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Loksabha Election: प्रियंका अमेठी में स्मृति को दे सकती हैं चुनौती

  India News(इंडिया न्यूज), Loksabha Election: Reported by Ajeet Mendola: कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गई हैं।उनकी सक्रियता से पार्टी के कार्यकर्ताओं में नया जोश तो भरा,लेकिन अब सवाल यही है कि क्या वह अपनी मां सोनिया गांधी की जगह रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी या […]

BY: Itvnetwork Team • UPDATED :
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India News(इंडिया न्यूज), Loksabha Election: Reported by Ajeet Mendola: कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गई हैं।उनकी सक्रियता से पार्टी के कार्यकर्ताओं में नया जोश तो भरा,लेकिन अब सवाल यही है कि क्या वह अपनी मां सोनिया गांधी की जगह रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी या किसी दूसरी सीट से।

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2022 के विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद से प्रियंका ने उत्तर प्रदेश से नाता तोड़ लिया था।लेकिन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कराने में अहम भूमिका निभाने के बाद अचानक प्रियंका ने फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में दिलचस्पी ली है।अपने भाई राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के अंतिम दौर में वे बकायदा उसमें शामिल हो प्रदेश कार्यकर्ताओं को संदेश भी दिया है।हालांकि प्रियंका इस बार राहुल की न्याय यात्रा को लेकर उस तरह बहुत उत्साहित नहीं दिखाई दी जिस तरह पहली यात्रा में दिखी थी।पिछली यात्रा में तो वह राहुल के साथ कई राज्यों में साथ चली थीं और एक माहौल भी बना था।इस बार यात्रा उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाई जितना पिछली बार छोड़ा था।

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समाजवादी पार्टी के साथ समझौता

राहुल ने पिछली यात्रा में आम जन के बीच अपनी छवि को उभारा था,लेकिन इस बार पार्टी के भीतर ही यात्रा को लेकर एक मत नहीं था।जैसे तैसे राहुल ने अपनी यात्रा निकाली।यात्रा को सहयोगी दलों का साथ भी नहीं मिला। बंगाल में ममता बनर्जी छिटक गई।बिहार में प्रवेश से पहले ही इंडी गठबंधन के सूत्रधार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चले गए।उत्तर प्रदेश में भी राष्ट्रीय लोकदल ने इंडी गठबंधन छोड़ दिया।जैसे तैसे समाजवादी पार्टी के साथ 17 सीटों पर समझौता हुआ। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और पार्टी की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी के राज्यसभा में जाने के बाद प्रियंका गांधी पर उनकी सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने का मनोवैज्ञानिक दबाव बन गया था। हालांकि सूत्र बताते हैं प्रियंका राज्यसभा चाहती थीं। लेकिन दबाव के बाद उन्होंने फिर उत्तर प्रदेश को गंभीरता से लेना शुरू किया।

कांग्रेस और सपा का गठबंधन

समझा जाता है कि इसलिए उन्होंने सपा प्रमुख अखिलेश को गठबंधन के लिए राजी किया।जयंत चौधरी के राजग में जाने के बाद अखिलेश पर भी गठबंधन का दबाव था।राम मंदिर लहर में कांग्रेस और सपा का गठबंधन कितना असर कारक को चुनाव परिणाम से पता चलेगा। क्योंकि मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी भी प्रदेश की सभी 80 सीट पर चुनाव लड़ने जा रही है। यह लगभग तय है कि त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी सब पर भारी पड़ सकती है। अनुच्छेद 370 और अयोध्या में राम मंदिर में राम की मूर्ति की स्थापना के बाद माहौल बीजेपी के पक्ष में माना जा रहा है। ऐसे में रायबरेली और अमेठी की सीट पर कांग्रेस के लिए तभी जीत की राह आसान होगी जब बहुजन समाज पार्टी अपनी तरफ से इन दोनों सीट पर प्रत्याशी न उतारे।चुनाव के समय पता चलेगा कि बसपा का क्या रुख रहता है।

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स्मृति ईरानी को प्रियंका का चुनौती

दूसरी जो बात सामने आ रही है उसमें राहुल अपनी मां की सीट रायबरेली से और प्रियंका अपने भाई की सीट अमेठी से चुनाव लड़ सकती हैं।रणितिकारों को लगता है कि प्रियंका अमेठी में स्मृति ईरानी को चुनौती दे सकती हैं और राहुल अमेठी में।राहुल अगर उत्तर प्रदेश से चुनाव जीतते हैं तो उससे पार्टी को प्रदेश में ताकत मिलेगी। प्रियंका गांधी उल्ट फेर करने में सफल होती हैं तो फिर पार्टी प्रदेश में तो खड़ी होगी ही राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा। स्मृति ईरानी ने पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को हरा बड़ा उल्ट फेर किया था। उनकी राष्ट्रीय स्तर पर अलग छवि उभरी। पूरे पांच से अमेठी में सक्रिय भी हैं।अब बकायदा घर भी बना लिया है।

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17 सीटों पर कांग्रेस की तैयारी

महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय भी हैं। जानकारों का मानना है प्रियंका इलाके में लोकप्रिय हैं और अगर महिलाओं में उन्होंने अपनी पैठ बना ली तो चुनाव दिलचस्प हो जायेगा। बीजेपी के नेतृत्व के लिए भी सीट चुनौती वाली हो जायेगी।इसलिए कांग्रेस आलाकमान प्रत्याशियों की घोषणा के समय चौंका सकता है।
हालांकि पार्टी ने अभी तय नहीं किया है कि कौन कहां से लड़ेगा,लेकिन समझौते में आई 17 सीटों पर कांग्रेस मजबूत प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है।

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