श्री गुरु तेग बहादुर जी को क्यों कहा जाता है हिंद दी चादर, जानें कैसे बने त्याग मल से तेग बहादुर?

  • मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ खड़े हुए थे तेग बहादुर और धर्म व मानवता दोनों की रक्षा की
  • उनकी बहादुरी देख उनके पिता ने उनका नाम त्याग मल से तेग बहादुर रखा था

डा. रविंद्र मलिक, चंडीगढ़। सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर के 400 वें प्रकाश पर्व के मौके पर पानीपत में 24 को भव्य कार्यक्रम का आयोजन है और इसको लेकर जिस व्यापक स्तर पर हरियाणा सरकार द्वारा तैयारियां की गई हैं, वो किसी भी लिहाज से कम नहीं हैं।

श्री गुरु तेग बहादुर को हिंद दी चादर भी कहा जाता है और जिज्ञासा रहती है कि उनको इस नाम की संज्ञा क्यों दी गई है। इसके पीछे उनके बलिदानों का कहानी है। जब उन्होंने गुरु की गद्दी संभाली तो उस वक्त परिस्थितियां ठीक नहीं थी और मुगल शासकों द्वारा महिलाओं, यहां तक की बच्चों पर भी अत्याचार किया जा रहा था। ऐसे नाजुक दौर में वो आगे आए और ना केवल देश बल्कि धर्म की रक्षा के लिए भी खड़े हुए।

उस संकट के दौर में उन्होंने बेहद साहस का परिचय देते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया और आने वाले नस्लों के सामने एक अद्वितीय बानगी पेश की। उनके बलिदानों और मानवता की सेवा के लिए उनको हिंद दी चादर के नाम से जाना जाता है।

गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय, त्याग मल से कैसे बने थे गुरू तेग बहादुर

गुरु तेग बहादुर साहिब सिखों के नौवें गुरु थे। उनका पहला नाम त्याग मल था। एक बार मुगलों से लड़ाई में उन्होंने बेहद ही कम उम्र में बहादुरी की परिचय दिया और इसके बाद उनके पिता ने उनका नाम त्याग मल से तेग बहादुर यानी कि तलवार का धनी रख दिया था।

सिख धार्मिक अध्ययन के सूत्रों में उनका उल्लेख संसार की चादर के रूप में किया गया है। जबकि भारतीय परंपरा में उन्हें हिंद दी चादर कहा जाता है। सिख इतिहासकार सतबीर सिंह अपनी पुस्तक इति जिन करी में लिखते हैं, गुरु तेग बहादुर का जन्म विक्रम संवत 1678 के पांचवें वैशाख के दिन हुआ था।

आधुनिक ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से ये दिन था शुक्रवार और तारीख थी एक अप्रैल, 1621 उनके पिता थे सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिब और उनकी मां का नाम माता नानकी था। गुरु तेग बहादुर जी का जन्म अमृतसर के गुरु के महल में हुआ था।

जबरन धर्म परिवर्तन और अत्याचारों का किया विरोध

उस नाजुक दौर में जब मुगल शासक आम जनता पर अत्याचार कर रहे थे तब श्री गुरु तेग बहादुर ने आगे आते हुए एक उदाहरण पेश किया। 25 मई 1675 को उनके दरबार श्री आनंद साहिब में 16 पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल फरियाद लेकर पहुंचा था।

पंडित किरपा राम दत्त के नेतृत्व में 16 पंडितों ने उनके सामने उस वक्त की पीड़ा रखते हुए उनसे मदद की गुहार लगाई थी। सदस्यों ने उनके सामने अपनी बात रखते हुए विस्तार से उनको बताया था कि किस तरह से जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है और मंदिरों में तोड़फोड़, हिंसा और अत्याचार चरम पर है। इसके बाद उन्होंने सत्य की लड़ाई में अपना जीवन बलिदान कर दिया था।

औरंगजेब के सामने नहीं झुके थे…

उस वक्त औरंगजेब के पास राजगद्दी थी। गुरु साहिब ने उस वक्त सभी सदस्यों से कहा था कि वे अत्याचार को रोकने के लिए बादशाह औरंगजेब से बात करेंगे। इस बीच, गुरु तेग बहादुर साहिब 10 जुलाई, 1675 को चक्क नानकी (आनंदपुर साहिब) से भाई मतिदास, भाई सती दास और भाई दयाला जी के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुए।

औरंगजेब की सेना ने सभी को बंदी बना लिया और धर्म परिवर्तन से मना करने पर खौफनाक यातनाएं देकर तीनों (भाई मतिदास, भाई सती दास और भाई दयाला जी) को गुरु साहिब के सामने शहीद कर दिया। श्री गुरु तेग बहादुर को भी झुकने को कहा लेकिन उन्होंने रत्ती भर भी झुकने से मना कर दिया। फिर धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली के चांदनी चौक पर अपना शीश कुर्बान कर दिया।

सर कटवा लिया लेकिन मुगलों की एक भी शर्त नहीं मानी

सिख इतिहास के अनुसार, दिल्ली में लाल किले के सामने जहां आज गुरुद्वारा शीशगंज साहिब स्थित है, वहां श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का सिर शरीर से अलग कर दिया गया था।

इतिहास के जानकार बताते हैं कि गुरु तेग बहादुर के सामने उनको मारे जाने से पहले तीन शर्तें रखी गई थीं, या तो कलमा पढ़कर मुसलमान बन जाएं या फिर चमत्कार दिखाओ या फिर मौत स्वीकारो।

उन्होंने उत्तर दिया था कि हम न ही अपना धर्म छोड़ेंगे और न ही चमत्कार दिखाएंगे। आपने जो करना है कर लो, हम तैयार हैं। इसके बाद समाने के सैयद जलालुद्दीन जल्लाद ने अपनी तलवार खींची और उनका सर कलम कर दिया।

कश्मीरी पंडितों को धर्म की रक्षा का वचन दिया था…

सिख इतिहास के अनुसार कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर साहिब को औरंगजेब की हुकूमत द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन और अपनी तकलीफों की लंबी कहानी सुनाई तो गुरु तेग बहादुर ने उत्तर दिया था कि एक महापुरुष के बलिदान से हुकूमत के अत्याचार खत्म हो जाएंगे।

उसी वक्त वहा खड़े उनके पुत्र बालक गोबिंद राय (जो गुरु पद प्राप्त कर खालसा पंथ की स्थापना के बाद गुरु गोबिंद सिंह बने) ने सहज ही अपने पिता के आगे हाथ जोड़ कर अनुरोध किया कि ‘पिता जी आपसे अधिक सत पुरुष और महात्मा कौन हो सकता है। बालक गोबिंद राय की बात सुनने के बाद उन्होंने कश्मीरी पंडितों को उनके धर्म की रक्षा का आश्वासन दिया।

श्री गुरु तेग बहादुर के 400 में प्रकाश पर्व के आयोजन में अधिक से अधिक संख्या में पहुँचे और इस भव्य एवं एतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनें। उनके बलिदान को ये देश हमेशा याद रखेगा। उन्होंने दुनिया के सामने एक ऐसा उदाहरण पेश किया जो आने वाली पीढ़ियों भी याद रखेंगी। श्री गुरु तेग बहादुर जी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को ना तो डराना चाहिए और ना ही डरना चाहिए।

मनोहर लाल, मुख्यमंत्री।

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Naresh Kumar

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