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India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: इस बार का आम चुनाव अब तक हुए बाकी चुनावों से अलग था। ढाई महीने तक प्रचार का दौर चला। गर्मी ने नया रिकार्ड बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर हर नेता गर्मी से जूझते हुए सड़कों पर उतरे। ये यो यादगार बातें हैं ही,लेकिन विपक्ष ने जो राजनीति की खास तौर पर कांग्रेस ने वह हैरान करने वाली थी। कांग्रेस और पूरे विपक्ष ने सत्ता पाने के लिए आरक्षण का कार्ड खेल सनातनियों में फूट डालने की कोशिश की। उसकी यह कोशिश कितनी सफल हुई इसका पता 4 जून को लग जायेगा। अब तक जो भी अनुमान आ रहे है उससे लगता नहीं है कि विपक्ष अपनी रणनीति में सफल हुआ होगा। हैरानी की बात यह है कि जात पात की राजनीति से दूर रहने वाली कांग्रेस पार्टी ने ही आरक्षण के कार्ड को खेला। यह जानने के बाद भी आरक्षण और जाति की राजनीति से ही उसको ही सबसे ज्यादा घाटा हुआ। जबकि क्षेत्रीय दलों को लाभ हुआ।
उत्तर प्रदेश और बिहार इसके सबसे बड़े उदाहरण है। कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी ने 2019 में राफेल घोटाला और चौकीदार चोर को उस समय मुद्दा बनाया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पक्के राष्ट्रवादी नेता के रूप में उभर चुकी थी। नतीजा कांग्रेस की करारी हार हुई। राहुल गांधी ने इस बार जाति और आरक्षण का कार्ड उस समय खेला जब प्रधानमंत्री मोदी की छवि सनातन धर्म के प्रमुख रक्षक के रूप में स्थापित हो चुकी थी। अयोध्या में राममंदिर का निर्माण और उसमें भगवान राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी की हिंदुओं की नजरों में सनातन धर्म के सर्वोच्च रक्षक बन चुके थे।
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दरअसल कर्नाटक और हिमाचल की जीत के बाद जब इंडी गठबंधन की नींव पड़ी तो राहुल गांधी को जाति की राजनीति में उलझा दिया गया। उनको समझा दिया गया कि बीजेपी को जाति की राजनीति से ही सत्ता से हटाया जा सकता है। राहुल भूल गए उनकी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी ने जाती की राजनीति से हमेशा दूरी बनाई। लेकिन राहुल के दिमाग में यह बात बैठ गई कि जाति की राजनीति से सत्ता वापस मिल सकती है। इसलिए उन्होंने जातीय जनगणना की पिछले साल से चर्चा शुरू कर अपने भाषणों से यह समझाने की कोशिश की कि इस देश में पिछड़ों को आज तक कुछ नहीं दिया गया।
वह भूल गए कि उनकी पार्टी ने ही देश में 50 साल से ज्यादा समय तक राज किया। वह ऐसे भाषण देने लगे कि पिछड़े अफसर सर्वोच्च पद पर भी नहीं पहुंच पाते हैं, मीडिया में नहीं जा पाते, उद्योगपति नहीं बन पाते हैं, देश को चुनिंदा अगड़ी जाति के अफसर चलाते हैं आदि आदि। कांग्रेस सत्ता में आएगी जातीय जनगणना करा पिछड़ों को न्याय दिलवाएगी। इस मुद्दे को उठाने के बाद भी कांग्रेस राजस्थान,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ जैसे बड़े हिंदी राज्यों में हार गई थी। बीजेपी ने ध्रुवीकरण की राजनीति कर बता दिया था कि जाति की राजनीति नहीं चलेगी। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस में कोई सुधार नहीं हुआ।
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कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जातीय जनगणना कराने के साथ आरक्षण की सीमा 50% को खत्म करने की बात की। फिर कांग्रेस ने चुनाव में बीजेपी के 400 पार के नारे को संविधान खतरे में बता आरक्षण खत्म करने की साजिश से जोड़ प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला। पूरे विपक्ष को लगा कि यही मुद्दा है जिससे बीजेपी को हराया जा सकता है। लगा मुद्दा चल गया। अगर बीजेपी 2019 के चुनाव के मुकाबले इस बार कम सीट लाती है तो उसकी वजह आरक्षण ही होगा।
यहां पर बीजेपी के रणनीतिकारों और प्रवक्ताओं से गलती हुई। बीजेपी इस बात का ठीक ढंग से प्रचार नहीं कर पाई कि देश में कांग्रेस के शासन में ही 100 से ज्यादा बार संविधान में संशोधन किए गए। आर्टिकल 356 का कांग्रेस ने 132 बार प्रयोग कर चुनी हुई सरकारें गिराई। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद जिम्मा ले जनता को समझाने की कोशिश की कि देश में कभी भी आरक्षण खत्म नहीं किया जा सकता है। वह खुद उसकी रक्षा करेंगे। साथ ही बीजेपी ने आरक्षण को धर्म से जोड़ विपक्ष को फंसा दिया। बीजेपी ने मुसलमानों को पिछड़ों के हिस्से का आरक्षण देने को मुद्दा बना विपक्ष को घेरे में ले लिया। कांग्रेस ने आरक्षण की राजनीति खेल अपने लिए परेशानी बढ़ा दी।
हिंदी बेल्ट में अगर जाति की राजनीति का कार्ड कभी चला तो कांग्रेस के बदले क्षेत्रीय दलों को फायदा हुआ। जहां कांग्रेस का बीजेपी से सीधा मुकाबला होगा वहां अगड़ी जाति साथ नहीं देती है। राजस्थान,मध्यप्रदेश जैसे राज्य में तो कांग्रेस की राह अब और मुश्किल हो जाएगी। सनातन के मुद्दे के आगे आरक्षण नहीं चल पाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरे चरण के बाद आरक्षण और जातीय राजनीति के तोड़ के रूप में हिंदुत्व के कार्ड को जमकर खेला।
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जो खबरें आ रही हैं उसमें पहले और दूसरे चरण में आरक्षण के मुद्दे ने ज्यादा नुकसान नहीं किया। इसलिए उत्तर प्रदेश और बाकी जगह बीजेपी को सीटों के मामले में कम ही घाटा हो सकता है। लेकिन बाद में पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरफ मामला पेचीदा होने की खबरें। हालांकि खबरें हैं कि आरक्षण का मुद्दा ज्यादा नहीं चल पाया। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कानून व्यवस्था और पीएम मोदी के फेस के चलते महिलाओं ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट किया है। जिसके चलते यूपी में बीजेपी 2019 से ज्यादा सीट ला सकती है। अगर ऐसा हुआ तो विपक्ष की बांटने की रणनीति पूरी तरह से फेल मानी जायेगी।
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