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आधे से ज्यादा किसान परिवार भारी कर्ज में फंसे

सर्वे में हुआ खुलासा, प्रति परिवार औसतन 74,121 रुपए कर्ज इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: स्वतंत्रता के बाद से अब तक जब भी कोई चुनाव होता है तो किसान हर पार्टी का मुख्य मुद्दा होता है। किसान की भलाई के लिए हर पार्टी बड़े-बड़े दावे करती है। इसके बाद भी कृषि प्रधान देश में किसानों की […]

BY: India News Editor • UPDATED :
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सर्वे में हुआ खुलासा, प्रति परिवार औसतन 74,121 रुपए कर्ज
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
स्वतंत्रता के बाद से अब तक जब भी कोई चुनाव होता है तो किसान हर पार्टी का मुख्य मुद्दा होता है। किसान की भलाई के लिए हर पार्टी बड़े-बड़े दावे करती है। इसके बाद भी कृषि प्रधान देश में किसानों की हालत संतोषजनक नहीं है। इसका खुलासा राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के एक सर्वे में हुआ है। सर्वे के अनुसार 2019 में 50 प्रतिशत से अधिक कृषक परिवार कर्ज में थे और उन पर प्रति परिवार औसतन 74,121 रुपए कर्ज था। सर्वे में कहा गया है कि उनके कुल बकाया कर्ज में से केवल 69.6 प्रतिशत बैंक, सहकरी समितियों और सरकारी एजेंसियों जैसे संस्थागत स्रोतों से लिए गए। जबकि 20.5 प्रतिशत कर्ज पेशेवर सूदखोरों से लिए गए थे।

प्रति परिवार औसत आय भी चिंताजनक

सर्वे के अनुसार कृषि वर्ष 2018-19 (जुलाई-जून) के दौरान प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय 10,218 रुपए थी। इसमें से मजदूरी से प्राप्त प्रति परिवार औसत आय 4,063 रुपए, फसल उत्पादन से 3,798 रुपए, पशुपालन से 1,582 रुपए, गैर-कृषि व्यवसाय 641 रुपए तथा भूमि पट्टे से 134 रुपए आय थी। इसमें कहा गया है कि देश में कृषि परिवार की संख्या 9.3 करोड़ अनुमानित है। इसमें अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) 45.8 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 15.9 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 14.2 प्रतिशत और अन्य 24.1 प्रतिशत हैं।

इन माध्यमों से लेते हैं कर्ज

सर्वे में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज ले रखे परिवारों में से 17.8 प्रतिशत परिवार संस्थागत एजेंसियों से (जिनमें 21.2 प्रतिशत कृषक परिवार और 13.5 प्रतिशत गैर-कृषक परिवार) जबकि शहरी क्षेत्रों में 14.5 प्रतिशत परिवार संस्थागत कर्जदाताओं से (18 प्रतिशत स्व-रोजगार करने वाले तथा 13.3 प्रतिशत अन्य परिवार) कर्ज ले रखे थे। इसके अलावा ग्रामीण देश में करीब 10.2 प्रतिशत परिवारों ने गैर-संस्थागत एजेंसिंयों से कर्ज लिया जबकि शहरी भारत में यह संख्या 4.9 प्रतिशत परिवार थी। वहीं ग्रामीण भारत में सात प्रतिशत परिवार ऐसे थे, जिन्होंने संस्थागत कर्ज और गैर-संस्थागत दोनों तरह से कर्ज लिया था जबकि शहरी क्षेत्र में ऐसे परिवारों की संख्या तीन प्रतिशत थी।

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