संबंधित खबरें
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सुनील कुमार पाठक की पुस्तक 'लीगल फर्स्ट एड' का विमोचन
'लोगों को हमेशा राष्ट्र को पहले रखना चाहिए…' UCC पर उपराष्ट्रपति धनखड़ का बड़ा बयान, सुनकर विरोध करने वालों के उड़े होश
ठंड से राहत के बाद दिल्ली में कल बारिश होने के आसार, देश के अन्य राज्यों में जान लीजिए क्या है आज का मौसम?
Petrol-Diesel Latest Price:दिल्ली समेत प्रमुख महानगरों में जान ले क्या है आज की पेट्रोल-डीजल की कीमत?
कौन हैं गौतम अडानी की होने वाली बहू? क्यों किया जा रहा इंटरनेट पर इतना सर्च?
गोवा में घूमने का बना रहे हैं प्लान, हो जाएं सावधान, खाली हो सकती है तिजोरी
अजीत मैंदोला, नई दिल्ली। प्रशांत किशोर प्रकरण ने कांग्रेस के पूर्व अध्य्क्ष राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी के बीच संबधों मे कहीं ना कहीं तनातनी को उजागर किया है। यह बात पूरी तरह से साफ हो गई कि न तो अंतरिम अध्य्क्ष सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल कराने के पक्ष में थे। केवल प्रियंका गांधी ही प्रशांत को शामिल कराना चाहती थी, उनके आग्रह पर सोनिया गांधी ने पार्टी के प्रमुख नेताओं से चर्चा करवाई।
अधिकांश नेताओं ने अपनी असहमति जता प्रशांत के कांग्रेस में शामिल कराने के चेप्टर को बंद करवाया। राहुल गांधी के 18 अप्रैल को विदेश रवाना होने से संकेत मिल गए थे कि प्रशांत की कांग्रेस में शामिल होने की कोशिश सफल नहीं होगी। प्रशांत के साथ नेताओं की बैठकों के दौर शुरू होते ही राहुल विदेश निकल गए थे। तभी माना जाने लगा था कुछ गड़बड़ है।
सूत्रों की माने तो बैठकों में सोनिया गांधी भी कम ही बैठी। प्रियंका ही प्रशांत के प्रस्तावों को समझ रही थी। इन बैठकों से कांग्रेस को एक फायदा जरूर हुआ कि पार्टी में बने दोनों गुटों में एकता हो गई। अधिकांश अनुभवी और पुराने नेता तो प्रशांत के पक्ष में थे ही नहीं, राहुल की टीम भी नहीं चाहती थी कि प्रशांत कांग्रेस में शामिल हों। नेताओं ने उसी रणनीति पर काम किया और प्रशांत प्रकरण को खत्म करवाया।
बीते हफ्ते भर के घटनाक्रम से दो तीन बातें साफ हो गई। एक तो सोनिया गांधी ने खुद फ्रंट सीट पर बैठ पार्टी को अपने हिसाब से चलाना शुरू कर दिया है। दूसरा अब पार्टी पुराने और अनुभवी नेताओं को आगे कर चलेगी। सबसे अनुभवी राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत तो गांधी परिवार के साथ खड़े थे ही, लेकिन मध्य्प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्ग्विजय सिंह की 10 जनपथ में बढ़ती सक्रियता ने बहुत कुछ संकेत दे दिए हैं।
सोनिया गांधी ने चिंतन शिविर के लिए बनाई समिति में अपने सभी पुराने भरोसे के नेताओं को जगह दे कर अंसन्तुष्ठ गुट की चर्चा को भी समाप्त कर दिया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुकुल वासनिक, गुलाम नवी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर मतलब अंसन्तुष्ठ समझे जाने वाले सभी नेता पुरानी भूमिका में आ गए। यही नेता सोनिया गांधी के अध्य्क्ष रहते पार्टी की चुनावी रणनीति बनाते थे।
2014 में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के सीधे फेसले करने के बाद से पार्टी में पुराने नेताओ से चचार्ओं का दौर सीमित हो गया था। उसके बाद तो कांग्रेस में कई प्रयोगों के दौर शुरू हुए जो उल्टे पड़ते गए।
2017 यूपी के विधानसभा चुनावों के बाद स्थिति और बिगड़ी। प्रियंका गांधी का सीधा दखल बढ़ गया। पहले प्रशांत किशोर को लाई, फिर अचानक सपा के साथ गठबंधन कर लिया। सभी बड़े नेता हैरान और परेशान थे। लेकिन कोई कुछ नही बोला सब चुप बैठ गये।
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित रही हों या तब प्रभारी रहे गुलाम नवी आजाद समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने अपने को साइड कर लिया। कांग्रेस की स्थिति बिगड़ती गई।
राहुल पूरी तरह से बहन पर निर्भर हो गए। सारे फैसले उल्टे पड़ते गए। 2019 लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद तो राहुल गांधी का अध्य्क्ष पद छोड़ने का फैसला भी आज तक किसी की समझ में नहीं आया।
राहुल के अध्य्क्ष पद छोड़ने के बाद पार्टी दो गुटों में बंट गई। इसी के बाद अंसन्तुष्ठ नेताओं के गुट ने कमजोर होती पार्टी को लेकर सवाल उठाए। लेकिन कोई सुनवाई नही हुई।
प्रियंका गांधी ने फ्रंट पर खेलना शुरू कर दिया। राज्यों में पार्टी चुनाव हारने लगी। पंजाब में प्रियंका ने सीधे दखल दिया। यूपी चुनाव की पूरी रणनीति खुद बनाई। अनुभवी नेताओं को पूरी तरह से किनारे रखा गया।
राहुल गांधी ने भी प्रियंका के प्रयोगों पर अपनी सहमति जताई। लेकिन यूपी समेत पांच राज्यों में हुई करारी हार ने प्रियंका गांधी की रणनीति और फैसलों की धज्जियां उड़ा दी।
पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में आ गया। प्रियंका पर भी असफल राजनीतिज्ञ का ठप्पा लग गया। क्योंकि यूपी के सारे प्रयोग और फैसले प्रियंका के खुद के थे। यही नहीं बाकी राज्यों के फैसलों में भी उनकी अहम भूमिका थी।
इस बीच प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा की सक्रियता और राजनीति में आने की इच्छा व्यक्त करने ने भी कई चचार्ओं को जन्म दिया।
हालांकि भाई बहन के बीच कभी खुलकर कोई ऐसी बात सामने नहीं आई कि जिससे लगे कि दोनों के बीच कुछ गड़बड़ चल रहा है। लेकिन अचानक प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल कराने के प्रयासों ने संकेत दे दिए कि भाई बहन के विचारों में अब सहमति नहीं है।
राहुल गांधी कभी भी प्रशांत के पक्ष में नही रहे। क्योंकि 2017 के बाद से प्रशांत ने हमेशा कांग्रेस की खिलाफत ही की। राहुल के खिलाफ बोल चुके थे। इसके बाद भी प्रियंका का प्रशांत पर भरोसा करना समझ से परे माना जा रहा है।
जानकार यहां तक मान रहे हैं प्रशांत चुनाव तो नही जितवा सकते थे, लेकिन लगातार हार से पार्टी में टूट जरूर हो जाती। सोनिया गांधी ने समय रहते सही फैसला कर फिलहाल पार्टी को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है। प्रशांत की कांग्रेस में घुसपैठ की कोशिश नाकाम होने के बाद प्रियंका भी 26 अप्रैल को अमरीका चली गई।
हमें Google News पर फॉलो करे- क्लिक करे !
ये भी पढ़ें : Prashant Kishor कांग्रेस में शामिल नहीं होंगे चुनावी रणनीतिकार
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.