India News (इंडिया न्यूज),Gwadar Airport:अरब सागर पर चीन ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। एयरलाइंस के साथ ही चीन ने ग्वादर में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी बनाया है। इस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण से पाकिस्तान के इरादे मजबूत होने की बात कही जा रही है। ग्वादर हवाई अड्डे पर काम 1 जनवरी 2025 से शुरू होगा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने हवाई अड्डे को चीन की ओर से एक उपहार बताया। उन्होंने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत एक महत्वपूर्ण परियोजना के रूप में इसके महत्व को स्वीकार किया।
चीन ने पाकिस्तान को गिफ्ट किया एयरपोर्ट
यह हवाई अड्डा क्षेत्रीय संपर्क को बेहतर बनाने और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए 246 मिलियन डॉलर (लगभग 2000 करोड़ रुपये) के बुनियादी ढांचे के निवेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
शहर से 14 किलोमीटर उत्तर में बलूचिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी तट पर हवाई अड्डे का रणनीतिक स्थान इसे वैश्विक व्यापार के लिए एक केंद्रीय केंद्र बनाता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रवेश द्वार के रूप में ग्वादर की नई स्थिति सीपीईसी में इसकी भूमिका को बढ़ाएगी, जिससे यह मध्य एशिया, मध्य पूर्व और उससे आगे के क्षेत्रों को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र बन जाएगा।
पाकिस्तान के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक, यह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों उड़ानों को संभालेगा, जो इसे पाकिस्तान के व्यापक आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में स्थापित करता है।
आपको बता दें कि इस साल अक्टूबर में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने ग्वादर एयरपोर्ट का ऑनलाइन उद्घाटन किया था। उद्घाटन के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी मौजूद थे।
कम ही लोगों को पता होगा कि पाकिस्तान का बहुमूल्य बंदरगाह शहर ग्वादर कभी भारत को मिलने वाला था। 1950 के दशक में ओमान ने इसे भारत को बेचने की पेशकश की थी लेकिन तब नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उस समय ग्वादर मछुआरों और व्यापारियों का एक छोटा सा शहर हुआ करता था। हथौड़े के आकार का यह मछली पकड़ने वाला गांव आज पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है। चीन की मदद से यहां न सिर्फ विकास को गति मिली है बल्कि यह रणनीतिक रूप से भी काफी अहम हो गया है। ग्वादर 1783 से ओमान के सुल्तान के नियंत्रण में था और 1950 के दशक तक ग्वादर पर करीब 200 साल तक ओमान का शासन रहा। 1958 में पाकिस्तान के नियंत्रण में आने से पहले इसे भारत को बेचने की पेशकश की गई थी लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
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