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क्षेत्रीय दलों में दम दिखाने वाले Prashant Kishor राष्ट्रीय दलों में फेल

PUBLISHED BY: Sameer Saini • LAST UPDATED : April 21, 2022, 4:03 pm IST
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क्षेत्रीय दलों में दम दिखाने वाले Prashant Kishor राष्ट्रीय दलों में फेल

क्षेत्रीय दलों में दम दिखाने वाले Prashant Kishor राष्ट्रीय दलों में फेल

प्रमोद वशिष्ठ, चंडीगढ़ :

मुंबई में 28 दिसम्बर 1885 को एओह्यूम, दिलशावाचा व दादा भाई नोरेजी ने जब कांग्रेस की स्थापना की तो कभी नहीं सोचा होगा कि संकट के समय में पार्टी को निकालने के लिए प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) “पीके” की जरूरत होगी।

पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी यहां तक पीवी नरसिम्हा राव ने भी संकट के समय किसी बाहरी पीके को सहायता लेने बजाय पार्टी के नेताओं को महत्व दिया। देश के विभिन्न हिस्सों से बुला कर अलग-अलग मुद्दों के माहिर नेताओं से अलग-अलग रायशुमारी की जाती थी, ये जगजाहिर है।

कन्याकुमारी तक कांग्रेस में थिंकटैंकों की बड़ी फौज

अब हालात ये हो गए कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को संकट निवारक किराये पर लेने पड़ रहे हैं जबकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक कांग्रेस में थिंकटैंकों की बड़ी फौज है। राजनीति के हर फन में माहिर नेता गुबार को इसलिये दबाए हुए हैं कि उनकी सलाह की सुनवाई नहीं होती, कभी होती है तो मानी नहीं जाती। दिल्ली के तीन सौ किलोमीटर के दायरे में फैले राज्यों में ही मजबूत सोच वाले नेताओं की बड़ी फौज है।

राजनीतिक पंडित इस पर क्या कहते हैं ?

राजनीतिक पंडित इसे नेतृत्व की पहचानने की कमजोरी कहते हैं, हालांकि नेतृत्व को कमजोर नहीं मानते। कांग्रेस की लगाम “गांधी परिवार” के हाथ में जरूरी है, बस गांधी परिवार को सियासी समझ व जनाधार रखने वाले नेता पहचानने होंगे या कटु शब्दों में ये कहें गधे-घोड़े में अंतर करना होगा, फिर कोई “पीके” किराये पर लेना नहीं पड़ेगा। हर पार्टी में चाटुकार हैं लेकिन उनको पार्टी को “चट” करने इजाजत कतई नहीं होनी चाहिए। प्रचार-प्रसार के लिए किसी को हायर करना अलग बात है,जब ये कह दिया जाए कि एक नया नवेला बाहरी व्यक्ति पार्टी को

जनता की नज़र में मैदानी रुतबा बरकरार

उभारेगा तो इसे उन नेताओं के लिए शर्म की बात हो जाती है जो वर्षों से जुटे हैं। भले ही कांग्रेस सत्ता से अज्ञातवास भोग रही है, एक के बाद एक राज्य खो रही है लेकिन जनता की नज़र में मैदानी रुतबा बरकरार है। नई नवेली पार्टियों में पनप रहे नई नवेले नेता आज भी कांग्रेस के नेताओं के सामने बौने नज़र आते हैं। सोनिया गांधी खुद ऐसी नेता हैं जिन्होंने 90 के दशक के बाद कांग्रेस को नई जान दी,राहुल गांधी खुद उम्दा सोच के धनी हैं,बस उनको ब्रांडिंग नहीं मिल रही वरना प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी की काबलियत का आंकलन कैसे हो सकता है।

प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में मेहनत का जलवा दिखा दिया,भले ही हार हुई,अकेले लड़ी। बड़ी बात ये हो रही है कि नेता गांधी परिवार से कंधा नहीं मिला रहे। यूपी सहित 5 राज्यों में हार के बाद जी-23 लांग से बाहर आ गया लेकिन ये चुनावों में फील्ड में नज़र नहीं आये। कम ही नेता थे जो जुटे रहे। यहां तक कि स्टार प्रचारक भी प्रचार में नहीं पहुंचे। हार के बाद श्रद्धांजलि जैसी सभा हो गई।

2024 नजदीक है, अब कांग्रेस को नीति बदलनी होगी, बाहरी शिक्षक बड़ा नुकसान कर सकते हैं,अब टीम अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं की बनानी होगी जो रिजल्ट बेस काम करें। दक्षिण, उत्तर सभी दिशाओं से समझ वाले नेताओं को मैदान में उतारना होगा। जहां तक पीके की बात है, वे क्षेत्रीय दलों को संजीवनी दे सके, राष्ट्रीय दलों की नीति उनके समझ से बाहर नज़र आती है। इससे वो छोटे- बड़े नेता खफा होने लगे हैं जिनके अंदर दस-दस पीके हैं।

2024 में कांग्रेस हिला देगी चूल्हें

ये नेता सुबह- सुबह अखबार पढ़ते हैं कि पीके नैया पार लगाएंगे तो सीने पर सांप लौटता है। ठीक है, पार्टी में शामिल करो, पर तारणहार कह कर ये पुराने नेताओं को मुश्किल ही गंवारा होगा। ऐसी हवा कई नेताओं की जुबान से निकलने भी लगी है। मजबूत “नेता” अगर “नीति” बनाकर “नियत” से काम करेंगे तो 2024 में कांग्रेस चूल्हें हिला देगी। हिमाचल प्रदेश व गुजरात के चुनाव सिर पर हैं,अब तैयारी अपनो से करनी होगी। बाकि सपने बहुत दिखाएंगे,पार अपने ही लगाएंगे,ये समझ कांग्रेस आलाकमान को जहन में पैदा करनी होगी।

नेताओं की मैदानी हकीकत जान कर दमदारी से उतरना होगा। सोनिया गांधी 90 के दशक में अपनी राजनीतिक क्षमता दिखा चुकी हैं,ऐसे में उनको कमजोर नहीं कहा जा सकता। भले ही किसी के सियासी स्टार मजबूत चल रहे हों लेकिन गांधी परिवार का राजनीतिक सम्मान,ख़ौप बरकरार है। भले ही नरेंद्र मोदी हो या कोई ओर अंतरराष्ट्रीय नेता गांधी परिवार के गणित को भली-भांति समझता है।

बहरहाल, हनुमान रूपी गांधी परिवार को शक्ति याद दिलाने के लिए किसी जामवंत की जरूरत है ताकि उनको पता चले कि उनके पास सुग्रीव, नील-नल जैसे चमत्कारी योद्धा हैं, उनका प्रयोग हो,बाहरी क्यों? दरअसल,सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर पीके को 2024 तारणहार के रूप में पेश करने का मन बना रही है, कई मीटिंग हो चुकी, इससे दबी आवाज़ में उन नेताओं के सुर टेढ़े होने लगे हैं जो सियासी समझ का माद्दा रखते हैं। ये विवाद ठीक उसी राह पर है,जब राहुल गांधी ने हार्दिक पटेल को बड़ा पद दे दिया पर पार्टी में घुटेघुटाये कांग्रेसी उसे नहीं पचा रहे।

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