसे ज्यादा 14 सीट जीती हैं। एक और दक्षिण के राज्य उड़ीसा में कांग्रेस एक ही सीट जीत पाई विधानसभा चुनाव में कुछ नहीं कर पाई।
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दक्षिण में भी भाजपा का बढ़ता प्रभाव कांग्रेस की ही परेशानी बढ़ाने वाला है। कर्नाटक में कांग्रेस के उप मुख्यमंत्री डी शिवकुमार बड़े बड़े दावे कर रहे थे, लेकिन लोकसभा में 28 में से 9 ही सीट दिलवा पाए। तेलंगाना में सरकार होने के बाद भी 17 में से 8 सीट कांग्रेस निकाल पाई। जिस दक्षिण के भरोसे कांग्रेस सत्ता में वापसी के भरोसे रहती है भाजपा ने धीरे धीरे अच्छी खासी सेंध लगा ली है। गुजरात जैसे राज्य में कांग्रेस ने इस बार एक सीट जीत बड़ी मुश्किल से खाता खोला।
कांग्रेस ने गठबंधन के सहारे महाराष्ट्र में 13 सीट जीत सहयोगी दलों को चौंकाया है। महाराष्ट्र में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। देखना होगा कि क्या उद्धव ठाकरे की शिवसेना कांग्रेस को बड़ा भाई का दर्जा दे मुख्यमंत्री की कुर्सी देगी या उद्धव बीजेपी में वापस जाएंगे। जो हालात आज के दिन हैं उनमें बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में सहयोगियों के चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलना अब संभव नहीं रहा। महाराष्ट्र में भी कमोवेश यही स्थिति है। कांग्रेस को अभी मंथन करना होगा की बेशाखियों से कैसे छुटकारा पाया जाए और हिंदी बेल्ट वाले राज्यों में कैसे वापसी हो।
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कांग्रेस को अभी चुनाव परिणामों पर मंथन कर हार के कारणों का पता लगाना चाहिए। क्योंकि हिंदी बेल्ट में यही स्थिति बनी रही तो फिर वहां पर भी सहयोगी ताकतवर हो जायेंगे। जाति की राजनीति और आरक्षण को लेकर कांग्रेस खुश हो रही है, लेकिन इससे क्षेत्रीय दल मजबूत होंगे कांग्रेस नहीं। कांग्रेस को अगड़ी जातियों के बिना अपने पैरों में खड़ी हो ही नहीं सकती। कांग्रेस ने संगठन को मजबूत नहीं किया तो क्षेत्रीय दल उस पर अब हावी होते जायेंगे। हिंदी राज्यों को ही अगर देखें तो मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में पार्टी की स्थिति उत्तर प्रदेश से भी ज्यादा खराब हो गई है।
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