India News (इंडिया न्यूज), World Sparrow Day: क्या आप जानते हैं कि एक नन्हीं सी गौरैया चीन में करीब साढ़े चार करोड़ लोगों की मौत का कारण बन गई थी। चीन ने गौरैया को को मारने के लिए एक बहुत बड़ा अभियान चलाया गया था जिसमें लाखों गौरैया को निशाना बनाया गया था। चीन में माओत्से तुंग के आदेश के बाद इनका भयंकर कत्लेआम शुरू हुआ था। इनकी संख्या इतनी तेजी से कम हुई कि देश भुखमरी से जूझने लगा था। जब तक चीन सरकार को इसका अहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
आज गौरैया का जीवन खतरे में है। इनकी घटती आबादी के कारण ही इन्हें बचाने के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।चलिए इस मौके पर आपको बताते हैं कि चीन ने गौरैया को खत्म करने का फैसला क्यों लिया गया और उस फैसले का क्या नतीजा निकला।
World Sparrow Day
माओत्से तुंग ने 1957 से 1962 के बीच दूसरी पंचवर्षीय योजना शुरू की थी। इस अवधि को ग्रेट लीप फॉरवर्ड कहा गया। पहली योजना में मिली सफलता से उत्साहित माओ ने इस बार योजना का दायरा बढ़ा दिया था। लेकिन दूसरी योजना सफल नहीं हुई। अपनी विफलता को छिपाने के लिए चीनी अधिकारियों ने तर्क दिया कि मच्छरों, गौरैया और चूहों की वजह से देश को हर साल काफी नुकसान होता है। इनसे निपटने के उपाय किए जाने चाहिए। अधिकारियों ने बताया कि गौरैया सारा अनाज खा जाती हैं। नतीजतन, उत्पादन कम हो रहा है। इसके बाद ही माओ ने इन्हें खत्म करने का आदेश दिया।
माओ के इस अभियान को ‘द ग्रेट स्पैरो’ अभियान भी कहा जाता है। माओ के आदेश के बाद गौरैया को खत्म करने की होड़ मच गई। अधिकारियों ने तरह-तरह के तरीके अपनाए। छात्रों और नौकरशाहों को मिलाकर 30 लाख लोगों की एक फोर्स बनाई गई, जो सुबह 5 बजते ही गौरैया के साथ-साथ सभी छोटे पक्षियों को जाल में फंसाकर नीचे गिराना शुरू कर देती। ऊंचे बांस खड़े करके उनके सिर पर गोंद लगा दी गई ताकि पक्षी उस पर बैठते ही फंस जाए और फिर उड़ न सके। पहले ही दिन लाखों गौरैया को मार दिया गया।
गौरैया को पूरी तरह खत्म करने के लिए उनके घोंसलों को नष्ट कर दिया गया। अंडे तोड़ दिए गए। लोगों ने इतना शोर मचाया कि गौरैया कहीं बैठ ही न सके। विशेषज्ञों का कहना है कि गौरैया के लिए आराम जरूरी है। वे बिना आराम के ज्यादा देर तक उड़ नहीं सकतीं। नतीजतन, कई बार वे उड़ते-उड़ते थक जातीं और जमीन पर गिर जातीं। गोलियों के जरिए भी उन्हें खत्म करने की कोशिश की गई। दो साल के अंदर ही एक वक्त ऐसा आया जब लगा कि चीन में अब गौरैया लगभग न के बराबर रह गई हैं।
चीनी पत्रकार दाई किंग के मुताबिक, इस अभियान की कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ी। जिस अनाज के लिए गौरैया को मारा जाता था, वह लोगों को नहीं मिल पाता था। गौरैया खेतों में जाकर फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को खा जाती थीं। गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट आने के बाद इन कीड़ों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। फसलें नष्ट होने लगीं। साथ ही टिड्डियों ने भी फसलों पर हमला करना शुरू कर दिया। नतीजतन, चीन में अकाल जैसे हालात पैदा हो गए और अब अकाल के कारण लोगों की मौतों का सिलसिला शुरू हो गया है।
चीनी सरकार ने अकाल के कारण हुई मौतों को छिपाने की भी कोशिश की। सरकार ने दावा किया कि सिर्फ़ 1.5 करोड़ लोग मरे। लेकिन विश्लेषकों ने कहा कि 4.5 करोड़ लोग मरे। चीनी पत्रकार यांग ने अपनी किताब टॉम्बस्टोन में दावा किया कि मरने वालों की संख्या 3.6 करोड़ थी। वहीं, कुछ अन्य विश्लेषकों ने मरने वालों की संख्या 7.8 करोड़ बताई। ज़्यादातर आंकड़े सरकारी आंकड़ों के उलट थे। इसे चीनी सरकार का सबसे खराब अभियान भी कहा जाता है।