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India News (इंडिया न्यूज़), Somnath Sharma Birthday: देश का सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र ज्यादातर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध (Indo-Pak War) के दौरान वीरता के लिए दिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की बात होती है तो 1965, 1971 और 1998 के युद्धों की बात की जाती है। लेकिन देश का पहला परमवीर चक्र पाकिस्तान के खिलाफ लड़े गए युद्ध के लिए दिया गया था, लेकिन इन तीन युद्धों में से किसी के लिए नहीं दिया गया था। मेजर सोमनाथ शर्मा को 1947 के भारत-पाक युद्ध में अदम्य साहस दिखाने के लिए यह पुरस्कार दिया गया था। आज सोमनाथ शर्मा का जन्मदिन हैं तो चलिए जानते हैं उनके संघर्ष के के बारें में
मेजर शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को कांगड़ा, पंजाब (आज का हिमाचल प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता अमरनाथ शर्मा खुद एक आर्मी ऑफिसर थे. शेरवुड कॉलेज, नैनीताल में स्कूली शिक्षा के बाद, मेजर शर्मा ने रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहार्ट में अपनी पढ़ाई की। मेजर शर्मा को उनके दादा के दादा ने भगवत गीता से कृष्ण अर्जुन की प्रेरणादायक कहानियाँ सिखाईं, जिससे वे जीवन भर प्रभावित रहे।
स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, मेजर शर्मा सेना की 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट की 8वीं बटालियन में शामिल हो गए, जिसे बाद में भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की 4वीं बटालियन कहा गया। उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना की ओर से द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया और बर्मा में जापानी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
बता दें कि, 1947 में जब पाकिस्तान ने कबाइलियों के माध्यम से कश्मीर पर आक्रमण किया। फिर 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना ने कश्मीर घाटी में एक टुकड़ी भेजी। मेजर शर्मा उस समय कुमाऊं बटालियन की डी कंपनी में तैनात थे। जब उनकी कंपनी ने उन्हें कश्मीर में तैनात करने का आदेश जारी किया, तो हॉकी खेलते समय लगी चोट के कारण मेजर शर्मा के दाहिने हाथ पर प्लास्टर लगा हुआ था।
इस दौरान स्थानीय घरों से भी मेजर शर्मा की कंपनी के जवानों पर फायरिंग की गई. लेकिन मेजर शर्मा की टुकड़ी ने आम लोगों की खातिर बिना जवाबी कार्रवाई किए भागने का फैसला किया। इसी दौरान 700 आतंकवादियों और पाकिस्तानी सैनिकों ने मेजर शर्मा की कंपनी पर हमला कर दिया, जिसके कारण कंपनी तीन तरफ से दुश्मनों से घिर गई। उन पर मोर्टार से भी हमला किया गया।
लेकिन इस मौके पर भी मेजर शर्मा और उनकी टुकड़ी पीछे नहीं हटी। मेजर शर्मा भी सतर्क खड़े थे। एक हाथ में प्लास्टर बांधे मेजर शर्मा खुद दौड़-दौड़कर सैनिकों को हथियार और गोला-बारूद बांट रहे थे। इसके बाद उन्होंने एक हाथ में लाइट मशीन गन भी पकड़ रखी थी।
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