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मुस्लिम देशों की चमक पड़ी फीकी, अब इन मुल्कों से बोरा भरकर पैसा भेज रहे इंडियंस, सामने आया चौंकाने वाला आंकड़ा

Indian Remittances: हाल के आंकड़ों के मुताबिक, खाड़ी देशों से भारत आने वाले रेमिटेंस की मात्रा में कमी आई है। रेमिटेंस का मतलब है विदेशों में काम करने वाले भारतीयों द्वारा घर भेजा जाने वाला पैसा। इस दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और सिंगापुर जैसे विकसित देशों से आने वाले रेमिटेंस में बढ़ोतरी हुई है।

BY: Sohail Rahman • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Indian Remittances: विदेशों में काम करने वाले भारतीयों ने अपने देश के विकास में अहम भूमिका निभाई है। इन भारतीयों में हर तरह के लोग हैं। लेकिन, सबसे बड़ी संख्या मजदूरों की है। ये मजदूर खास तौर पर सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, कतर, ओमान और बहरीन जैसे खाड़ी देशों जैसे इस्लामिक देशों में जाते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इस ट्रेंड में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। दक्षिण भारत से खाड़ी देशों में जाने वाले मजदूरों की संख्या घट रही है, जबकि उत्तर और पूर्वी भारत से बड़ी संख्या में लोग अभी भी वहां जा रहे हैं। हाल के आंकड़ों के मुताबिक, खाड़ी देशों से भारत आने वाले रेमिटेंस की मात्रा में कमी आई है। रेमिटेंस का मतलब है विदेशों में काम करने वाले भारतीयों द्वारा घर भेजा जाने वाला पैसा। इस दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और सिंगापुर जैसे विकसित देशों से आने वाले रेमिटेंस में बढ़ोतरी हुई है।

इस्लामिक देशों से आने वाले रेमिटेंस में गिरावट

आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 में यूएई की हिस्सेदारी 26.9 फीसदी थी, जो 2023-24 में घटकर 19.2 फीसदी रह गई। सऊदी अरब की हिस्सेदारी 11.6 प्रतिशत से गिरकर 6.7 प्रतिशत हो गई। कुवैत से आने वाला धन 6.5 प्रतिशत से गिरकर 3.9 प्रतिशत हो गया। अमेरिका से आने वाला धन 22.9 प्रतिशत से बढ़कर 27.7 प्रतिशत हो गया। ब्रिटेन का हिस्सा 3.4 प्रतिशत से बढ़कर 10.8 प्रतिशत हो गया। कनाडा से आने वाला धन 3 प्रतिशत से बढ़कर 3.8 प्रतिशत हो गया। यानी पिछले कुछ समय में इन पश्चिमी देशों से लक्ष्मी भारत आ रही है।

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Indian Remittances (विदेशों से आने वाले पैसे)

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इन राज्यों में विदेश से आने वाले पैसों में आई कमी

अंग्रेजी अखबार द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ राज्यों को विदेश से ज्यादा पैसा मिल रहा है, जबकि कुछ राज्यों को बहुत कम। महाराष्ट्र को 2016-17 में 16.7 प्रतिशत धन मिला, जो 2023-24 में बढ़कर 20.5 प्रतिशत हो गया। केरल का हिस्सा 19 प्रतिशत से बढ़कर 19.7 प्रतिशत हो गया। तमिलनाडु का हिस्सा 8 प्रतिशत से बढ़कर 10.4 प्रतिशत हो गया। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को मिलने वाली धन-प्रेषण राशि कम रही है। उत्तर प्रदेश को 2016-17 में 3.1 प्रतिशत धन-प्रेषण प्राप्त हुआ था, जो 2023-24 में गिरकर 3 प्रतिशत रह गया। बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से 3 प्रतिशत के बीच रही।

खाड़ी देशों में घटी श्रमिकों की संख्या

भारत से खाड़ी देशों में जाने वाले श्रमिकों की संख्या में भी बदलाव हो रहा है। इमिग्रेशन क्लीयरेंस (ईसी) के आंकड़ों से पता चलता है कि दक्षिण भारत से खाड़ी देशों में जाने वाले श्रमिकों की संख्या घट रही है, जबकि उत्तर और पूर्वी भारत से अभी भी अधिक श्रमिक इन इस्लामी देशों में जा रहे हैं।

पलायन में आई कमी

2014-16 में केरल से 82,000 श्रमिक गए थे, जो 2021-24 में घटकर 60,000 रह गए। तमिलनाडु से जाने वालों की संख्या 1.3 लाख से घटकर 78,000 हो गई। तेलंगाना से जाने वाले श्रमिकों की संख्या 69,000 से घटकर 35,000 रह गई। पंजाब से जाने वाले मजदूरों की संख्या 94,000 से घटकर 39,000 रह गई। उत्तर और पूर्वी भारत से पलायन अधिक रहा। उत्तर प्रदेश से खाड़ी देशों में जाने वाले मजदूरों की संख्या 2014-16 में 4 लाख से अधिक थी, जो 2021-24 में 4.25 लाख रही। बिहार से जाने वाले मजदूरों की संख्या 2 लाख से अधिक रही। पश्चिम बंगाल और राजस्थान से भी पलायन जारी रहा, हालांकि इसमें थोड़ी कमी आई।

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