India News (इंडिया न्यूज़), Maharashtra politics: महाराष्ट्र में अजित पावर की बगवात के बाद प्रदेश राजनीति में उथल- पुथल मच गई है। रविवार को अजित पवार के बतौर डिप्टी सीएम शिंदे गुट से मिलने के बाद NCP के वरिष्ट नेता शरद पवार ने अजित पवार समेत अन्य 8 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की याचिका दाखिल कर दी है और पार्टी से बर्खास्त भी कर दिया है। मालूम हो कि NCP में दो फाड़ कुछ इस तरह हुए है, जैसे एक साल पहले शिवसेना दो भागों में बंट गई थी।

शिंदें गुट की तरह ही अजित पवार ने आगे चलकर NCP पार्टी और पार्टी चिह्नों को लेकर लड़ाई का मन बना लिया है, लेकिन NCP प्रमुख शरद पवार ने इससे पहले ही अजित पवार और 8 अन्य असंतुष्टों के खिलाफ महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के समक्ष अयोग्यता याचिका दाखिल कर दी है। इसके अलावा पार्टी ने चुनाव आयोग को भी पत्र लिखकर बताया है कि 1999 में NCP की स्थापना करने वाले शरद पवार ही पार्टी के प्रमुख हैं और इसका नेतृत्व नहीं बदला है।

NCP की याचिका 9 विधायकों के खिलाफ

NCP के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कहा है सभी जिलों के पार्टी नेता सीनियर पवार के साथ मजबूती से खड़े हैं। उन्होंने ये भी कहा कि नौ विधायक एक पार्टी नहीं हो सकते। NCP की अनुशासन समिति ने अजित पवार और आठ अन्य बागी विधायकों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया है कि पार्टी अध्यक्ष की जानकारी या सहमति के बिना ये दल-बदल इतने गुप्त तरीके से किए गए हैं कि यह पार्टी तोड़ने जैसा है।

अजित पावर का इतने विधायक होने का दावा

बीजेपी के कुछ सूत्रों की माने तो NCP के 53 विधायकों में से 40 विधायक अजित पवार को सपोर्ट करते हैं। रविवार तक कहा जा रहा था कि अजित पवार के साथ 30 विधायक हैं। उधर शरद पवार के स्पोर्टरों का कहना है कि अजित के साथ केवल 9 ही विधायक गये हैं और अन्य विधायक शरद पवार के साथ हैं। ऐसे में वगावत देने वाले विधायकों के खिलाफ दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है।

क्या दल-बदल कानून से बच जाएंगे अजित पवार?

गौरतलब है कि भारत के संविधान के दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधानों से बचने के लिए अजित पवार को 36 से ज्यादा विधायकों के समर्थन लेना होगा। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजित पवार ने दावा किया कि उन्हें करीब पूरी NCP का समर्थन प्राप्त है। वहीं रविवार को हुई इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह पर भी दावा किया है। ऐसा ही कुछ एकनाथ शिंदे ने भी पछले वर्ष किया था।

दलबदल विरोधी कानून क्या है?

भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची राजनीतिक दल-बदल को रखा गया है। इस कानून के मुताबिक जो बिना सूचना और या औपचारिकता के अपनी पार्टी को छोड़कर अपने लाभ के लिए विरोधी पार्टी में शामिल हो जाता है, उन्हें दल बदलू कहते हैं। ये कानून राजीव गांधी की सरकार ने 1985 में 52वें संवैधानिक संशोधन कर बनाया था । इसका मकसद पद के लालच में विधायकों के एक दल से दूसरे दल जाने से रोकना था। यह कानून लोकसभा और राज्य विधानसभा दोनों पर लागू होता है।

किन वजहों से सदस्य को अयोग्य ठहराया जा सकता है?

  • निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से पार्टी छोड़ देता है।
  • निर्वाचित सदस्य पार्टी के निर्देश के विरुद्ध सदन में मतदान से गैरहाजिर रहता है।
  • निर्वाचित सदस्य दूसरे दल में शामिल होता है।
  • नामांकित सदस्य छह महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

दलबदल विरोधी कानून कब लागू नहीं होता?

दल बदल कानून में बागी विधायकों की अयोग्यता  बचाने का भी प्रावधान है। 2003 में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने नाया नियम बनाया, जिसके मुताबिक सरकार ने 91वां संविधान संशोधन के बाद  दल-बदल विरोधी आरोपों का सामना करने से बचने के लिए किसी राजनीतिक दल के कम से कम दो-तिहाई निर्वाचित सदस्यों के किसी अन्य पार्टी में शामिल हो  जाते है तो वो योग्यता से बच जाते हैं।

“उल्लेख्यनिय है कि अजित पवार का दावा है कि उन्हें NCP के 53 में से 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। लेकिन उनको इसे साबित करना अब चुनौती से कम नहीं होगा। वहीं ऐसा नहीं हुआ तो वो अयोग्य भी ठहराए जा सकते हैं।”

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