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Ukraine war VS Putin Army: क्या रूस यूक्रेन से युद्ध जीतकर हार सकता है?

Suman Tiwari • LAST UPDATED : March 4, 2022, 2:29 pm IST
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Ukraine war VS Putin Army: क्या रूस यूक्रेन से युद्ध जीतकर हार सकता है?

Ukraine war VS Putin Army

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Ukraine war VS Putin Army: कहा जा रहा है जिस हिसाब से यूक्रेन और रूस का युद्ध चल रहा है। उस हिसाब से तो रूस यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा कर सकती है। मानिए अगर ऐसा होता है तो यूक्रेन में इस कठपुतली सरकार को बचाए रखना रूस के लिए काफी मुश्किल हो सकता है। क्योंकि यूक्रेन ईस्ट और वेस्ट में बंटा हुआ है। बता दें कि ईस्ट में रूसी भाषा बोलने वालों की संख्या ठीकठाक है। ऐसे में यहां तो कठपुतली सरकार को समर्थन मिलेगा, लेकिन वेस्ट में यूक्रेनियन अधिक रहते हैं। इसलिए यहां इसका विरोध होगा।

2022 के रूस यूक्रेन युद्ध ने 1989 की दूसरे विश्व युद्ध की यादें ताजा कर दी हैं, जब जर्मनी का जीता हुआ हिस्सा लोगों के आक्रोश के चलते रूस के हाथों से निकल गया था। तो चलिए जानते हैं क्या है 1989 की स्टोरी। आखिर कैसे युद्ध जीत कर भी हार सकता है रूस। क्यों युद्ध जीतकर भी यूक्रेन को कंट्रोल में रखना रूस के लिए होगा मुश्किल।

रूस ने कब कब्जाया था जर्मनी का एक हिस्सा? (When did Russia occupied a part of Germany)

  • एक सितंबर 1939 को दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई थी। जर्मनी के खिलाफ यूएसएसआर, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन सभी एक साथ लड़ रहे थे। युद्ध के बाद बर्लिन शहर पर यूएसएसआर, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन चारों का कब्जा हो गया था। 1948 में एक देश वेस्ट जर्मनी बनाने की बात चली तो स्टालिन ने इसका विरोध किया। उन्होंने शहर को दो हिस्से में बांट दिया।
  • उसके कुछ साल बाद 13 अगस्त 1961 को निकिता ख्रुश्चेव ने अचानक से दीवार खड़ी कर पूर्वी बर्लिन के हिस्से को पश्चिमी बर्लिन से अलग करने का फरमान सुनाया। रातों-रात लोहे के कंटीले तार की दीवार खड़ी हो गई। शहर के लोगों ने इसका विरोध किया, लेकिन विरोध को बंदूक की ताकत पर दबा दिया गया।
  • जब लोहे की दीवार कंक्रीट की बनी, तो लोग कहने लगे ‘बर्लिन की दीवार’
    लोहे की दीवार की जगह ख्रुश्चेव ने मजबूत कंक्रीट की दीवार खड़ी कर दी तो लोग इसे ही बर्लिन की दीवार कहने लगे। दीवार के एक तरफ वाले हिस्से में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की सेना थी और दूसरी ओर यूएसएसआर की फौज। इस तरह जर्मनी दो हिस्से में बंट गया था, एक जर्मनी ईस्ट और दूसरा जर्मनी वेस्ट। वहीं बर्लिन की दीवार 9 नवंबर 1989 को टूटी थी।

यूएसएसआर को क्यों बुलानी पड़ी थी पुलिस? ( Ukraine war VS Putin Army)

  • बर्लिन की दीवार बनने के बाद एक हिस्से में यूरोपीय देशों के संपर्क में आने की वजह से विकास तेज हुआ। वहीं, यूएसएसआर वाले हिस्से में कम्युनिस्ट सरकार की कमजोर नीतियों की वजह से भूख और गरीबी की हालात पैदा हो गए। फिर पूर्वी जर्मनी से पश्चिम की तरफ पलायन शुरू हो गया। पूर्वी जर्मनी का हर छठा आदमी पश्चिम जर्मनी चला गया। सरकारी आंकड़े में 25 लाख से ज्यादा लोगों ने पूर्वी जर्मनी से पलायन किया था।
  • यूएसएसआर ने पलायन रोकने के लिए स्पेशल पुलिस बनाई, लेकिन हर पांच में से एक शख्स को ही पुलिस पकड़ पा रही थी। कइयों को दीवार पार करते समय रूसी सेना ने गोली मार दी। आखिरकार यूएसएसआर की सरकार को नौ नवंबर 1989 में पाबंदियां हटानी पड़ीं। फिर 1990 में सरकार ने पूरी तरह से बर्लिन की दीवार को गिराकर पूरे जर्मनी को मिला दिया। इसी के साथ यूएसएसआर से बाकी छोटे-छोटे कई देश भी आजाद हो गए थे।

क्या युद्घ जीतकर भी रूस के लिए मुसीबत बनेगा यूक्रेन?

  • जर्मनी की तरह ही यूक्रेन भी दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पूर्वी यूक्रेन के कुछ हिस्से में रूसी भाषा बोलने वालों की तदाद ज्यादा है। वहीं, पश्चिमी यूक्रेन में मूल यूक्रेनियन की तदाद ज्यादा है। ऐसे में राजधानी कीव की सत्ता पर रूस अपनी पसंद की कठपुतली सरकार बिठा भी देते हैं तो उस सरकार को बचा पाना मुश्किल होगा।
  • इसकी वजह यह है कि यूक्रेन की कुल आबादी में से करीब 75 फीसदी जनसंख्या मूल निवासियों की है। किसी मुल्क की सरकार से वहां की 75 फीसदी से ज्यादा आबादी नाराज हो तो ऐसे में किसी सरकार का बने रहना मुश्किल और चुनौती भरा होगा।

क्या बयां कर रही मौजूदा युद्ध की हालत? ( Ukraine war VS Putin Army)

  • रूस पर लगाए गए प्रतिबंध और यूक्रेन का प्रतिरोध राष्ट्रपति पुतिन के लिए मुश्किल हालात पैदा कर सकता है। एक-दो सप्ताह की लड़ाई के बाद यूक्रेन और रूस संघर्ष-विराम के लिए तैयार हो सकते हैं। रूस यूक्रेन से पीछे हट जाएगा, क्रीमिया रूस के पास ही रहेगा और डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहांस्क प्रांत) यूक्रेन के नियंत्रण के बाहर हो जाएगा। यूक्रेन के सामने दो परिस्थितियां होंगी। वह फिनलैंड की तरह तटस्थ रहेगा या फिर नाटो में शामिल होने के लिए गिड़गिड़ाएगा।
  • अगर ऐसा नहीं होता है तो नाइपर नदी के दोनों तरफ दोनों पक्ष डट जाएंगे। रूस का पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया पर पूर्ण नियंत्रण हो जाएगा। तनाव बरकरार रहेगा। पश्चिमी यूक्रेन कमजोर हो जाएगा और वह नाटो का हिस्सा बनने के लिए मिन्नत करेगा। अगर रूस जीत जाता है, तो यूक्रेन के पश्चिमी इलाके और अहम शहरों में पब्लिक रेजिस्टेंस गुरिल्ला युद्ध की शक्ल ले लेगा। ऐसे में बहुत खून-खराबा होगा। अगर यूक्रेन कभी जीता भी तो कम से कम एक जेनरेशन पीछे चला जाएगा।

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