India News (इंडिया न्यूज), Earthquake in Myanmar: शुक्रवार, 28 मार्च को म्यांमार में धरती इतनी हिली कि सैकड़ों लोगों की जान चली गई। भूकंप से देश के कई इलाके प्रभावित हुए। मरने वालों की संख्या एक हजार को पार कर गई है, जबकि गंभीर रूप से घायल लोगों की संख्या भी 2500 पर है। सैकड़ों लोग अभी भी लापता हैं। ऐसे में आशंका है कि मरने वालों की संख्या 10 हजार के आंकड़े को पार कर सकती है।
म्यांमार के साथ ही थाईलैंड में भी धरती हिली। हालांकि, वहां ज्यादा जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। थाईलैंड में 10 लोगों के मारे जाने की खबर है। इस भूकंप से राजधानी बैंकॉक में भी भयंकर नुकसान देखने को मिला। गगनचुंबी इमारतें हिलती नजर आईं, जिससे उनके कमजोर होने की आशंका बढ़ गई है। एक निर्माणाधीन बड़ी इमारत भी ढहती नजर आई।
Earthquake in Myanmar
बहरहाल, म्यांमार में राहत और बचाव कार्य जारी है। चारों तरफ फैले मलबे से शव बरामद किए जा रहे हैं। दुनियाभर के देश राहत सामग्री भेज रहे हैं। भारत सरकार ने भी 15 टन राहत सामग्री भेजी है। एक और बड़ी बात यह है कि इस भूकंप के बाद भी म्यांमार में लगातार झटके आ रहे हैं।
अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण के अनुसार, शुक्रवार को 10 घंटे के अंदर म्यांमार में कुल 15 भूकंप आए। पहला भूकंप 7.7 तीव्रता का था, जिससे हुई तबाही का विवरण ऊपर दिया गया है। इसके बाद भी कम और अधिक तीव्रता के भूकंप आते रहे। एक भूकंप 6.4 तीव्रता का भी आया। ऐसे में म्यांमार के लोग इस समय डर के साये में जी रहे हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि म्यांमार में इतने भूकंप आए हों। यहां भूकंप आने का लंबा इतिहास रहा है।
म्यांमार दो टेक्टोनिक प्लेटों के बीच की सीमा पर स्थित है। इसे सागाइंग क्षेत्र कहा जाता है। म्यांमार दुनिया के सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय देशों में से एक है। हालांकि, सागाइंग क्षेत्र में बड़े और विनाशकारी भूकंप अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में प्रोफेसर और भूकंप विशेषज्ञ जोआना फोर वॉकर ने रॉयटर्स को बताया, ‘इंडिया प्लेट और यूरेशिया प्लेट अलग-अलग दिशाओं में चलती हैं। एक उत्तर और दूसरी दक्षिण। यह म्यांमार के बीच से होकर गुजरती है। प्लेटें अलग-अलग गति से क्षैतिज रूप से एक-दूसरे से गुजरती हैं। इससे “स्ट्राइक स्लिप” भूकंप आते हैं जो आमतौर पर सुमात्रा जैसे क्षेत्रों में आने वाले भूकंपों से कम शक्तिशाली होते हैं, जहां एक प्लेट दूसरी के नीचे खिसक जाती है।
ब्रिटिश भूविज्ञानी रोजर मुसन ने रॉयटर्स को बताया कि भूकंप की कम गहराई का मतलब है कि नुकसान ज्यादा होगा। म्यांमार में भूकंप का केंद्र सिर्फ 10 किलोमीटर की गहराई पर था। इसलिए नुकसान ज्यादा हुआ। उन्होंने कहा, ‘भूकंप का केंद्र कम गहराई पर होने के कारण भूकंप की तरंगें भूकंप के केंद्र से सतह पर जाने पर नष्ट नहीं होती हैं। ऐसे में इमारतों को भूकंप के झटकों का पूरा जोर झेलना पड़ता है। म्यांमार में यही हुआ।’