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Emmanuel Macron: इमैनुअल मैक्रों ने अमेरिका और ताइवान को लेकर दिया बयान, कहा-  ताइवान से जुड़े विवाद को और बढ़ाना यूरोप के हीत में नहीं

BY: Divyanshi Singh • LAST UPDATED : April 13, 2023, 9:49 pm IST
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Emmanuel Macron: इमैनुअल मैक्रों ने अमेरिका और ताइवान को लेकर दिया बयान, कहा-  ताइवान से जुड़े विवाद को और बढ़ाना यूरोप के हीत में नहीं

इंडिया न्यूज़:  फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने अमेरिका को लेकर बड़ा बयान दिया है बता दे मैक्रों बुधवार को नीदरलैंड्स के दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि वो चीन दौरे के दौरान दिए गए अपने बयान पर बने हुए है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा की अमेरिका के सहयोगी होने का मतलब उनका जागीरदार होना नहीं है। इसका मतलब ये नहीं है कि हम अपने बारे में नहीं सोच सकते। मैक्रों ने कहा की हम चीन की वन चाइना पॉलिसी के साथ हैं और चाहते हैं कि समस्या का समाधान शांतिपूर्ण तरह से निकाला जाए। मैक्रों के बयान पर अमेरिका ने कहा कि हमें फ्रांस के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों पर पूरा भरोसा है।

चीन और अमेरिका के बीच टकराव में घसीटे जाने से बचना चाहिए-मैक्रों
बता दे 5 अप्रैल को 3 दिन के दौरे पर बीजिंग पहुंचे राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। इस दौरान दोनों देशों के बीच ट्रेड और इकोनॉमी सहित ताइवान विवाद पर भी चर्चा हुई थी। उस समय मीडिया को संबोधित करते हुए फ्रांस ने कहा था कि यूरोप को अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए। हमें ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच टकराव में घसीटे जाने से बचना चाहिए।

ताइवान से जुड़े विवाद को और बढ़ाना हमारे यूरोप के हीत में नहीं
अपने एक बयान में मैक्रों ने कहा था की यूरोप हमेशा उन लड़ाइयों में फंस जाता है जो उसकी है भी नहीं। इस वजह से हम अपने रणनीतिक हितों को देखते हुए फैसले नहीं ले पाते हैं। मैक्रों ने कहा यूरोप के लीडर्स को ये सोचना चाहिए कि ताइवान से जुड़े विवाद को और बढ़ाना हमारे हित में नहीं है। उन्होने कहा हम यूक्रेन में भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते। ऐसे में हम ताइवान से ये किस बुनियाद पर कहेंगे कि अगर कुछ गलत होता है तो हम उनके लिए मौजूद रहेंगे। ये सिर्फ तनाव बढ़ाने का तरीका है।

क्या फ्रांस 3 सबसे जरूरी सिद्धांत भूल गया है?
मैक्रों के बयान पर ताइवान की संसद के स्पीकर यू सी-कुन ने कहा की क्या फ्रांस अब अपने 3 सबसे जरूरी सिद्धांत स्वाधीनता, बराबरी और भाईचारे को भूल गया है? क्या संविधान का हिस्सा होने के बाद इसे अनदेखा करना ठीक है? या क्या लोकतांत्रिक देश दूसरे देशों में लोगों के जीवन और मृत्यु को नजरअंदाज कर सकते हैं?

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