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India News (इंडिया न्यूज),Ashwagandha Ban: भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने डेनमार्क सरकार द्वारा अश्वगंधा पर लगाए गए प्रतिबंध पर कड़ी आपत्ति जताई है। मंत्रालय ने कहा है कि डेनमार्क की प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की अश्वगंधा पर दी गई रिपोर्ट मान्य नहीं हो सकती, क्योंकि यह रिपोर्ट अधूरी है। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के सचिव राजेश कोटेचा ने कहा है कि डेनमार्क विश्वविद्यालय की रिपोर्ट पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
इस रिपोर्ट में अश्वगंधा के गुणों का सही मूल्यांकन नहीं किया गया है। आयुष मंत्रालय ने यह भी कहा कि वर्ष 2020 से अब तक अश्वगंधा के प्रभाव को लेकर 400 से अधिक साक्ष्य आधारित शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। मंत्रालय के अनुसार डेनमार्क विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में वैज्ञानिकता का अभाव है। सवाल यह है कि वैज्ञानिक तथ्यों के बिना इस पर प्रतिबंध कैसे लगाया गया? इस प्रतिबंध ने कई देशों में अश्वगंधा को लेकर आशंकाओं को और गहरा कर दिया है।
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डेनमार्क यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट का खंडन आयुष मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिका और भारत के मिसिसिपी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने डेनमार्क यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट का पुरजोर खंडन किया है। पूरे मामले पर आयुर्वेद और इंटीग्रेटिव मेडिसिन के साइंस जर्नल में भी डेनमार्क यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए हैं। साइंस जर्नल में कहा गया है कि किसी अन्य पौधे की पत्तियों के साइड इफेक्ट के आधार पर अश्वगंधा पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है। डेनमार्क ने अश्वगंधा पर प्रतिबंध क्यों लगाया? डेनमार्क की टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी ने मई 2020 में भारतीय औषधि अश्वगंधा पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट में साइड इफेक्ट का दावा किया गया था।
दावे में कहा गया था कि अश्वगंधा से गर्भाशय, थायरॉयड, हार्मोन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद डेनमार्क ने सबसे पहले अश्वगंधा के आयात पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद स्वीडन, फिनलैंड, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, फ्रांस, तुर्की और यूरोपीय संघ में चिंता बढ़ने की आशंका गहरा गई है। भारत अश्वगंधा का सबसे बड़ा उत्पादक है
अश्वगंधा का इस्तेमाल सदियों से भारत ही नहीं बल्कि कई एशियाई देशों में औषधि के रूप में किया जाता रहा है। आयुष मंत्रालय के अनुसार, भारत दुनिया में अश्वगंधा का सबसे बड़ा उत्पादक है। दुनिया भर में अश्वगंधा का 42 प्रतिशत उत्पादन केवल भारत में होता है। दुनिया भर के देशों में इसकी जबरदस्त मांग है। वर्ष 2018 में जड़ी-बूटियों की सूची में इसकी मांग 34वें स्थान पर थी लेकिन 2021 में यह 7वें स्थान पर पहुंच गई।
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