संबंधित खबरें
24-29 दिसंबर तक अमेरिकी दौरे पर रहेंगे PM Modi के खास दूत, इन मुद्दों पर होने वाली है चर्चा, पूरा मामला जान थर-थर कांपने लगा चीन-पाकिस्तान
बारिश की वजह से दिल्ली में बढ़ी ठिठुरन, पड़ने वाली है हाड़ कंपा देने वाली ठंड, जानें कैसा रहेगा पूरे हफ्ते का मौसम?
जया प्रदा के खिलाफ कोर्ट ने जारी किया वारंट,पूरा मामला जान उड़ जाएगा होश
रास्ता भटक गई वंदे भारत एक्सप्रेस,जाना था कहीं और पहुंच गई कहीं और…मामला जान पीट लेंगे माथा
अजीत पवार का ‘भुजबल’ हुआ कम, भाजपा में शामिल होगा यह दिग्गज नेता! CM से मुलाकात के बाद मचा हड़कंप
'भारत नहीं पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे महात्मा गांधी', इस मशहूर हिंदूस्तानी ने मचाया बवाल, तिलमिला गए सुनने वाले
फिर कहां खा गए नवजोत सिद्धू से मात
इंडिया न्यूज, चंडीगढ़:
पिछले कई माह से पंजाब राजनीति में बिछी शतरंत की बिसात में आखिरकार कैप्टन अमरिंदर सिंह को शिकस्त माननी पड़ी। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी बनाए जाने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने सीएम को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर ही दिया। कैप्टन चाहे कुछ भी बोले पर यह सच है कि राजनीति के इस मंच पर इस बार उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी। हालांकि, शनिवार को जो हुआ, उसका पहला संकेत कैप्टन को सीएम बनने के कुछ महीनों के अंदर ही मिल गया था। अपने कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री की टीम में उनके खिलाफ सुर उठने शुरू हो गए थे। अगर शनिवार को कैप्टन को हार मानने के लिए विवश होना पड़ा तो इसके सूत्रधार भी उनकी अपनी ही पार्टी के विधायक रहे।
2017 के उपचुनावों के दौरान अमरिंदर सिंह ने गुटका साहिब हाथ में लेकर राज्य से नशा खत्म करने की शपथ ली थी। हालांकि, पंजाब इस मामले में कुछ खास आगे नहीं बढ़ पाया। इसी बात को नवजोत सिद्धू ने हाईकमान के सामने रखकर कैप्टन के खिलाफ पकड़ मजबूत की।
वर्ष 2015 में गुरुग्रंथ साहिब बेअदबी के खिलाफ प्रदर्शन कर रही भीड़ पर पंजाब पुलिस ने फायरिंग की थी। इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हुए थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लोगों से वादा किया था कि वे जल्द इंसाफ दिलांएगे। कैप्टन अमरिंदर सिंह पर इस मामले की जांच कराने का लगातार दबाव बनाया गया। साल 2017 में अमरिंदर सिंह ने जस्टिस रंजीत सिंह की अध्यक्षता में एक कमीशन भी बनाया लेकिन अभी तक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। प्रदेश में विपक्षी दल इसको लगातार उठा रहे थे। इसको आधार बनाकर सिद्धू ने केंद्रीय नेतृत्व के सामने सीएम को निशाने पर लिया।
कैप्टन का अपने विधायकों से ज्यादा नौकरशाही को महत्व देना भी उनके लिए घातक सिद्ध हुआ। राजनीतिक गलियारों में अकसर यह चर्चा रहती थी कि सीएम अपने विधायकों से ज्यादा महत्व अपने सरकारी अधिकारियों को देते हैं। कैप्टन के कई विधायकों का यह दावा भी है कि उनका दफ्तर 1983 बैच के आईएएस अधिकारी सुरेश कुमार चलाते थे, जिन्हें बाद में कैप्टन ने अपना चीफ प्रिंसिपल सेक्रटरी भी बनाया था। हालांकि, इस नियुक्ति को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन सीएम कैप्टन ने इस इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया था और पंजाब सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दायर की। हालांकि, शनिवार को कैप्टन के सीएम पद से इस्तीफे के कुछ ही देर बाद सुरेश कुमार ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया। इस बात को लेकर भी विधायकों ने केंद्रीय हाईकमान को पत्र लिखकर कैप्टन की शिकायत की थी।
2019 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू ने आवाज खुलकर बुलंद कर दी थी। सिद्धू ने अप्रैल 2019 में पंजाब कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद सिद्धू ने कैप्टन से नाराज विधायकों को अपने साथ मिलाना शुरू कर दिया। इस बात की तरफ सीएम ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जब सीएम ने इस तरफ ध्यान दिया तब तक नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश कांग्रेस में अपना अहम स्थान बना चुके थे। पार्टी के दर्जनों विधायकों का समर्थन सिद्धू को मिल चुका था। जिसके चलते हाई कमान ने 19 जुलाई को सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। जिसके बाद प्रदेश की राजनीति की तस्वीर बदलती चली गई।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.