India News (इंडिया न्यूज़),Citizenship Amendment Act: हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA का नोटिफिकेशन जारी होने के साथ ही इसके खिलाफ आवाजें उठने लगीं। 2019 में जब ये बिल पास हुआ था तब भी इसका काफी विरोध हुआ था और कुछ लोग ये कहते दिखे थे कि इसके बाद सरकार एनआरसी लाएगी और उनकी नागरिकता चली जाएगी। हालांकि सीएए सिर्फ नागरिकता देने की बात करता है, लेकिन यह सिर्फ 3 देशों से आने वाले 6 धर्मों के लोगों को ही दी जाएगी, जो उत्पीड़न का शिकार होकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हैं।
जिस तरह देश के संविधान में नागरिकता का प्रावधान बताया गया है, उसी तरह यहां नागरिकता वापस लेने की जानकारी दी गई है। हमारे देश के संविधान में तीन तरीकों से किसी को नागरिकता मिल सकती है, जो कुछ इस प्रकार है। नागरिकता ख़त्म करने का जिक्र देश के संविधान में भी है और इसे नागरिकता कानून की धारा 8, 9 और 10 में रखा गया है।
1: धारा 8 में कहा गया है कि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से नागरिकता छोड़ सकता है।
2: धारा 9 में समाप्ति है और इसमें कहा गया है कि यदि कोई नागरिक दूसरे देश में जाकर नागरिकता लेता है तो उसकी भारत में नागरिकता समाप्त हो जाएगी।
3: धारा 10 में कहा गया है कि केंद्र सरकार किसी भी व्यक्ति को नागरिकता से वंचित कर सकती है। इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति भारत में पैदा हुआ है और उसके पास भारतीय नागरिकता है तो उसकी नागरिकता छीनी नहीं जा सकती, लेकिन जिनकी नागरिकता जन्म से और अन्य आधार पर नहीं है उन्हें नागरिकता दी जाती है। , इसे भारत सरकार छीन सकती है। हालाँकि, इसमें कुछ शर्तें हैं, जैसे कि अगर उसने झूठ बोला है, तो ऐसी स्थिति में उसकी नागरिकता छीनी जा सकती है। इसके अलावा अगर वह भारत का नागरिक बनने के बाद लगातार अपराध में शामिल है और जेल में है तो उसकी नागरिकता भी छीनी जा सकती है।
हालाँकि, सरकार जब भी ऐसा कोई कदम उठाएगी तो उससे पहले बाकायदा नोटिस जारी किया जाएगा और पूछा जाएगा कि आपको नागरिकता से वंचित क्यों न कर दिया जाए? इसके बाद वह सरकार के आदेश को लेकर ट्रिब्यूनल में अपील करेंगे और आदेश के बाद ही उनकी नागरिकता ली जाएगी। सरकार अपनी मर्जी से उन्हें देश से बाहर नहीं निकाल सकती।
1950 के दशक के दौरान अफगानिस्तान से हिंदू और सिख अप्रवासी आए, जिनमें से कुछ ने भारत में नागरिकता के लिए आवेदन किया। ऐसे लोगों की संख्या बमुश्किल 15,000 से 20,000 के आसपास थी। अफगानिस्तान में उन पर अत्याचार हो रहा था और जब वे उससे बचने के लिए भारत आए, तो भारत ने उन्हें कभी खतरे के रूप में नहीं देखा। इसके बाद पाकिस्तान की ओर से करीब 20 हजार लोग राजस्थान सीमा से भारत आ गए।
1959 में तिब्बत में बड़ा संकट था और जब 14वें दलाई लामा वहां से आए तो उनके साथ करीब 80 हजार लोग आए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि स्थिति सुलझने तक हम आपको शरणार्थी का दर्जा देंगे। ये लोग अधिकतर हिमाचल और कर्नाटक के मैक्लोडगंज में बसे हुए हैं। इनकी संख्या भी एक लाख के आसपास है और ये भी भारत के लिए बड़ा संकट न बन जाए।
1982 में म्यांमार में बर्मा नागरिकता अधिनियम पारित किया गया, जिसके कारण वहां रहने वाले रोहिंग्या देश के नागरिक नहीं रहे। इनमें सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि हिंदू भी शामिल हैं। इसके बाद यहां से बड़ी संख्या में लोग बांग्लादेश चले गए। उस समय तो वे भारत नहीं आए, लेकिन 2017 में एक बार फिर म्यांमार में रोहिंग्याओं के साथ गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई, इसलिए 20 से 30 हजार रोहिंग्या यहां से निकलकर भारत आ गए।
श्रीलंका से भी बड़ी संख्या में अप्रवासी भारत आये। 1948 में स्वतंत्रता के बाद श्रीलंका ने सीलोन नागरिकता अधिनियम नामक एक कानून पारित किया, जिसके तहत भारतीय मूल के तमिलों की नागरिकता छीन ली गई, उनकी संख्या लगभग 7 लाख बताई जाती है। इसके बाद तमिल और श्रीलंका के बीच लंबा युद्ध चला और इसमें तत्कालीन पीएम राजीव गांधी की भी जान चली गई।
हाल ही में भारत और श्रीलंका के बीच दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें भारत ने 7 लाख में से लगभग 4।5 लोगों को नागरिकता दी है और लगभग 1 लाख शरणार्थी अभी भी भारत में रहते हैं। इनमें से अधिकतर तमिलनाडु और कुछ आसपास के राज्यों में हैं। पिछले 70 वर्षों में हमारे सामने वास्तविक संकट बांग्लादेश का ही है। यहां से देश में जो पलायन हुआ है, उसने भारत के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
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