India News (इंडिया न्यूज), Statue of Liberty Controversy: स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी सिर्फ एक मूर्ति नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र का प्रतीक है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में खड़ी इस ऐतिहासिक प्रतिमा को फ्रांस ने 1886 में अमेरिका को उपहार में दिया था। वजह थी कि दोनों देश एक जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं। लेकिन अब करीब 140 साल बाद फ्रांस में इस पर नई बहस शुरू हो गई है। सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका अब भी इस तोहफे का हकदार है?
यह बहस तब और तेज हो गई जब यूरोपीय संसद के सदस्य और फ्रेंच लेफ्ट पार्टी के सह-अध्यक्ष राफेल ग्लुक्समैन ने मांग की कि स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को अमेरिका को वापस कर दिया जाए। उनका कहना है कि अमेरिका अब इस ऐतिहासिक धरोहर का हकदार नहीं है।
Statue of Liberty Controversy
ग्लुक्समैन ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, हमें स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी वापस दे दो। अमेरिका तानाशाहों का पक्ष लेने लगा है। जो वैज्ञानिक शोध में स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं, उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है। हमने यह मूर्ति तोहफे में दी थी, लेकिन अब लगता है कि उन्हें इसकी कोई कीमत नहीं है। हमारे साथ यह ज्यादा सुरक्षित और खुशहाल रहेगा।
ग्लक्समैन के इस बयान पर फ्रांस में उनके समर्थकों ने जोरदार तालियां बजाईं। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और यूरोप के बीच कई नीतिगत मुद्दों पर मतभेद बढ़ रहे हैं, खास तौर पर यूक्रेन को सैन्य सहायता के मामले में।
इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक इकाई यूनेस्को ने साफ कर दिया है कि स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी अमेरिका की संपत्ति है। दरअसल, यह मूर्ति फ्रांस ने 1884 में अमेरिका को तोहफे के तौर पर दी थी। इसका मकसद 1776 की अमेरिकी आजादी की 100वीं सालगिरह मनाना था। लेकिन फ्रेंको-प्रुशियन युद्ध (1870) की वजह से इसके निर्माण में देरी हुई।
इसके निर्माण का खर्च फ्रांस ने उठाया, जबकि अमेरिका ने इसके पेडस्टल के लिए पैसे जुटाए। 350 टुकड़ों में भेजी गई इस मूर्ति को आधिकारिक तौर पर 28 अक्टूबर 1886 को न्यूयॉर्क हार्बर में स्थापित किया गया।
हालांकि, ग्लक्समैन को फ्रांस सरकार से कोई समर्थन नहीं मिला है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों इस मुद्दे पर चुप हैं। मैक्रों फिलहाल अमेरिकी नीतियों को लेकर संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वह ट्रंप प्रशासन के साथ सहयोग करना चाहते हैं, लेकिन ट्रंप की कुछ नीतियों, खासकर व्यापार शुल्क में वृद्धि का विरोध कर रहे हैं।
जब इस विवाद पर व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया मांगी गई, तो प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने इसे खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी अमेरिका की विरासत है और इसे वापस करने का सवाल ही नहीं उठता। लेविट ने फ्रांस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर अमेरिका नहीं होता, तो आज फ्रांस के लोग जर्मन बोल रहे होते।
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फ्रांस को यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में उसकी मदद की थी। इसके लिए उन्हें हमेशा आभारी होना चाहिए। हालांकि, इस बयान में फ्रांस की ऐतिहासिक भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया, जब फ्रांस ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम (1775-1783) में अहम भूमिका निभाई थी।
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