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Rajasthani Pheni Sweet: राजस्थानी मिठाई फेनी की देश-विदेश में है धूम, 800 साल पुराना इतिहास, पृथ्वीराज रासो में है उल्लेख

Rajasthani Pheni Sweet: राजस्थानी मिठाई फेनी या फिणी 800 सालों से लोगों की पसंद रही है. आज भी लोग इसे चाव से खाते हैं. हालांकि, इस शानदार मिठाई को आज भी जीआई टैग का इंतजार है. इस मिठाई की विदेशों में भी खूब डिमांड है.

Written By: Pushpendra Trivedi
Last Updated: December 27, 2025 14:37:36 IST

Rajasthani Pheni Sweet: मिठाइयां तो आपने कई तरह की खाई होंगी लेकिन जब बात आती है फेनी की तो इसकी बात ही अलग होती है. मिठाई का स्वाद लोगों को दूर-दूर तक खींच लाता है. पतले रेशों से बनने वाली यह मिठाई खाने में बहुत स्वादिष्ट और लजीज होती है. राजस्थान में सबसे ज्यादा फिणी मिठाई सांभर शहर में बनाई जाती है. राजस्थानी इसे फिणी भी कहते हैं, जो देसी व वनस्पति दोनों ही प्रकार के घी से तैयार की जाती है. इस मिठाई बनाने बनाने वाले कारीगर सुरेश लाल बताते हैं की फिणी मिठाई को स्वादिष्ट बनाने के लिए कड़ी मेहनत लगती है.

फेनी की सही रेसिपी अगर जानना हो तो आपको राजस्थान के सांभर शहर आना होगा, जहां की फिणी की डिमांड दूर-दूर तक है. सांभर में करीब 120 दुकानों द्वारा फिणी बनाई जाती है. यहां के दुकानदारों का कहना है कि यहां पर 10 क्विंटल फेनी रोज तैयार होती है. मुख्य त्योहारों पर फिणी या फेनी की डिमांड हाई रहती है. इसे बनाने के लिए मुख्य रूप से मैदा, वनस्पति, घी, चीनी का घोल यूज किया जाता है. सांभर शहर फिणी मिठाई की वजह से ही फेमस है. यहां के लोग त्योहार पर फेनी को बड़े चाव से खाते हैं.

फेमस है सांभर की फिणी मिठाई

पिछले 150 साल से सांभर शहर में फेनी मिठाई बनाई जा रही है. सांभर निवासी सुरेश बताते हैं कि वह पिछले 13 साल से फेनी बनाने का काम कर रहे हैं. उससे पहले उनके दादा व पिता भी यही काम करते रहे हैं. यह मिठाई दूसरे शहरों और राज्यों में भी जाती है. मुख्य त्योहारों पर सांभर की फेनी मिठाई की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. 

सदियों से चली आ रही और इतिहास में डूबी हुई यह मिठाई अभी भी भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा पाने की प्रतीक्षा कर रही है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इससे इसे अंततः राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान मिल सकती है. आटे और घी से बनी सांभर फेनी न केवल अपने स्वाद के लिए बल्कि अपनी परतदार संरचना के लिए भी जानी जाती है. जब गूंथे हुए आटे के गोले को उबलते घी में डुबोया जाता है, तो यह हजारों धागों की एक महीन जाली में खुल जाती है. एक लगभग जादुई बदलाव जिसने इसे ‘रहस्यमयी मिठाई’ के रूप में ख्याति दिलाई है।

इतिहास में है उल्लेख

फेनी की जड़ें इतिहास में बहुत गहरी हैं. सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य आर.के. शर्मा, जिन्होंने सांभर के फीनी व्यापार का सर्वेक्षण किया. उनके अनुसार, चंद बरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो में इस मिठाई का उल्लेख मिलता है. ऐसा माना जाता है कि राजा पृथ्वीराज चौहान के विवाह में मीठी और नमकीन दोनों प्रकार की फेनी परोसी गई थी, जिसका अर्थ है कि इसका लिखित इतिहास 800 वर्षों से अधिक पुराना है.

GI टैग का इंतजार

“शर्मा बताते हैं कि जीआई टैगिंग इस मिठाई के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकती है. मान्यता, नवाचार और उद्योग में दर्जा मिलने से सांभर फेनी को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचने में मदद मिल सकती है,” वे कहते हैं, साथ ही यह भी बताते हैं कि नमक की झील से प्रभावित क्षेत्र की अनूठी जलवायु मिठाई की बनावट और गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. “यह सिर्फ एक मिठाई नहीं बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है.” 

पीढ़ियों से संभाला व्यापार

इस मिठाई को बनाने वाले परिवारों ने पीढ़ियों से इस पाक कला को संरक्षित रखा है. बंशीलाल, जो तीसरी पीढ़ी के फीनी निर्माता हैं, बताते हैं कि वनस्पति घी से बनी फीनी का उत्पादन पूरे साल होता है, जबकि अधिक मूल्यवान शुद्ध घी से बनी फीनी केवल सर्दियों में ही तैयार की जाती है. वे आगे कहते हैं कि मकर संक्रांति के दौरान इसकी मांग चरम पर होती है. सांभर में सैकड़ों परिवारों के लिए फेनी ही आजीविका का एकमात्र साधन है. कारीगर योगेश गुर्जर कहते हैं कि हर साल दो महीने तक इसकी मांग बढ़ जाती है और ग्राहक अपनी जरूरत से काफी पहले ही अग्रिम ऑर्डर दे देते हैं. यहां आने वाले सैलानी भी इसे अपने साथ लिए बिना नहीं जाते.

अनुमान है कि सांभर में फेनी का वार्षिक कारोबार करीब 50 करोड़ रुपए का है. 50 से ज्यादा व्यापारी वनस्पति घी का उपयोग करके फेनी बनाते हैं, जबकि 10 से ज्यादा व्यापारी सर्दियों के दौरान शुद्ध घी से फेनी बनाते हैं. भारत और विदेशों में ग्राहकों तक पहुंचने के बावजूद (क्योंकि विदेशों में बसे सांभर मूल निवासी इसे अपने साथ ले जाते हैं), फीनी को आगरा के पेठा या बीकानेरी भुजिया जैसी पहचान नहीं मिली है. विशेषज्ञ इसका कारण जीआई टैगिंग, उद्योग का दर्जा और सुनियोजित ब्रांडिंग की कमी को मानते हैं.

लेकिन अच्छी बात यह है कि सांभर फेनी को राजस्थान पर्यटन विभाग के प्रचार पोस्टरों में जगह मिली है, जिसे इसके सांस्कृतिक महत्व की मान्यता माना जा सकता है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि जीआई दर्जा मिलने से न केवल फेनी को नकल से बचाया जा सकेगा बल्कि स्थानीय कारीगरों को आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाया जा सकेगा. शर्मा कहते हैं, “उचित ब्रांडिंग और सरकारी सहयोग से यह 800 साल पुरानी मिठाई वैश्विक पाक कला मानचित्र पर अपना उचित स्थान प्राप्त कर सकती है.”

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